श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 31
सूत्र - 22
Description
काल द्रव्य के क्या उपकार है? परिणाम के प्रकार। क्रिया होने में काल द्रव्य का एक बड़ा रोल होता है। काल के बिना क्रिया नहीं हो सकती। वर्तना किसे कहते है? काल द्रव्य सब द्रव्यों को movement देता है। सब वर्तना, परिणाम और क्रिया के माध्यम से चल रहा है। Present, past, future का dividation व्यवहार काल में घटित होता है।
Sutra
वर्तना-परिणाम-क्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य ॥5.22॥
Watch Class 31
WINNERS
Day 31
16st May, 2023
Neeta Jain
Jabalpur
WINNER-1
Rajni Jain
Satna
WINNER-2
Chitra Jain
Bhilai
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
चेतन द्रव्य में कौन से परिणाम घटित होते हैं
स्वाभाविक
वैस्रसिक
दोनों*
इनमें से कोई नहीं
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने जाना कि निश्चय काल का पहला लक्षण वर्तना है
द्रव्य के अन्दर प्रति समय चल रही प्रवर्तना ही वर्तना है
इसे प्रवर्तमान भी कहते हैं
इसी के माध्यम से प्रति समय प्रति द्रव्य में उसकी सत्ता अनुभूत होती है
वर्तना के बाद प्राप्त पर्यायें व्यवहार काल होती हैं
चेतन द्रव्य में भी दोनों प्रायोगिक और वैस्रसिक परिणाम घटित होते हैं
ये पकड़ में आनेवाले, वैभाविक परिणाम जैसे क्रोध आदि भाव भी होते हैं
और पकड़ में न आनेवाले, शुद्ध आत्माओं में घटित गुण-पर्यायों की अनुभूति वाले स्वाभाविक परिणाम भी होते हैं
ये परिणाम सूक्ष्म और स्थूल होते हैं
हमने जाना कि परिणाम में केवल परिणति होती है
परिस्पन्दन नहीं
जबकि क्रिया में परिस्पन्दन होता है
एक स्थान से दूसरे स्थान रूप गति होती है
जैसे बादलों की रचना में पुद्गल परमाणुओं का परिणमन परिणाम है
हवा चलने और बादल बरसने पर उसकी क्रिया हो गयी
बिना वर्तना के परिणाम और क्रिया संभव नहीं है
परिणाम की तरह क्रियाएँ भी प्रायोगिक और वैस्रसिक होती हैं
प्रायोगिक क्रियाओं में पुरूष आपेक्षित होता है
जैसे गाड़ी चलाना
वैस्रसिक क्रियाएँ स्वयं होती रहती हैं
जैसे वातावरण में, शरीर में होने वाले स्वाभाविक परिवर्तन रूप क्रियाएँ
बाल्य अवस्था से अन्त अवस्था प्राप्त करना भी वैस्रसिक है, प्रायोगिक नहीं
हमने जाना कि परिस्पन्दात्मक यानि एक स्थान से दूसरे स्थान जाने रूप क्रिया में
काल द्रव्य का बहुत बड़ा role है
क्योंकि पहले कोई चीज अपना परिणमन करेगी
फिर वह परिणमन आगे बढ़कर क्रिया का रूप लेगा
शैशव अवस्था से युवास्था और युवास्था से वृद्धावस्था होना भी काल के द्वारा ही हो रहा है
हमारे न चाहने या न करने पर भी ये होगा ही
इन अवस्थाओं में हमें क्रिया और परिणाम महसूस होते हैं
अवस्था के अनुसार शरीर में भी परिणमन होता है
यदि यह अपरिस्पन्दात्मक है तो परिणाम रूप होता है
और यदि सरकने-चलने रूप है तो क्रिया होती है
लेकिन हम एक साथ बाल से युवा नहीं होते
यह प्रति समय चलने वाली सूक्ष्म वर्तना है
जो महसूस नहीं होती
आचार्य हमें अनुमान से जानने के लिए कहते हैं
कि वर्तना के बिना कभी यह घटित नहीं हो सकता
जैसे भात बनने में गैस पर सभी सामग्री रखने के बाद भी आधे घंटे का समय लगता है
वर्तना तो उसमें उसी समय से हो जाती है
पर चावल गलना रूप परिणाम और खदबद रूप क्रिया देर से दिखाई देती है
बिना काल के द्रव्य में स्वाभाविक या वैभाविक परिणमन नहीं हो सकता
यह स्वयं constant रहकर
सब द्रव्यों को movement देता रहता है
जैसे कुम्हार के चाक के नीचे कीली तो constant रहती है
पर उसी धुरी के ऊपर पूरा चाक और उस पर रखी चीजें घूमती हैं
जो constant है वह वर्तना लक्षण वाला परमार्थ या निश्चय काल है
और व्यवहार में हमारे काम आने वाला व्यवहार काल है
जैसे हम बीस वर्ष के हो गये
सूत्र के एक भाग 'वर्तनापरिणामक्रिया:' के अनुसार
ये वर्तना, परिणाम और क्रिया सब साथ चलती हैं
और क्रियाएँ होने के कारण ये सब व्यवहार हैं
अलग विभक्ति-रूप इसके दूसरे भाग 'परत्वापरत्वे च' के अनुसार, व्यवहार में
परत्व यानि थोड़ा सा दूर
और अपरत्व अपेक्षाकृत उससे कम दूर
भी देखते हैं
काल की अपेक्षा ही चीजें दूर यानि परत्व और
किसी काल की अपेक्षा से वही चीज पास यानि अपरत्व होती हैं
चीजें काल सापेक्ष छोटी-बड़ी होती हैं
time theory हमेशा किसी न किसी वस्तु के सापेक्ष ही चलती है
उसी से ही time मापा जाता है
इसका कोई beginning और end point नहीं है
भूत, भविष्य और वर्तमान का विभाजन भी काल सापेक्षिक ही होता है