श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 08
सूत्र -06,07,08
सूत्र -06,07,08
अधिकरण का मतलब होता है आधार।अधिकरण के प्रकार। जीव के अन्दर 108 प्रकार के कर्मो के आस्रव होते है। संकल्प नहीं लेने के कारण भी आस्रव होता ही है। 108 प्रकार के आस्रव को कम करने के लिए भंग। कृत कारित अनुमोदना को कंट्रोल करें। संरम्भ,समारंभ और आरंभ। आस्रव के भेदों में से बहुत कुछ आप रोक सकते हो। जो काम आप नहीं करते उसका समर्थन क्यों ? महाव्रत और अणुव्रत के संकल्प से आस्रव को रोकना संभव।
9th Aug, 2023
Sulochna Jain
Bhinder
WINNER-1
ऊषा जैन
मुरैना
WINNER-2
Reena Jain
Greater Noida
WINNER-3
किसी और के द्वारा कुछ करवाने को क्या कहते हैं?
संरम्भ
समारम्भ
कृत
कारित*
हमने चार प्रकार के भाव विशेष से होने वाले आस्रवों के बाद अधिकरण विशेष और वीर्य विशेष को भी जाना
वीर्य जीव या अजीव पदार्थ में उसकी अपनी शक्ति को कहते हैं
जीव अपनी भाव शक्ति और अजीव की शक्ति को उपयोग करके, पाप में प्रवृत्ति करता है
इस शक्ति से भी पापास्रव में अन्तर पड़ता है
जैसे उत्कृष्ट संहनन की अपेक्षा कमजोर संहनन वाले व्यक्ति के आस्रव कम होता है
उत्कृष्ट संहननधारी तो पाप करके सातवें नरक में भी जा सकता है
लेकिन स्त्री हीन संहनन के कारण सातवें नरक की आयु का बंध नहीं कर सकती
सूत्र सात अधिकरणं जीवाजीवाः में हमने अधिकरण अर्थात आधार विशेष के बारे में जाना
जीव और अजीव के भेद से अधिकरण दो प्रकार का होता है
सूत्र आठ आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः में हमने जीव के आधार से कर्मों के आस्रव को जाना
संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ तीन
मन-वचन-काय तीन
कृत, कारित, अनुमोदन तीन और
क्रोध, मान, माया, लोभ चार
इन सबको multiply करने पर हमें एक सौ आठ प्रकार के आस्रव मिलते हैं
जो जीव के अन्दर होते हैं
जीव अपने आप को संकल्पित किये बिना, आस्रव के इन द्वारों से बच नहीं सकता
यह सूत्र उन्हें पढ़ना चाहिए, जो कहते हैं हमको पाप आस्रव या कर्म का बंध क्यों होगा?
यदि आपका आवागमन का क्षेत्र सीमित है तो आपको पाप नहीं लगेगा
परन्तु संकल्प के अभाव में इनमें से सब चीजें संभव हैं
बिना संकल्प के आदमी के लिए उस संबंधी आस्रव होता ही रहता है
जैसे यदि आपने चमड़ा छोड़ा नहीं है
और इस्तेमाल भी नहीं कर रहे
तो भी आपको आस्रव होगा
क्योंकि कहीं न कहीं आपके मन में उसको ग्रहण करने का विचार है
अगर हिंसक पदार्थ चमड़ा भीतर से बुरा लग रहा है, तो आप संकल्प लेने में देर नहीं करोगे
महाव्रत या अणुव्रत लेने से उसके संकल्प हमारे अन्दर आते हैं
फिर बाहर की चीज से कोई मतलब नहीं रहता
बिल्कुल neutral mode पर thought process लाना, आस्रव को रोकने का सबसे अच्छा उपाय है
हमने इन भेदों के combination या भंग बनाना भी सीखा
जैसे पहला भंग क्रोध कषाय कृत मनोयोग से संरम्भ करना है
दूसरा तीसरा भंग क्रोध-कषाय कृत वचनयोग और काययोग से संरम्भ करना, होगा
इसी प्रकार संरम्भ के स्थान पर क्रोध-कषाय कृत का तीनों योग के साथ समारम्भ और आरम्भ होगा
इस प्रकार क्रोध-कषाय-कृत के नौ भंग हुए
इनके कारित और अनुमोदन के भी नौ-नौ भंग हुए
इस प्रकार क्रोध कषाय के सत्ताईस भंग हुए
मान, माया और लोभ के सत्ताईस-सत्ताईस मिलाकर कुल एक सौ आठ भंग हुए
हमने देखा कि पाप का आस्रव कषाय से शुरू होते हुए
पहले योग में
फिर संरम्भ- समारम्भ-आरम्भ में
और अन्त में कृत-कारित-अनुमोदना के भेद से वर्गीकृत होता है
क्रोधादि कषाय और मन आदि योग तो भीतर हैं
और पकड़ के बाहर हैं
कृत-कारित-अनुमोदना बाहरी भेद हैं
संरम्भ में हम मन में एक प्रयत्न करते हैं, only effort.
समारम्भ में planning करते हैं, चीजें इकट्ठा करते हैं
और आरम्भ में उस कार्य को start करते हैं
आस्रव के इन भेदों में हम समारम्भ-आरम्भ और कारित-अनुमोदन को आराम से control कर बाहर से होने वाला पाप-आस्रव को रोक सकते हैं
उदाहरण के लिए अमेरिका में हो रहे राष्ट्रपति के चुनाव से हमें कोई लेना-देना नहीं है
लेकिन फिर भी भाव आता है कि इसको जीतना चाहिए
हमने वोट नहीं डाला, मगर मन से अनुमति कर ली
इसी प्रकार पाप-आस्रव की जो चीजें हमें करनी नहीं है
वह करानी क्यों?
और करने वाले की अनुमोदना करनी क्यों?