श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 11

सूत्र - 5

Description

लब्धि को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग प्रसङ्ग में और विवक्षा से जानना चाहिए l क्षयोपशम लब्धि का अर्थ l क्षयोपशम लब्धि और उसके प्रकार l कैसे जाने कि दानान्तराय आदि कर्मों का क्षयोपशम है या नहीं? लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम l नियम का प्रभाव l क्षयोपशम के महत्व जाने और समझे l ऐसा कोई जीव नहीं जिसमें ज्ञान का कुछ अंश प्रकट न हो l क्षयोपशम सम्यग्दर्शन अगले जन्म में भी हमारे साथ जाता है l सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र के संयमासंयम के भाव, क्षयोपशम भाव है l क्षयोपशम सम्यक्त्व के उदय की प्रक्रिया l क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की सैद्धान्तिक परिभाषा l क्षयोपशम सम्यग्दर्शन का काल l

Sutra

ज्ञानाज्ञान-दर्शन-लब्धयश्चतुस्त्रि-त्रि-पंचभेदा: सम्यक्त्व चारित्र-संयमासंयमाश्च।l५।l

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WINNERS

Day 11

26th Apr, 2022

Sarita Jain

Jaipur

WIINNER- 1

C M JAIN

Jaipur

WINNER-2

Nancy Kedia

Raipur

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

कर्म के क्षय होने पर जो आत्मा में गुणों की प्राप्ति होती है, वह कौनसी लब्धि होती है?

  1. लाभांतराय का उपशम

  2. क्षायिक लब्धि *

  3. क्षायोपशमिक लब्धि

  4. औपशमिक लब्धि

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. क्षायोपशमिक भावों के भेदों में हमने जाना कि

    • चार प्रकार के ज्ञान - मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय क्षयोपशम भाव हैं

    • चक्षु, अचक्षु और अवधि तीनों दर्शन भी क्षयोपशम भाव हैं

    • और पाँच क्षयोपशम लब्धियाँ भी क्षयोपशम भाव हैं


  1. लब्धि का मतलब होता है उपलब्धि या प्राप्ति

  2. ये अलग अलग सन्दर्भ में अलग अलग होती हैं जैसे

    • सम्यग्दर्शन होने से पहले पंच लब्धि योग्यता रूप में होनी चाहिए

    • कर्मों के पूर्ण क्षय से क्षायिक लब्धियाँ आत्मा में गुणों के रूप में प्राप्त होती हैं

    • पांच प्रकार के अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से जो आत्मा में कुछ उपलब्धि होगी उसे क्षयोपशम लब्धि कहते हैं जैसे

      • दानांतराय के क्षयोपशम से दान करने की शक्ति आना

      • लाभांतराय के क्षयोपशम से लाभ लेने की शक्ति आना

      • भोगांतराय के क्षयोपशम से भोग करने की शक्ति आना

      • उपभोगांतराय के क्षयोपशम से उपभोग करने की शक्ति आना

      • और वीर्यांतराय के क्षयोपशम से हमारे अन्दर उत्साह आना


  1. इसी प्रकार संयम और संयमासंयम की वृद्धि को नापने के लिए उनके स्थान होते हैं, जिन्हे संयम लब्धि स्थान या संयमासंयम-लब्धि स्थान कहते हैं

  1. कर्म के क्षयोपशम के बिना न हमें कुछ लाभ मिलेगा, न दान दे सकेंगे, न भोग-उपभोग कर सकेंगे

    • ये सब कर्मों के फल के कारण से हैं

    • हम कर्मों के क्षयोपशम से मिली उपलब्धियों का महत्व नहीं समझ पाते


  1. क्षयोपशम लब्धियाँ सभी जीवों में होती हैं

  2. एक इन्द्रिय जीव में भी थोड़ा-सा अन्तराय कर्म और ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है; इसके आभाव में जीव का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा

  1. हमने जाना कि औपशमिक और क्षायिक के अलावा सम्यग्दर्शन क्षयोपशम भाव का भी होता है - क्षायोपशमिक सम्यक्त्व

    • यह वर्तमान काल में भी रह सकता है

    • यह छियासठ सागर काल तक बना रह सकता है और

    • अगली गति में ही साथ जा सकता है


  1. हम सबका जन्म तो मिथ्यात्व के साथ हुआ है लेकिन हम इस सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर उसके साथ दूसरी गति में जा सकते हैं

  2. सम्यग्चारित्र दूसरी गति में साथ नहीं जाता

  3. दर्शन मोहनीय की तीन (मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यक्) और अनन्तानुबन्धी कषायों की चार प्रकृति क्रोध, मान, माया, लोभ के उपशमन से उपशम सम्यग्दर्शन होता है

    • और इनके क्षय से क्षायिक सम्यग्दर्शन

    • क्षयोपशम सम्यग्दर्शन में छः प्रकृति तो दबी रहती हैं मगर सम्यक प्रकृति का उदय रहता है


  1. छठवें-सातवें गुणस्थान में मुनि महाराज के पास जो संयम, चारित्र होता है वह भी क्षयोपशम भाव है

  2. बारह व्रतों या अधिक प्रतिमाओं का पालन करने वाले गृहस्थ सम्यग्दृष्टि को संयमासंयमी कहते हैं

    • उनका यह चारित्र भी क्षयोपशम भाव ही है


  1. वर्तमान में उपशम और क्षायिक चारित्र नहीं हो सकता