श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 06

सूत्र - 10

Description

क्या हम भगवान महावीर स्वामी के वंशज हैं? हर आत्मा के अन्दर अपनी-अपनी कषायों की मन्दता और तीव्रता के कारण भिन्न-भिन्न परिणाम होते हैं भवनवासी देवों के भेद'कुमार' शब्द भवनवासी देवों की विशेषता बताने वाला है। कुमार का मतलब कुँवारे नहीं हैभवनत्रिक में ब्रह्मचर्य के साथ में रहने वाले देव या देवियाँ नहीं होतेभवनवासी देवों के दस भेद तथा उनके कुल सात करोड़ बहत्तर लाख(7,72,00,000) भवनों की गणनादक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र असुरकुमार जाति देवों की विशेषताएँभवनवासी देवों में आहार ग्रहण करने के काल का अन्तराल

Sutra

भवनवासिनोऽसुर-नाग-विद्युत-सुपर्णाग्नि-वातस्तनितोदधि-द्वीप-दिक्कुमारा:॥10॥

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WINNERS

Day 06

20th Dec, 2022

अनिला जैन

अजमेर

WINNER-1

Pratibha Jain

Agra

WINNER-2

Mehal Modi

Bhopal

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

निम्न में से कौनसे देव द्वीपकुमार जाति के देव हैं?

  1. घोष

  2. वशिष्ठ*

  3. वेणुधारी

  4. चमरेन्द्र

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/uHfSJzZDEsQzwcFW8

Summary


  1. सूत्र दस भवनवासिनोऽसुर-नाग-विद्युत-सुपर्णाग्नि-वातस्तनितोदधि-द्वीप-दिक्कुमारा: से हमने भवनवासियों के दस भेदों को जाना -

    • असुरकुमार

    • नागकुमार,

    • विद्युतकुमार,

    • सुपर्णकुमार,

    • अग्निकुमार,

    • वातकुमार,

    • स्‍तनितकुमार,

    • उदधिकुमार,

    • द्वीपकुमार और

    • दिक्कुमार

  2. भवनवासी देवों साथ कुमार शब्द लगाते हैं

    • क्योंकि इनकी रागादि क्रियाएँ, मनुष्यों में कुमारावस्था की क्रियाओं के सामान होती हैं

    • ये कुँवारे नहीं होते

  3. व्यन्तरों के साथ कुमार नहीं लगता

  4. मुनि श्री कहते हैं कि यदि ये सब कुँवारे हैं

    • तो सूत्र सात में काय प्रवीचार वाले भवनवासी देव कौन थे?

    • भवनत्रिक में ब्रह्मचर्य के साथ में रहने वाले देव या देवियाँ नहीं होते

  5. मुनि श्री आगाह करते हैं कि विद्वानों ने आचार्यों की टीकाओं की हिंदी करते समय उसमें अपने भाव लिख दिए हैं

    • जो प्रामाणिक नहीं हैं

    • ऐसा ही सन्दर्भ तृतीय अध्याय में मिलता है जहाँ दिक्‍कुमारियाँ को ब्रह्मचारिणी बताने के लिए लोगों ने श्लोकवार्तिक ग्रन्थ की हिंदी का सहारा लिया

  6. दिक्‍कुमारियाँ दिक्‍कुमारों की देवियाँ होती हैं

    • ये बड़ी-बड़ी रानियाँ होती हैं

    • जिनके अपने अलग-अलग महल होते हैं

    • ये इन सब देवों की ही अनुचरी होकर आज्ञा मानती हैं


  1. हमने भवनवासी देवों के दस भेद, बीस इंद्रों के नाम और सात करोड़ बहत्तर लाख भवनों की गणना को जाना

    • असुरकुमारों में

      1. चमरेन्‍द्र के चौंतीस लाख और

      2. वैरोचन के तीस लाख

  • नागकुमारों में

    1. भूतानन्द के चवालीस लाख और

    2. धरणानन्द या धरणेन्द्र के चालीस लाख


  • विद्युतकुमारों में

    1. हरिसिंह या हरिषेण के चालीस लाख और

    2. हरिकांत के छत्तीस लाख


  • सुपर्णकुमारों में

    1. वेणु के अड़तीस लाख और

    2. वेणुधारी के चौंतीस लाख


  • अग्निकुमारों में

    1. अग्निशिखी के चालीस लाख और

    2. अग्निवाहन के छत्तीस लाख


  • वातकुमारों में

    1. वेलम्ब के पचास लाख और

    2. प्रभंजन के छियालीस लाख


  • स्‍तनितकुमारों में

    1. घोष के चालीस लाख और

    2. महाघोष के छत्तीस लाख

  • उदधिकुमारों में

    1. जलप्रभ के चालीस लाख और

    2. जलकान्त के छत्तीस लाख

  • द्वीपकुमारों में

    1. पूर्ण के चालीस लाख और

    2. वशिष्ठ के छत्तीस लाख

  • दिक्कुमारों में

    1. अमितगति के चालीस लाख और

    2. अमितवाहन के छत्तीस लाख भवन होते हैं


  1. इन इंद्रों में पहले वालों को दक्षिणेन्द्र और

    • बाद वालों को उत्तरेन्द्र कहते हैं

  2. हमने जाना कि इनके भवन तिर्यक लोक में भी असंख्‍यात द्वीप-समुद्र के आगे होते हैं

    • दक्षिणेन्द्र के जम्बूद्वीप के दक्षिण में

    • उत्तरेन्द्र के उत्तर में

  3. ये भवन तीन प्रकार के होते हैं

    • रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे खरभाग और पंकभाग में बने स्थान को भवन

    • द्वीप और समुद्रों में बने स्थान को भवनपुर

    • और पर्वतों, नदियों पर स्थानों को आवास कहते हैं


  1. हमने जाना कि अन्य भवनवासी देवों की अपेक्षा

    • असुरकुमार जाति देवों की ऊँचाई अधिक होती है

    • ये पच्चीस धनुष होती है

    • इनका अवधिज्ञान भी ज्यादा होता है


  1. भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयु एक पल्य और जघन्य दस हजार वर्षों की होती है

    • दस हजार वर्ष आयु वाला देव दो दिन के बाद मानसिक आहार करता है

    • और पल्य प्रमाण आयु वाला देव पाँच दिन बाद