श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 25
सूत्र - 10,11
सूत्र - 10,11
संसार समझ में आने लगे तो हमारे दुःख कम हो सकते हैं l दुःख सबको मिलते हैं हमारे साथ कुछ नया नहीं हो रहा l संसारी-जीव ही मुक्त होता है l आचार्य बहुत ही विज्ञता से सूत्र लिखते हैं l सूत्र में संसारी को पहले रखने के कारण l संसार तो अनादि काल से चला आ रहा है l स्वसंवेदन कैसा होता है ? संसारी का स्वसंवेदन होगा मुक्त जीवों का नहीं l संसारी जीवों के दो भेद होते हैं l
संसारिणो मुक्ताश्च।l१०ll
समनस्का मनस्काः।l११ll
विनोद कुमार छाबड़ा
मानसरोवर, जयपुर
WIINNER- 1
Shri. Anita Jain
Hisar, Haryana
WINNER-2
वैशाली आदिकुमार बंड
नागपुर
WINNER-3
समनस्क कौनसे जीव होते हैं?
पेड़ पौधे
चार इन्द्रिय
असंज्ञी पंचेन्द्रिय
संज्ञी पंचेन्द्रिय *
हमने पाँच परावर्तन में जाना कि
लोक के सभी space point पर जन्म लेने के बाद में फिर किसी स्थान पर वापस जन्म लेने से एक क्षेत्र-परिवर्तन पूरा होता है
उन्हीं-उन्हीं चीजों पर, उन्हीं-उन्हीं स्थानों पर, उन्हीं-उन्हीं समयों पर, उन्हीं उन्हीं भावों से, उन्हीं-उन्हीं आयु आदि के साथ में, जो जीव का निरन्तर भ्रमण होता है, इसे ही आचार्य संसार कहते हैं
अगर संसार समझ में आने लगे, तो हम समझेंगे दुःख सबको मिलते हैं हमारे साथ कुछ नया नहीं हो रहा
इससे हमारे दुःख कम हो सकते हैं
मुक्त जीव संसारी-जीव से पूज्य है फिर भी आचार्य ने तीन कारणों से संसारी जीव को पहले रखा है
पहला कारण है - संसारी जीव ही मुक्त होते हैं
उसका उल्टा नहीं होता
इससे उन मतों का खंडन हो जाता है जो भगवान को पुनः संसार में अवतरित करते हैं
दूसरी कारण है - संसारी जीव का वर्णन ज्यादा है और यह मुक्त की अपेक्षा बहुविकल्पीय है
इसी तरह पिछले सूत्र में आठ भेद होने के कारण ज्ञान को दर्शन से पहले रखा
संसारी जीवों में विविधता है वहीं मुक्त जीव सब बिल्कुल एक समान, एक ही भाव में और एक ही स्थान पर हैं
अंतिम कारण है - कि संसारी जीव हमें प्रत्यक्ष हैं, हम इनका स्वसंवेदन कर सकते हैं जबकि मुक्त-जीवों का हम संसारी जीव को कोई संवेदन नहीं होता है
हमने जाना कि केवल आत्मा स्वसंवेदन-गम्य नहीं होती है, यह संसार भी स्वसंवेदन-गम्य है
हम संसारी जीवों के सुख दुःख का संवेदन कर सकते हैं
आचार्य उमास्वामी बहुत ही विज्ञता से सूत्र लिखते हैं, इसलिए आचार्य पूज्यपाद, आचार्य अकलंक, आचार्य विद्यानन्दी, जैसे बड़े-बड़े महान आचार्यों ने इन सूत्रों के ऊपर संस्कृत में बहुत बड़ी-बड़ी व्याख्याएँ लिखी हैं
संसार तो अनादि काल से चला आ रहा है संसार में हमेशा ही चारों गतियों में जीव बने ही रहते है
अनादि काल इतना बड़ा है कि जिसकी कोई beginning ही नहीं है
उससे पहले उससे पहले करके हम तब तक जा सकते हैं जब तक इस जीव ने सब-कुछ ग्रहण भी कर लिया हो और पुनः उसका repetition शुरू हो गया हो
हमने सूत्र 11 से जाना कि संसारी जीवों के दो भेद होते हैं
‘समनस्क’ या संज्ञी यानि मन से सहित
‘अमनस्का’ या असंज्ञी यानि मन से रहित
मन से सहित जीव बड़े-पुरूषार्थ कर सकते हैं अतः उनकी महत्ता है
इसलिए समनस्क को सूत्र में पहले रखा है