श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 19
सूत्र - 19
Description
मध्यलोक की संरचना। सरोवरों में निवास करने वाली देवियों का वर्णन। तीर्थंकर के गर्भ कल्याणक में देवियों की भूमिका। देवियों की आयु का वर्णन। सामानिक और पारिषद जाति के देवों की विशेषता। श्री आदि देवियों के परिवार कमलों का वर्णन। क्या श्री आदि देवियाँ ब्रह्मचारिणी होती हैं?
Sutra
तन्निवासिन्यो देव्यः श्री-ह्री-धृति-कीर्ति-बुद्धि-लक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः ससामानिक-परिषत्काः ॥19॥
Watch Class 19
WINNERS
Day 19
19th October, 2022
Rekha Jain
Vasundhra
WIINNER- 1
Neelam Jain
Rajasthan
WINNER-2
Shobha Vijay Ramchandre
Maharashtra
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
श्री आदि देवियाँ किसकी इंद्राणी होती हैं?
सौधर्म इंद्र की
ऐशान इंद्र की
लौकांतिक देव की
व्यंतर देव की*
Abhyas (Practice Paper):
Summary
1.हमने जाना कि जम्बूद्वीप के कुलाचल पर्वतों पर स्थित प्रत्येक सरोवर में जो कमल हैं उनके ऊपर प्रासाद बने होते हैं
और उनमे कोई न कोई व्यन्तर जाति के देव अवश्य रहते हैं
तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थ में प्रत्येक प्रासाद में एक-एक जिनालय होने का भी उल्लेख मिलता है
यह उल्लेख अन्यत्र नहीं मिलता
सूत्र 19 में हमने सरोवरों में निवास करने वाली देवियों के बारे में जाना
पद्म सरोवर में मुख्य रूप से श्री देवी
महापद्म में ह्री देवी, ह्री मतलब लज्जा
तिगिंछ में धृति देवी, धृति मतलब धैर्य
केसरी में कीर्ति देवी
महापुण्डरीक में बुद्धि देवी
पुण्डरीक में लक्ष्मी देवी निवास करती हैं
भगवान तीर्थंकर के जन्म कल्याणक में नियुक्त छप्पन कुमारी देवियों में ये छह देवियाँ होती हैं
और अन्य देवियाँ रुचिकवर आदि पर्वतों से आती हैं
श्री, ह्री और धृति देवियाँ सौधर्म इन्द्र की आज्ञानुकारिणी होती हैं
और कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी देवियाँ ऐशान इन्द्र की आज्ञा में रहती हैं
माता के गर्भ संस्कार या गर्भ शोधन के समय ये देवियों अपने विक्रिया के भाव से माता के समक्ष कुछ विशेष काम करती हैं
श्री देवी उनकी शोभा बढ़ाती है
ह्री देवी उनके अन्दर लज्जा गुण पैदा करती है
धृति देवी उनके अन्दर धैर्य पैदा कर देती है
कीर्ति देवी उनके अन्दर गुणों का कीर्तन करने का भाव पैदा कर देती है
बुद्धि देवी उनकी बुद्धि को विकसित कर देती है
जिससे माँ देव-देवियों के प्रश्नों का समाधान करती हैं
लक्ष्मी देवी उनकी सेवा में हर तरह का वैभव उनके पास रखती है
इन देवियों की उत्कृष्ट आयु एक पल्य होती है
जो देव लोगों की आयु की अपेक्षा कम है
हमने जाना कि व्यन्तर देव में इन्द्रों के साथ-साथ सामानिक, पारिषद आदि देव होते हैं
लेकिन त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते
ये देवियाँ और सामानिक और पारिषद जाति के देव कमलों पर बने प्रासादों में रहते हैं
श्री, ह्री आदि देवियों का प्रासाद मुख्य कमल के मध्य में बना होगा
और उनके चारों ओर लाखों कमलों यानि उनके परिवार कमलों पर देवों के महल अलग से बने होंगे
परिषद का मतलब होता है - सभा
सभा में तीन प्रकार की परिषद होती हैं - उत्तम, मध्यम, जघन्य
तीनों पारिषद के देव, सामानिक, आभियोग्य, किल्विष, अनीक जाति के देव भी यहाँ पर रहते हैं
कुछ विद्वान इन देवियाँ के और देवों के महलों के अलग होने के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी मानते हैं
आगम में इसका स्पष्ट उत्तर नहीं मिलता
मुनि श्री ने समझाया कि
इनको ब्रह्मचारिणी कहना आगम के परिप्रेक्ष्य में सही नहीं लगता
क्योंकि ये देवियाँ व्यन्तर देवों की मुख्य रूप से इन्द्राणियाँ होती हैं
जब किसी देव की इन्द्राणी हुई तो वह ब्रह्मचारिणी कैसे होगी?
आगम में कहीं भी व्यन्तरों में ब्रह्मचारिणी या ब्रह्मचारी होने का उल्लेख नहीं है
देवियों के बिना रहने वाले सिर्फ ब्रह्मलोक में लौकान्तिक देव हैं
या फिर सोलह स्वर्ग के ऊपर अहमिन्द्र होते हैं