श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 26
सूत्र - 11,12
Description
समनस्क जीव महान काम कर सकते हैं l समनस्क जीव किस गति में पाये जाते हैं ? अमनस्क जीव किस गति में पाये जाते हैं ? मन की प्राप्ति और प्रकार l मन एक लब्धि है इसे सम्भाल कर रखो l Coma में मन मूर्छित हो जाता है l मन वाले जीव दुर्लभ हैं l त्रस और स्थावर संसारी जीव l त्रस और स्थावर में अन्तर कैसे किया जाए? त्रस और स्थावर नामकर्म के उदय का प्रभाव l त्रस और स्थावर का भेद चलने और न चलने से नहीं होता l जैन धर्म में ही जीव विज्ञान है l
Sutra
समनस्का मनस्काः।l११ll
संसारिणस्त्रसस्थावरा।l१२ll
Watch Class 26
WINNERS
Day 26
19th May, 2022
Priti Bobra Jain
Mumbai
WIINNER- 1
Shweta Jain
Kanpur
WINNER-2
प्रभा जैन
बेलगाम
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
अमनस्क जीव किस गति में पाये जाते हैं?
मनुष्य गति
तिर्यंच गति *
देव गति
नरक गति
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र 11 में हमने जाना कि मन सहित संज्ञी जीव बड़े पुरूषार्थ कर सकते हैं
लेकिन अमनस्क या असंज्ञी जीव बस कर्म-फल का ही अनुभव कर सकते हैं
संज्ञी और असंज्ञी का भेद सिर्फ तिर्यंच गति में होता है
शेष तीनों गति में सिर्फ संज्ञी जीव ही होते हैं
एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी-पंचेन्द्रिय, सब मन से रहित होते हैं
वो पशु, पक्षी जो अक्सर हमें दिखा करते हैं वे संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यंच होते हैं
बिना मन के आत्मा अन्धकार में रहता है
उसे यह भी नहीं मालूम होता कि वे कहाँ पड़े हैं
उनके इन्द्रिय के कारण से संवेदन होगा
हमने जाना कि वीर्यान्तराय कर्म और नो-इन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से द्रव्य और भाव मन की प्राप्ति होती है
भाव मन कर्म के क्षयोपशम से जनित होता है
यह हमारी ज्ञानात्मक परिणति है
इसके माध्यम से ही हम विचारों का आदान-प्रदान करते हैं
द्रव्य मन हमारे शरीर में हमारे हृदय के अन्दर एक आठ पंखुड़ी के आकृति की एक विशिष्ट रचना होती है
यह मन की पुद्गल वर्गणाओं से बनी एक पौद्गलिक रचना है
यह शरीर नामकर्म के उदय से हुई है
भाव मन और द्रव्य मन की उत्पत्ति करने वाले कर्म अलग हैं और दोनों के संयोग से हमारे अन्दर मन का कार्य चलता रहता है
हमने जाना की मन एक लब्धि है और हमें इसे सम्भाल कर रखना चाहिए
किसी के कुछ कह देने या सुन लेने से विचलित हो कर depression में नहीं जाना चाहिए
अमनस्क की अपेक्षा मन वाले जीव कम हैं
अतः मन को संभाल ने के लिए हमें ऐसे विचार जो किसी को दुःख पहुँचाए नहीं करने चाहिए
हम इस मन के उपयोग से ही इस तरह की सैद्धान्तिक बातें सुन पा रहे हैं और समझ पा रहा हैं
सूत्र 12 में हमने संसारी जीव के दो भेद - त्रस और स्थावर को समझा
त्रस का अर्थ है चलना
सैद्धान्तिक रूप से त्रस-जीव को त्रस नाम कर्म के उदय से त्रस पर्याय मिली हुई है
फिर चाहे वह जीव मूर्छित, सुप्त या अचल हो
स्थावर नामकर्म के उदय से जिनको यह पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति रूप पर्याय मिलती हैं उन्हें स्थावर-जीव कहते हैं
त्रस और स्थावर का भेद चलने और न चलने से नहीं होता
जैसे- वायु चलती है, पानी बहता है, अग्नि बहती है मगर ये सब त्रस नहीं हैं, स्थावर हैं
संसारी-जीवों के भावों, भेदों आदि में विविधता के ज्ञान को ही जीव विज्ञान कहते हैं
जीव विज्ञान नाम से ही एक पुस्तक श्री तत्त्वार्थ सूत्र के अध्याय दो पर पूज्य श्री के प्रवचनों के आधार पर प्रकाशित हो चुकी है