श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 07
सूत्र - 06
सूत्र - 06
प्रमाण और नयों के माध्यम से पदार्थों को जाने! ज्ञान स्वार्थी हैं? केवलज्ञान से भी ज्यादा उपकारी श्रुतज्ञान? जिनवाणी को श्रुतज्ञान क्यों कहा जाता? अपने ज्ञान को प्रामाणिक कैसे बनाएँ? किसी भी वस्तु के पूर्णतः ज्ञान के लिए किन छह चीज़ों को जानना? सातों नरकों में होता है सम्यग्दर्शन? वर्तमान काल में भी जिन बिम्ब दर्शन से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति? वेदना का अनुभव बनता सम्यग्दर्शन का कारण! अलग-अलग स्वर्गों में सम्यग्दर्शन घटित होने के अलग-अलग कारण क्यों?
प्रमाणनयैरधिगमः।l1.6।l
अनुपमा जैन
सवाईमाधोपुर
WINNER-1
मीना कुलभूषण गुमटे
पुणे
WINNER-2
श्री मती प्रमोद जैन
रोहतक
WINNER-3
अक्षरात्मक ज्ञान कौनसे ज्ञान का प्रकार है?
1. मतिज्ञान
2. श्रुतज्ञान *
3. अवधिज्ञान
4. मन:पर्यय ज्ञान
कल हमने निसर्ग और अधिगम को पर उपदेश रूप समझा था
आज हमने सूत्र 6 प्रमाणनयैरधिगमः के माध्यम से जाना कि अधिगम कैसे होता है?
प्रमाण और नयों के माध्यम से अधिगम होता है, ज्ञान होता है।
जहाँ प्रमाण में वस्तु को पूर्ण रूप से जानते हैं, उसके सभी धर्मों को ग्रहण करते हैं
वहीं नय में वस्तु के किसी एक धर्म को ग्रहण करते हैं
सम्यग्ज्ञान ही प्रमाण है यानि valid knowledge है
सम्यग्ज्ञान में पाँचों ही ज्ञान हैं - मति, श्रुत, अवधि, मन: पर्यय और केवलज्ञान
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान भी प्रमाण कहलाता है
क्योंकि जैसा श्रुत में बताया गया वैसा ही हमने जाना।
जहाँ मति, अवधि, मन:पर्यय और केवल ज्ञान स्व यानि अपने लिए ही प्रयोजनीय हैं अतः उन्हें स्वार्थ ज्ञान कहते हैं
वहीं श्रुत ज्ञान स्वार्थ रूप भी है और परार्थ रूप भी है
श्रुत ज्ञान के दो प्रकार हैं -
अक्षरात्मक यानि अक्षरों से उत्पन्न ज्ञान
और अनक्षरात्मक बिना अक्षरों के उत्पन्न ज्ञान
दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय का श्रुतज्ञान अनक्षरात्मक ही होगा
श्रुत ज्ञान का विशेष महत्व है क्योंकि
यह ज्ञानात्मक है, स्वार्थ रूप है- अपने लिए काम करता है।
यह वचनात्मक है - परार्थ रूप भी है, दूसरों के लिए हित भी कर रहा है।
जिनवाणी को भी उपचार से श्रुतज्ञान कहा जाता है।
वस्तु के स्वरुप को जानने के लिए आज हमने एक और उपाय सूत्र 7 में सीखना शुरू किया - निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान
निर्देश अर्थात् हम क्या जानना चाह रहे हैं? मान लो सम्यग्दर्शन
स्वामित्व का मतलब इसका स्वामी कौन है?
सम्यग्दर्शन का स्वामी अनंत आत्माएं हैं, संज्ञी पंचेन्द्रिय आत्मायें
कल हमने सम्यग्दर्शन के तीन प्रकार और उनके अन्तरंग और बाह्य साधनों को समझा।
आज हमने जाना कि हरेक गति में सम्यग्दर्शन के बाहरी कारण क्या होते हैं
मनुष्य और त्रियंच गति में जाति स्मरण, धर्म श्रवण और जिन बिम्ब दर्शन होते हैं
नरक गति में जाति स्मरण, धर्म श्रवण और वेदना का अनुभव होते है
देव गति में जाति स्मरण, धर्म श्रवण, जिन महिमा दर्शन और देव ऋद्धि दर्शन होते हैं
जिन महिमा दर्शन का तात्त्पर्य जिनेन्द्र भगवान् की महिमा जैसे जन्म, ज्ञान कल्याणक आदि की महिमा जिसे देखकर देव सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं
जैसे जैसे देवों में ऊपर जाते हैं और नरकों में नीचे जाते हैं, सम्यग्दर्शन के बाह्य कारण भी काम हो जाते हैं