श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 45
सूत्र - 40,41,42
सूत्र - 40,41,42
व्यवहार काल अनंत समय वाला है। उत्पाद के प्रकार। गुण और पर्याय के समूह का नाम द्रव्य है। एक द्रव्य के आश्रय से अनंत गुण रहते हैं। आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने नीति से द्रव्य का अर्थ धन कहा। पर्याय द्रव्य के अनुसार ही शुद्ध या अशुद्ध होती है। पानी का उदाहरण। जीव द्रव्य में कर्म हैं तो पर्याय अशुद्ध है ।
सोऽनन्त-समयः ।।5.40।।
द्रव्याश्रया निर्गुणा: गुणा: ||5.41||
तद्भावः परिणामः ||5.42||
Sunil Jain
Datia
WINNER-1
Vinita Sethi
Jabalpur
WINNER-2
Pankaj Shah
Mumbai
WINNER-3
एक द्रव्य के आश्रय से कितने गुण रहते हैं?
एक
संख्यात
असंख्यात
अनंत*
हमने जाना कि व्यवहार काल गणना से बनता है
सूत्र चालीस सोऽनन्त-समयः के अनुसार यह अनंत समय वाला होता है
यहाँ अनंत व्यवहार के समय का समुदाय है, समूह है
अनंत समयों में ही संख्यात, असंख्यात वर्ष आदि की गणनाएँ होती है
एक आवली में असंख्यात समय होते हैं
काल के समय अनंत हैं
वर्तमान के किसी क्षण की अपेक्षा से past और future दोनों अनंत हैं
लेकिन past से future कई गुणा अनंत होता है
time और इससे जुड़ा हुआ हर द्रव्य beginningless होता है
हमने जाना कि काल में भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य चल रहा है
उसका नित्य स्वभाव बना रहना ही ध्रौव्य है
और प्रतिसमय अगुरूलघु गुण के कारण हो रही षट्-गुणी हानि-वृद्धि से उसमें निरंतर उत्पाद चलता है
स्वयं से हो रहे इस परिणमन को स्व-उत्पाद कहते हैं
द्रव्यों के परिणमन के कारण जो हम काल को पकड़ते हैं
वह पर-प्रत्यय से होने वाला उत्पाद है
जैसे एक हजार वर्ष का काल हो गया
लेकिन काल कभी हजार वर्ष पुराना नहीं होता
वो तो विशेष द्रव्य की अपेक्षा से कहा जाता है कि इतने काल का हो गया
काल के ऊपर उत्पाद, व्यय आदि परिणतियाँ पर-प्रत्यय से भी होती हैं
जीव पुद्गल में भी इस तरह से स्व और पर प्रत्यय संबंधी उत्पाद होते हैं
सूत्र इकतालीस द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा: में हमने जाना कि गुण, द्रव्य के आश्रय से रहते हैं
और निर्गुण होते हैं अर्थात् एक गुण में अन्य गुण नहीं पाए जाते।
गुण द्रव्य के आधार से होता है और गुण द्रव्य का आधेय
यह आधार-आधेय संबंध टेबल पर रखे कागज जैसा नहीं
तिल में तेल के समान स्वाभाविक होता है
जैसे ज्ञान, चैतन्य आदि गुण जीव द्रव्य के आधार से हैं
द्रव्य गुणों के आधार से नहीं होता
आचार्यों के अनुसार
गुणों का समूह द्रव्य है
अथवा त्रिकालवर्ती पर्यायों का समूह द्रव्य है
द्रव्य बिना पर्याय और गुण के नहीं होता
एक द्रव्य के आश्रय से अनंत गुण रहते हैं
गुण अपने अलावा अपने अंदर दूसरा गुण नहीं लाता है
इस अपेक्षा से वह निर्गुण है
जैसे ज्ञान गुण ज्ञान गुण ही रहेगा
दर्शन गुण नहीं हो जाएगा
द्रव्य के अंदर सभी गुण अपने अलग-अलग अस्तित्व के साथ रहते हैं
निर्गुणपना के कारण सामान्य गुण कभी विशेष नहीं बनते
और विशेष कभी सामान्य नहीं बनते
इस सूत्र का नीतिपरक अर्थ निकालते हुए आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने समझाया
कि पैसा को द्रव्य भी बोलते हैं
इसलिए पैसे के आश्रय से निर्गुण भी गुणवान हो जाता है
सूत्र बयालीस तद्भावः परिणामः के अनुसार द्रव्य के भाव के अनुसार ही उसका परिणाम अर्थात् पर्यायें होती हैं
द्रव्य जैसा है उसका वैसा ही परिणाम होता है
परिणमनं पर्यायः जो परिणमन हो रहा है वही उसकी पर्याय है
अतः पर्यायें, द्रव्य के अनुसार ही शुद्ध या अशुद्ध होती हैं
जैसे सिद्ध भगवान की शुद्ध पर्याय
और संसारी जीव रूप अशुद्ध द्रव्य की मनुष्य आदि अशुद्ध पर्यायें होगी
शुद्ध द्रव्य के अशुद्ध पर्याय नहीं होती
एकांती लोग द्रव्य को त्रैकालिक शुद्ध और पर्याय को अशुद्ध मानते हैं
पर्याय को एकांत से अशुद्ध कहना गलत है
क्योंकि शुद्ध द्रव्य की शुद्ध और
अशुद्ध द्रव्य की अशुद्ध पर्याय होती है
उदाहरण के लिए जैसा लाल पानी में
द्रव्य और पर्याय दोनों लाल(अशुद्ध) होते हैं
और chemical से पानी को साफ करने पर दोनों शुद्ध हो जाते हैं
हमें द्रव्य और पर्याय का सम्बन्ध सही तरह से जानना चाहिए
कर्म युक्त होने के कारण जीव अशुद्ध है
और उस अशुद्ध द्रव्य और गुणों की अशुद्ध पर्याय निकलती हैं
जैसे द्रव्य की मनुष्य पर्याय
और ज्ञान गुण की क्षयोपशम रूप मतिज्ञान आदि पर्यायें
न्यायशास्त्र आलाप पद्धति में इसे
शुद्ध द्रव्यार्थिक नय और अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय से ग्रहण करते हैं
इस प्रकार पंचम अध्याय के साथ ब्रह्मांड के सभी मूर्त-अमूर्त द्रव्यों के साथ अजीव तत्व का वर्णन पूर्ण हुआ