श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 45
सूत्र -31,32
सूत्र -31,32
योनि किसे कहते हैं? जन्म के भेद l सम्मूर्च्छन-जन्म l गर्भ-जन्म l उपपाद-जन्म l सम्मूर्च्छन-जन्म का महत्त्व है l सम्मूर्च्छन को शुरू में रखने के कारण- सम्मूर्च्छन आदि जीवों के अवगाहना का क्रम- 2.जघन्य आयु l उत्कृष्ट आयु उपपाद-जन्म वालों की है l गर्भज जन्म वालों की आयु कम से कम अन्तर्मुहूर्त की होगी l सम्मूर्च्छन आदि जीवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु का क्रम- चार गति के जीवों में यही 3 प्रकार का जन्म रहता है l मनुष्य के प्रकार l लब्धि-अपर्याप्तक मनुष्य गर्भज नहीं होते l योनियों के भेद l
सम्मूर्च्छनगर्भोपपादा जन्म।l31ll
सचित्त-शीत-संवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः।l32।l
Sudhir jain
Bhopal
WIINNER- 1
Rajashree shaha
Koregaon Satara
WINNER-2
Prashant jain
Pune
WINNER-3
मुख्य रूप से उपपाद-जन्म किसका होता है?
केवल देव
केवल मनुष्य
देव और नारकी *
देव और मनुष्य
विग्रहगति समझने के बाद अध्याय दो में हम अब जन्म के भेद और जन्म-स्थान यानि योनी के भेदों के बारे में जान रहे हैं
सूत्र इक्कतीस में हमने जाना कि चार गतियों के सभी जीव तीन तरह से ही जन्म लेते हैं
सम्मूर्च्छन जन्म यानि जीव बिना गर्भ आदि की क्रियाओं के स्वयं ही शरीर योग्य पुद्गल वर्गणाओं को चारों ओर से ग्रहण कर लेता है
इसलिए इस जन्म को सम्मूर्च्छन-जन्म कहते हैं
यह जीव-जन्तु जैसे- कीट-पतंगों, चीटें-चींटियों, एकेन्द्रिय आदि जीवों के होता है
गर्भ जन्म में गर्भ में माता-पिता के संयोग से जीव की उत्पत्ति होती है
शुक्र और शोणित के गरण यानि मिलने से यह कार्य होता है
जहाँ गर्भाधान की क्रिया की जाती है
यह मनुष्यों और तिर्यंचों में दिखाई देता है
और देव और नारकी के होने वाला उपपाद जन्म जिसमें उपपाद-शैय्या या उपपाद-स्थान पर उनका जन्म होता है
उपपाद-शैय्या पर देव एकदम से जन्म लेकर के युवा की तरह बैठ जाते हैं
नारकी बिल में जन्म लेते हैं और ये बिल बड़े क्लेश दाई होते हैं
हमने जाना कि आचार्य अकलंक देव ने इस सूत्र की व्याख्या में जन्मों के क्रम - सम्मूर्च्छन, गर्भ और अंत में उपपाद, के कारणों को समझाया है
पहला कारण है अवगाहना के घटने का क्रम
सम्मूर्च्छन जीव बहुत स्थूल शरीर वाले होते हैं और इनकी अवगाहना 1000 योजन तक हो सकती है जैसे महामत्स्य
गर्भजों की अवगाहना सम्मूर्च्छनों से कम होती है
जैसे योजन की अपेक्षा में उत्तम भोगभूमि में 3 कोस का मनुष्य
उपपाद-जन्म वाले नारकियों और देवों का शरीर और भी छोटा होता है
सातवें नरक के नारकी की अवगाहना मात्र 500 धनुष की होती है
दूसरा कारण है जघन्य आयु का बढ़ता क्रम
सम्मूर्च्छन जीव की जघन्य आयु श्वास का अठारहवाँ भाग होती है
वहीं गर्भाजों की अन्तर्मुहूर्त
और उपपाद-जन्म वालों की दस हजार वर्ष होती है
तीसरा कारण है उत्कृष्ट आयु का बढ़ता क्रम
सम्मूर्च्छन जीव की अधिकतम आयु 1 पूर्व कोटि की होती है
वहीं गर्भजों की 3 पल्य
और उपपाद-जन्म वालों की 33 सागर होती है
हमने जाना कि आयु का क्रम और अवगाहना का क्रम विपरीत है
तिर्यंच गति जन्म और सम्मूर्च्छन दोनों जन्म होते हैं
हमने जाना कि मनुष्य पर्याप्तक और लब्धि अपर्याप्तक होते हैं
इसमें पर्याप्तक मनुष्य ही गर्भज होंगे
और लब्धि अपर्याप्तक सम्मूर्च्छन होंगे
वे अपर्याप्तक-नाम-कर्म के उदय से अपर्याप्त ही होंगे
वे श्वास के अठारहवें भाग में मृत्यु को प्राप्त होंगे
आगे हम सूत्र बत्तीस में योनि में प्रकार और चौरासी लाख योनियों के बारे में समझेंगे