श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 21
सूत्र - 06
सूत्र - 06
णमो मणपज्जव णाणिणं। णमो उजमदिणं। णमो विऊलमदिणं। Job भी योग्यता से मिलती है केवल degree से नहीं। आत्मिक विकास के लिए सिद्धान्त का सही ज्ञान आवश्यक।
मति-श्रुता-वधि-मनःपर्यय-केवलानाम्॥8.6॥
03rd, May 2024
Meenu Jain
Delhi
WINNER-1
Vidhya Kotdiya Jain
Udaipur
WINNER-2
Astha Jain
New Delhi
WINNER-3
सभी जीव केवलज्ञान मयी किस दृष्टि से हैं?
भव्य दृष्टि से
अभव्य दृष्टि से
द्रव्यदृष्टि से*
पर्याय दृष्टि से
हमने जाना कि जिस द्रव्य में योग्यता प्रकट हो जाए
वही महत्वपूर्ण, पूज्य, important माना जाता है
दुनिया में भी योग्य ही पूजा जाता है
जो अपनी शक्ति को प्रकट कर लेते हैं या प्रकट करना जानते हैं, उन्हें यहाँ योग्य कहा है
और जिनमें शक्ति की उपयोगिता नहीं है वे अयोग्य हैं
अयोग्य को कहीं admission नहीं मिलता
मुनि श्री ने समझाया कि द्रव्यदृष्टीष्टि से तो भव्य, अभव्य सभी केवलज्ञानमय हैं
पर्यायदृष्टीष्टि से हमें इनमें अंतर दिखाई देता है
किसी भी चीज में हो रहे परिणमन, change ही महत्वपूर्ण होते हैं
क्योंकि अगर आपकी पर्याय नहीं बदल रही
तो आपकी योग्यता नहीं बढ़ रही
आज दुनिया में हर कोई दिव्यद्रव्यदृष्टि से देख रहा है
लेकिन पूज्यता और अपूज्यता का व्यवहार पर्यायदृष्टि से होता है
क्योंकि सामने वाले की पर्याय को देख कर ही
हमारे अन्दर motivation आ सकता है
द्रव्य तो सभी के बराबर हैं
यहाँ पर्याय का अर्थ प्रकट हो रहा ज्ञान, योग्यता है
द्रव्य से ज्यादा महत्व उसकी पर्याय का होता है
क्योंकि वही द्रव्य को योग्य और अयोग्य बनाती है
मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञान तो अभव्य में भी होते हैं
लेकिन 48 ऋद्धियों के पाठ में,
पर्यायदृष्टीष्टि से, जिनके ज्ञान प्रकट हो गए उन्हीं ज्ञानियों को नमस्कार किया है
जिनके अन्दर ज्ञान पड़ा है उनको नहीं
हमने जाना कि पर्याय बदलने से द्रव्य मूल्यवान हो जाता है
जैसे purification के बाद पत्थर में से सोना निकलने पर
उसकी पर्याय प्रकट हो जाती है, value बढ़ जाती है
जिसे हम पहले पत्थर में तोलते थे
उसी को अब treasury में रखते हैं
पर्यायदृष्टीष्टि पत्थर में सोना देखता है
जहाँ पर्यायदृष्टीष्टि जिनमें ज्ञान प्रकट हो गए - अरिहंत भगवान में ज्ञान देखता है
द्रव्यदृष्टीष्टि भव्य, अभव्य सब में ज्ञान देखता है
द्रव्यार्थिक नय से अभव्य में ज्ञान का अस्तित्व तो सिर्फ ज्ञानावरण कर्मों के कारण बताया है
क्योंकि अगर आवरण है तो आवरण के योग्य चीज भी होगी
यहाँ केवलज्ञान होते हुए भी
वह किसी काम का नहीं है
क्योंकि उसमें उस ज्ञान की कोई योग्यता नहीं है
ज्ञान में योग्यता पर्यायदृष्टीष्टि से ही आती है
जिनमें ज्ञान की पर्याय प्रकट हो गई है, उनके द्रव्य को देखकर
हमें सोचना चाहिए कि उसमें पुरुषार्थ आ गया है
वह योग्य हो गए हैं
ऐसी ही पर्याय हमारे द्रव्य में भी प्रकट हो
दुनिया में भी सब कुछ पर्याय से चलता है
अगर सब IIT करलें तो भी job योग्यता दिखाने वालों को मिलती है
केवल IIT का प्रमाणपत्र ही नहीं उनके अन्दर कुछ knowledge और changes भी आने चाहिए
हमने जाना कि ज्ञानावरण कर्म हमारी द्रव्य और पर्याय दोनों की शक्ति रोकते हैं
इनके अभाव में हमारी पर्याय प्रकट होगी
और तभी द्रव्य की शक्ति प्रकट होगी
जब पर्याय शुद्ध होगी तभी द्रव्य शुद्ध होगा
जब द्रव्य शुद्ध होगा तभी उसकी वह पर्याय प्रकट होगी
ऐसा नहीं होता कि द्रव्य शुद्ध हो और उसकी पर्याय अशुद्ध
जैसे बर्तन पर लगी कालिमा को हम शुद्ध नहीं मानते
उसे बर्तन की ही कालिमा कहते हैं
और उपयोग में नहीं लेते
उसी प्रकार प्रकट हुआ ज्ञान ही हमारे काम का है
अन्धकार में, अप्रकट ज्ञान हमारे काम का नहीं है
job के काम आने वाला ज्ञान भी हमारे काम का नहीं है
अपने अन्दर स्व-पर का निश्चय कराने वाले ज्ञान से
ही हमारे ज्ञान पर पड़े आवरण हटेंगे
और उसी से ही आत्मा का विकास होगा
इसीलिए ज्ञान के विकास को आत्मा का विकास कहते हैं
ज्ञानावरण को समझकर हम
आत्मा की पाँच शक्तिओं और उनके असंख्यात भेदों को समझ सकते हैं
जितना उनको आवरित करने वाले कर्मों का अभाव होता है
उतना ही हमारा ज्ञान प्रकट होता जाता है