श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 02

सूत्र - 01

Description

क्षायिक भाव कभी भी direct नहीं हो सकता। तीन कारणों से सबसे पहले औपशमिक और फिर क्षायिक लिखा गया हैमिश्र भाव किसे कहते हैं?उदयाभावी क्षय का मतलब क्षीणाक्षीण शक्ति इसी को बोलते हैं क्षयोपशम भावज्ञान का क्षयोपशमज्ञान के अलग अलग क्षयोपशम की शक्तियाँपाँचों भावों के बीच में मिश्र भाव रखा हैऔदयिक और पारिणामिक भाव पारिणामिक भाव क्या है? गति औदयिक भाव है चैतन्य भाव परिणामिक भाव है

Sutra

औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च।l1ll

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WINNERS

Day 02

08th Apr, 2022

Shakuntala Jain

Jaipur

WIINNER- 1

Aprajita Jain

दिल्ली

WINNER-2

Kanak Jain

Banglore

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

निम्न में से मिश्र भाव कौनसा है?

  1. क्षय

  2. उपशम

  3. उपक्षय

  4. क्षयोपशम *

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. हमने जाना कि कर्मों के उपशमन से औपशमिक भाव होता है

  2. और कर्मों के क्षय से क्षायिक भाव

  3. क्षायिक भाव औपशमिक भाव के बाद ही होता है, direct नहीं होता

  4. औपशमिक और क्षायिक भाव सिर्फ भव्य जीवों में ही होते हैं; अभव्य में नहीं

  5. आचार्य महाराज ने पहले औपशमिक फिर क्षायिक भाव लिखे -

    • क्योंकि पहले औपशमिक होता है और बाद में क्षायिक

    • उपशम-सम्यग्दृष्टियों से क्षायिक-सम्यग्दृष्टि जीवों की संख्या अधिक होती है

    • क्षायिक-सम्यग्दृष्टि जीवों की विशुद्धि उपशम-सम्यग्दृष्टियों से अनन्त गुणी अधिक होती है; इसे विशुद्धि का प्रकर्ष कहते हैं


  1. यहाँ विशुद्धि भावात्मक परिणति है और संख्या द्रव्यात्मक परिणति

  1. मिश्र का अर्थ है औपशमिक और क्षायिक के मिश्रण से बना भाव यानि क्षायोपशमिक-भाव

  2. क्षय और उपशम से मिल कर क्षयोपक्षम होता है और उससे उत्पन्न भाव होता है क्षायोपशमिक भाव

    • जहाँ क्षायिक में क्षय का अर्थ है अत्यन्ताभाव

    • वहीं क्षायोपशमिक में क्षय का अर्थ है उदयाभावी क्षय अर्थात अपनी शक्ति के कारण से कर्मों के उदय में आने का अभाव


  1. क्षयोपशम में कुछ समय के लिए कर्मों की शक्तियाँ उदय में नहीं आती और दब भी जाती हैं

  2. इसे क्षीणाक्षीण शक्ति भी कहते हैं

  1. एक ही समय में अलग-अलग कर्मों के क्षयोपशम की तीव्रता और मंदता अलग अलग हो सकती है

  2. जैसे अगर अवग्रह मतिज्ञान का क्षयोपक्षम कम है और धारणा मतिज्ञान का अधिक है तो वस्तु का अवग्रह तो होगा मगर स्पष्टीकरण एक बार में नहीं हो पायेगा

    • एक बार स्पष्टीकरण होने पर वह बहुत समय तक वैसी ही ज्ञान में रहेगी

    • और अगर श्रुत ज्ञानावरण-कर्म का क्षयोपक्षम भी अच्छा नहीं है तो उस वस्तु की विशेषताओं को अच्छे से नहीं जान पाएंगे


  1. हमने जाना कि मिश्र भाव पाँचों भावों में बीच में है

  2. ज्ञानादि के क्षयोपक्षम सभी भव्य और अभव्य संसारी जीवों में होंगे

  3. क्षायिक सम्यग्दृष्टियों से क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि असंख्यात गुणे अधिक होते हैं

  1. औदयिक-भाव कर्म के उदय से उत्पन्न होते हैं

  2. पारिणामिक-भाव आत्मा के अपने परिणामों से ही उत्पन्न होते हैं

  3. इनमें कर्म के उदय, उपशम, क्षयोपक्षम या क्षय की अपेक्षा नहीं होती

  4. क्षयोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक भाव सभी संसारी जीवों में मिलेंगे

  5. औदयिक और पारिणामिक भाव वाले जीव अनन्त हैं

  6. हमने जाना की जहाँ गति एक औदयिक भाव है

  7. वहीं चैतन्य हमारा पारिणामिक भाव है