श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 42
सूत्र -25,26,27,28
सूत्र -25,26,27,28
विग्रहगति क्या है?आहारक, अनाहारक में अन्तर l गति से गत्यान्तर की गतियों के प्रकार l कार्मण काय योग क्या है? मोड़े और समय को समझे l लोक का आकार l
विग्रहगतौ कर्मयोग:।l२५।l
अनुश्रेणी गतिः।l२६।l
अविग्रहा जीवस्य।l२७।l
विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुर्भ्यः।l28।l
Meena Jain
kannauj
WIINNER- 1
Harsha
Ahmedabad
WINNER-2
Bramchari Swati jain
Hyderabad
WINNER-3
दो समय वाली गति कौन सी होती है?
इषु गति
पाणिमुक्ता गति *
लाँगलिका गति
गोमूत्रिका गति
वर्तमान प्रकरण में हम जीव के मरण के उपरान्त और जन्म से पहले की गति को सिद्धांततः समझ रहे हैं
ये गति दो प्रकार की होती हैं
पहली ऋजुगति जिसमें जीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर सीधे श्रेणी के अनुसार, बिना मोड़ा के ही जाकर उत्पन्न हो जाता है
और दूसरी विग्रहगति जिसमें जीव एक, दो या तीन मोड़े या turn ले सकता है
हमने जाना कि आहारक जीव नोकर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है
और अनाहारक जीव केवल कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है
इसी अवस्था में कार्मण योग होता है
कर्म योग विग्रहगति में ही होता है ऋजुगति में नहीं
सूत्र 26 “अनुश्रेणि गतिः” विग्रहगति और ऋजुगति दोनों में घटित होता है क्योंकि दोनों में ही गति श्रेणी के अनुसार होती है
सूत्र 27 “अविग्रहा जीवस्य” में अविग्रहा अर्थात् विग्रह से रहित यानि मोड़े से रहित, कुटिलता से रहित गति को मुक्त जीव के लिए ग्रहण किया है
इसे ऋजुगति भी कहते हैं
सूत्र 28 में 'च' शब्द संसारी जीव के लिए सूत्र 27 की अनुवृत्ति के लिए आया है
अर्थात संसारी जीव में अविग्रहा और विग्रह वाली दोनों गतियाँ होती हैं
हमने गति से गत्यान्तर में चार प्रकार की गति को समझा
पहली इषु गति यानि बाण की तरह गति
जीव एक समय में सीधा श्रेणी से जाकर अपने स्थान पर उत्पन्न हो जाता है
दूसरी पाणिमुक्ता गति मतलब हाथ पर रखे मोती के समान गति जो एक curve या मोड़ा लेकर नीचे गिरेगा
इसके एक मोड़े में दो समय लगते हैं
पहला समय अनाहारक या कर्म योग वाला होगा
और दूसरे समय में वह एक मोड़ा लेकर, जन्म लेकर आहारक हो जाएगा
तीसरी लाँगलिका गति जो हल के समान दो मोड़े वाली होती है
इसके दो मोडे़ में तीन समय लगेंगे
पहले दो समय जीव अनाहारक होगा
और तीसरे समय में वह आहारक हो जाएगा
और अंतिम गोमूत्रिका गति मतलब गाय के मूत्र के समान गति
इसके तीन मोड़ों में चार समय लगेंगे
पहले तीन समय वह अनाहारक होगा
और चौथे समय में आहारक हो जाएगा
हमने जाना कि कार्मण काय योग वस्तुत: अनाहारक अवस्था में या मोड़े की अवस्था में ही होता है
‘प्राक् चतुर्भ्यः’ के अनुसार चार समय से पहले ही यानि तीन समय तक ही विग्रहगति होती है
उसके पश्चात् जीव नियम से आहारक होकर नोकर्म वर्गणाओं को ग्रहण करने लग जाता है
पहली इषु गति में कोई मोड़ा नहीं है इसलिए इसमें कार्मण काय योग नहीं होगा
जीव एक समय में दूसरे जन्म में नोकर्म वर्गणाओं को ग्रहण करता हुआ ही उत्पन्न होता है
हमने जाना कि गति के अंतिम समय में जीव की उत्पत्ति हो चुकी होती है
एक, दो और तीन मोड़े वाली गति में जीव को दो, तीन और चार समय लगते हैं
परन्तु उनकी विग्रह रहित अवस्था सिर्फ मोड़े के दौरान अर्थात एक, दो और तीन समय ही रहती हैं