श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 01
सूत्र - 01
सूत्र - 01
भूमिका। सप्तम अध्याय में शुभ क्रियाओं का वर्णन। अभिसन्धिकृता विरतिर्विषयाद् योग्याद् व्रतं भवति। व्रत साक्षी पूर्वक लिए जाते हैं। government से भी agreement करना पड़ता है। देव गुरु की साक्षी। अनुबंध का अर्थ।
हिंसा:Sनृतस्तेयाब्रह्म-परिग्रहेभ्यो विरतिर्व्रतम्।।7. 1।।
2nd, Nov 2023
Kumkumjain
Ambala Cantt
WINNER-1
Pratibha Jain
Ahmedabad
WINNER-2
Dinesh Jain
Chittorgarh
WINNER-3
सक्खियं का क्या अर्थ है?
आत्मा
साक्षी*
परिजन
पराये लोग
छठे अध्याय में हमने आस्रव तत्त्व के वर्णन में जाना
किन भावों से कौन से कर्मों का आस्रव होता है
अशुभ आस्रव पाप के लिए
और शुभ आस्रव पुण्य के लिए होता है
आस्रव के कारण - इन्द्रिय, कषाय, अव्रत, क्रिया होते हैं
सप्तम अध्याय में हम संवर तत्त्व को जानेंगे
संवर मतलब कर्मों का रुकना
इसमें हम शुभ आस्रव, शुभ भावों के साथ शुभ क्रियाओं को भी जानेंगे
हमने जाना कि मन-वचन-काय की क्रियाएँ को रोक कर ही
हम भाव आस्रव को पूर्णतया रोक सकते हैं
अन्यथा नहीं
इसलिए इनको अशुभ से शुभ में divert करके भावों में परिवर्तन करते हैं
और वही परिवर्तन आस्रव से संवर का कारण बन जाता है
अविरति control में आने से अशुभ आस्रव के सभी कारण control में आ जाते हैं
विरति यानि उस चीज से विरक्त हो जाना, दूर हट जाना
अविरति यानी विरति या विरक्ति का अभाव
अर्थात पाप के आस्रव भूत कार्य से दूर नहीं होना
आचार्य अभिसन्धि या अनुबंधदपूर्वक ली गयी विरति को व्रत कहते हैं
जैसे मैं पाप आस्रव नहीं करूँगा
मैं उनको रोकता हूँ
मैं संवर के लिए तत्पर होता हूँ
इसके बिना पाप भाव से दूर नहीं हो सकते
सूत्र एक - हिंसा:ऽनृतस्तेयाब्रह्म-परिग्रहेभ्यो विरतिर्व्रतम् के अनुसार
विरतिर्व्रतम् - विरति का नाम व्रत है
हिंसा,
अनृत मतलब झूठ,
स्तेय मतलब चोरी,
अब्रह्म मतलब कुशील
और परिग्रह मतलब यह मेरा है का भाव
से विरति होने पर व्रत आता है
व्रत सिर्फ भावों से नहीं बल्कि साक्षी पूर्वक लिए जाते हैं
अर्थात भावों में decision लेने के बाद
सबके समक्ष इसकी घोषणा करनी होती है
कि हमने पाँच पाप से विरति ले ली है
समाज की व्यवस्थाएँ - समाज की साक्षी पूर्वक, समाज में declare करके करनी पड़ती हैं
चाहे वो विवाह जैसे बंधन बनाने की हो या बंधन तोड़ने की
सरकारी documents भी
गवाह के हस्ताक्षर और government की मोहर लगने पर ही
valid या मान्य होते हैं
इसी प्रकार केवल अपने अंदर व्रत ले लेने से काम नहीं होता
दूसरे को साक्षी बनाकर सामाजिक उद्घोषणा करनी होती है
कि मैंने इन व्रतों को धारण कर लिया है
तभी व्रत valid होते हैं
इससे दूसरों को पता पड़ता है कि आप अपने जीवन के लिए इस तरीके से planning कर रहे हैं
आचार्यों के अनुसार मुनि महाराज और श्रावक दोनों के व्रत साक्षी भावपूर्वक लिए जाते हैं
अप्प सक्खियं परसक्खियं - अर्थात मेरी आत्मा साक्षी है
और हमारे सामने दूसरे लोग भी साक्षी हैं
देवता सक्खियं मतलब देवता भी साक्षी हैं
और गुरु सक्खियं मतलब गुरु भी साक्षी हैं
जब ये सब साक्षी होंगे तो हम कभी भी पीछे नहीं हटेंगे
और rules, regulations पूरा follow नहीं करने पर
इन्हीं की साक्षी में व्रत का cancellation भी किया जा सकता है
ऐसे साक्षी में किया गया अनुबंध शुभ का अनुबंध है
अनुबंध मतलब कहीं न कहीं बंध तो है
जहाँ संसार में मकान, विवाह आदि के अनुबंध अशुभ के लिए हैं
वहीं अव्रत को छोड़कर व्रत की प्रवृत्ति करने से अशुभ का संवर होता है और शुभ का बंध होता है