श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 09
सूत्र - 05
सूत्र - 05
द्रव्य की नित्यता और अनित्यता (परिणमनशीलता)। द्रव्य अवस्थित भी है और अनवस्थित भी (Theory of relativity)। द्रव्य अरूपी भी हैं। पुद्गल द्रव्य रूपी है। जहाँ रूप(वर्ण) है, वहाँ स्पर्श, रस और गंध भी होंगे। 'रूपी' का अर्थ। संसारी जीव रूपी है। जो भी colourful चीजें हैं, सब पुद्गल हैं। अंधेरा भी पुद्गल है। Science केवल पौद्गलिक जगत observable universe को जानता है। इस पाँचवें अध्याय के द्वारा हमें बच्चों को जैन science से परिचय कराना चाहिए। Einstein का सिद्धांत e=mc² यदि केवल non-living things पर ही apply होता है, तो हमें उसे अधूरा ही समझना चाहिए। जो वास्तव में science का student होगा, वह science की theories पर भी अपने तर्क के द्वारा question arise करने की हिम्मत रखेगा।
रूपिणः पुद्गलाः।।5।।
Chanchal jain
Delhi
WINNER-1
Anita Saraogi
Delhi
WINNER-2
Bharti Mahavir Akkarbote
Pune
WINNER-3
निम्न में से कौनसा द्रव्य रूपी है?
पुद्गल*
धर्म
अधर्म
आकाश
हमने समझा कि यदि द्रव्य नित्य है तो हम सभी चीजों को अनित्य क्यों कहते हैं?
बारह भावना में पहली भावना अनित्य भावना क्यों है?
मुनि श्री ने हमें समझाया कि द्रव्य का नित्यावस्थितपना हंसमुख लड़के की तरह है
अवस्थितपना यानि अपने स्वभाव में स्थित रहना उसका मुख्य गुणधर्म है
लेकिन अवस्थित होने के साथ-साथ वह अनवस्थित, परिणमनशील और परिवर्तनशील भी है
इसे तिल में तेल के उदाहरण से नहीं समझना चाहिए
क्योंकि तिल से तेल निकाला जा सकता है
वह हमेशा नहीं रहता
अतः द्रव्य सत् और असत् दोनों रूप में रहता है
सत् में असत् और असत् में सत् की अपेक्षा है
वह अवस्थित भी है और अनवस्थित भी है
वह अनवस्थित होने के कारण से ही अवस्थित है
यही theory of relativity है
सूत्र में आचार्य ‘नित्यावस्थितारूपाणि’ के स्थान पर विभक्ति तोड़कर "नित्य-अवस्थितानि अरुपाणि" का प्रयोग कर बताते हैं कि
अभी तक सभी द्रव्य - धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और जीव नित्य और अवस्थित तो हैं
लेकिन सभी अरूपी नहीं हैं
सूत्र पाँच रूपिणः पुद्गलाः को यहाँ जोड़ने से अर्थ निकलता है कि
पुद्गल द्रव्य रूपी है
और धर्म, अधर्म, आकाश और जीव अरूपी हैं
रूपी को प्राकृत में रूवी कहते हैं
इसका अर्थ सौंदर्य नहीं है
जिसका जो colour है वही उसका रूप है
और वो सब पुद्गल हैं
जहाँ रूप होगा, वहाँ स्पर्श या touch, रस या taste और गंध या smell भी होंगे
अरूपी में ये सब नहीं होंगे
'जीवाश्च' शब्द में ‘च’ शब्द का सम्बन्ध पिछले और अगले दोनों सूत्रों से होता है
अतः जीव रूपी भी होते हैं और अरुपी भी
उसके अन्दर दोनों गुणधर्म हैं
रूपी होने के कारण से वह संसार में होता है
लेकिन वह अपने अरूपी स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता
उसमें विकृति आने से वह रूपी हो जाता है
पुद्गल के अन्दर चार गुणधर्म हैं- स्पर्श, रस, वर्ण और गंध
आचार्य ने इनमें से वर्ण को highlight किया है
अंधेरा भी एक रूपी द्रव्य है, पुद्गल है
क्योंकि वह दिखाई देता है
उसमें dark colour है
हमने देखा कि Science केवल दृश्यमान, पौद्गलिक observable universe को जानता है
इसमें हर चीज का रूप है
इसे materialistic universe भी कहते हैं
Matter वस्तुतः रूपी या पौद्गलिक है
बाकी की चीजें हमें energy मतलब जीवत्त्व के रूप में feel करनी पड़ती हैं
इससे matter के साथ energy भी जुड़ जाती है
Einstein ने इसपर formula e=mc² बनाकर Nobel prize जीता
चूँकि science को materialistic और physical बने रहना है
वह energy को जीवत्व रूप में नहीं स्वीकारता
और यह सिद्धांत केवल non-living things पर ही apply करता है
अतः यह अधूरा है
मुनि श्री कहते हैं कि science के students को वैज्ञानिक सिद्धांतों को भी तर्क से question करना चाहिए
लेकिन सभी पढ़े-लिखे लोग science को as it is accept कर लेते हैं
यह अंधविश्वास ही है
मुनि श्री कहते हैं कि आप science पर भी question mark लगा सकते हैं
अगर e=mc² में अगर mass में living being नहीं आते तो
conscious के साथ में रहने वाले चैतन्य पदार्थ की energy कहाँ जाएगी?
आज लोगों को इस पर discussion करने की हिम्मत करनी चहिये
जगह-जगह conference करके इन विषयों पर चर्चा करनी चाहिए
पाँचवें अध्याय में मुनि श्री ने jain science, जैन cosmology का ज्ञान बड़ी ही सरलता से दिया है
इसके माध्यम से हमें IIT आदि पढ़ रहे और research courses कर रहे बच्चों का जैन science और उसकी terminology से परिचय कराना चाहिए
ताकि वे इसे modern science से relate कर पायें
और समझ सकें कि modern science कितनी उथली-उथली ऊपर-ऊपर की बातें करता है