श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 09
सूत्र -08,09
Description
मौनं सम्मति लक्षणं। निषेध परक भाव नहीं रखना अनुमति का भाव है। अजीव अधिकरण के भेद मे निरवर्तना। प्लास्टिक सर्जरी अजीव अधिकरण मूल गुण निर्वर्तना में आ सकती है। निक्षेप चार प्रकार का होता है। निसर्ग किसे कहते है ?
Sutra
आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ।।6.8।।
निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् ।।6.9।।
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WINNERS Day 09
10th Aug, 2023
Charu Jain
Delhi
WINNER-1
Shalu Jain
Rohini Delhi
WINNER-2
Aruna Jain
इंदौर
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
बिना देखे चीज़ें रखना उठाना कौनसा निक्षेप है?
अप्रत्यवेक्षित निक्षेप*
दुष्प्रमष्ट निक्षेप
सहसा निक्षेप
अनाभोग निक्षेप
Abhyas (Practice Paper)
Summary
मुनिश्री पूछते हैं कि क्या हिंसक चमड़े का व्यापार आपकी अनुमति से चल रहा है?
चमड़ा छोड़ने के संकल्प के अभाव में,
हमें वहाँ "मौनं सम्मति लक्षणं" लगाना चाहिए
अर्थात् उसमें हमारी मौन स्वीकृति है
इस नई व्याख्या में मुनिश्री समझाते हैं
कि यदि आप इसे छोड़ने के सवाल पर मौन हो जाते हो तो
आप किसी को भी उसे त्यागने के लिए नहीं कह पाओगे
चाहे वो इस्तेमाल कर रहा हो या नहीं
आप त्यागने का निषेध कर दोगे
यानि कहीं न कहीं आपकी उसमें अनुमति होगी
इसलिए जैन दर्शन, हर अनुपयोगी चीज का संकल्प पूर्वक त्याग लेकर, भीतरी पापास्रव से बचने को कहता है
सूत्र नौ निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् में हमने अजीव अधिकरण के चार भेद - निर्वर्तना, निक्षेप, संयोग और निसर्ग जाने
निर्वर्तना यानि रचना विशेष, इसके दो भेद होते हैं मूल गुण और उत्तर गुण निर्वर्तना
मूल गुण निर्वर्तना में शरीर, वचन, मन, प्राण और अपान की विशेष रूप से रचना करते हैं
शास्त्रों में इसकी कुछ विशेष परिभाषा नहीं मिलती
इसलिए मुनिश्री अपने चिंतन से बताते हैं कि इसमें हम शरीरादि के साथ खिलवाड़ करके उन्हें अपने तरीके से बनाने का जो प्रयत्न करते हैं, जैसे
शरीर में चेहरा ठीक करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी करवाना
वचन में दूसरों की स्टाइल में बोलना या गाना
मन को therapy आदि के माध्यम से extra effort करना
जिससे बच्चे दूर रखी हुई चीज को समझ सकें
उनकी memory बढ़ सके आदि
प्राण और अपान में हठयोग आदि से इनकी विशेष रचना करना
तरह-तरह की श्वास उच्छवास की क्रियाएँ करना आदि
उत्तर गुण निर्वर्तना में शरीर आदि को छोड़कर चीजें, पेंटिंग बनाना, बनवाना आदि
इसमें चित्रकारी, लेप्य कर्म आदि आते हैं
हमने जाना कि अजीव अधिकरण में निक्षेपों से भी पापास्रव होता है
ये चार प्रकार का होता है
पहला अप्रत्यवेक्षित निक्षेप जिसमें बिना देखे हुए चीजों को उठाते, रखते हैं
दूसरा दुष्प्रमष्ट निक्षेप जिसमें बुरे तरीके से परिमार्जन करते हैं
जैसे झाडू लगाते समय जीवों को घसीटते जाना
या पानी फैलाते जाना
तीसरे सहसा निक्षेप में हम अचानक से चीजों को उठाकर, जीवों को बिना देखें, कहीं भी रख देते हैं, पटक देते हैं
जैसे घर आते ही बच्चे एकदम से बस्ता फेंकतें हैं
चौथे अनाभोग निक्षेप में बिना देखें, बिना परिमार्जन के चीजें उठाते, रखते हैं
निक्षेप में हम अजीव चीजों को उठाकर अजीव पर ही रख रहे हैं
अजीव इसका आधार है
संयोग में दो प्रकार से पाप आस्रव होता है
पहला अन्नपान संयोग में खाने-पीने की वस्तुओं के संयोग से जीवों की उत्पत्ति होती है जैसे
कई दिनों तक तेल, राई, नमक वगैरह मिलाकर के अचार बनाया
द्विदल और दही का साथ में खाना, जैसे दही-बड़ा
इनके माध्यम से हिंसा भी होती है और रोग भी
दूसरे उपकरण संयोग में उपकरण का संयोग जीवों के वध का कारण होता है
जैसे ठंडी चीज में गर्म चीज डाल देना
खाने की प्लेट बिना ढँके रखने से germs आदि उसमें गिर जाना
उपकरण संयोग हमारे लिए दुःख देने वाला भी हो जाता है जैसे
एकदम से शॉर्ट सर्किट होकर या सिलेण्डर आदि ब्लास्ट होकर चीजें या खुद भी जल जाना
हमने जाना कि मन, वचन और काय की दुष्ट प्रवृत्तियों को निसर्ग कहते हैं
यह भी अजीव अधिकरण में पाप आस्रव का कारण है
इस प्रकार हमें जीव और अजीव अधिकरण विशेष जानकर
अपनी प्रवृत्तियाँ करनी चाहिए ताकि हम पाप आस्रव से बच सकें
आगे अलग-अलग कर्मों की अपेक्षा से आस्रव का व्याख्यान आएगा