श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 21

सूत्र - 32,33

Description

व्यवहार नय जुसूत्र का मतलब? अर्थ नय और शब्द नय लिंग व्यभिचार किसे कहते हैं शब्द नय का आश्रय लिया समभिरूढ़ नय एवं भूत नय चार अर्थ नय और तीन शब्द नय इस प्रकार से सात नय होते हैं

Sutra

सदसतोरवि शेषाद् -यदृच्छोप लब्धेरुन्मतवत् ।।1.32।।

नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढैवंभूतानयाः ।।1.33।।

सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्गः


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WINNERS

Day 21

23rd March, 2022

Richa Jain

Boston USA

WINNER-1

Abhilasha Garibe

Nagpur

WINNER-2

Ankita Ankit Jain

Indore

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

कौन से नय की अपेक्षा से जब पूजा करेंगे तभी पुजारी कहलाऍंगे?

  1. एवंभूत नय *

  2. नैगम नय

  3. निश्चय नय

  4. समय विरूण नय


Abhyas (Practice Paper) : https://forms.gle/5KZPHr3ENfyxQyZG6

Summary


  1. प्रमाण ज्ञान के पश्चात् नय ज्ञान को समझते हुए हमने जाना कि संग्रह नय में सब वस्तुओं का एक साथ संग्रह करके कहते हैं

    • जैसे दुनिया में द्रव्य


  1. तो व्यवहार नय में संग्रह में व्यवहार अर्थात भेद करते हैं

    • जैसे द्रव्य के भेद हैं जीव और अजीव

    • इसी तरह जीव के भेद हैं संसारी और मुक्त

    • ऐसे ही जब तक भेद सम्भव हो तब तक व्यवहार नय चलेगा


  1. वस्तु कथंचित भेद रूप है और कथंचित अभेद रूप

  2. जो वस्तु को एकान्त से भेद या अभेद रूप मानता है वह एकांत मिथ्यादृष्टि है

एकान्त रूप से भेद या अभेद मानना भी भेदा-भेद विपर्यास में आता है

  1. ऋजु मतलब है सीधा और सूत्र का अर्थ है धागा

  2. ऋजु सूत्र नय से हमें एक समय की परिणति का ज्ञान होता है

  3. इसके दो भेद होते हैं

    • पहला सूक्ष्म यानि प्रति समय हो रही परिणति का ज्ञान

    • दूसरा स्थूल जैसे किसी मनुष्य की अस्सी वर्ष की आयु है, तो स्थूल ऋजु सूत्र नय से वह 80 साल तक मनुष्य ही है


  1. शब्द नय के अनुसार जो शब्द में प्रयुक्त हो रहे हैं वे लिंग, वचन, साधन, पुरुष, इत्यादि दोषों की निवृत्ति करें

    • जैसे पट वस्त्रम में लिंग व्यभिचार है

    • वर्षः ऋतु में वचन व्यभिचार


  1. सूत्र “सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्गः” में भी वचन व्यभिचार है

    • क्योंकि चारित्राणि बहुवचन है और

    • मोक्ष मार्गः एक वचन है


  1. समभिरूढ़ नय के अनुसार जिस शब्द का जो अर्थ है, वह शब्द उसी के अर्थ के रूप में ग्रहण करना चाहिए उसके अन्य पर्यायवाची शब्दों को नहीं

    • जैसे इन्द्र उसी के लिए कहा जाएगा जो ऐश्वर्य की स्थिति में हो और

    • शक्र उसी को कहा जाएगा जो कुछ समर्थता का कार्य कर रहा है


  1. एवंभूत नय यह कहता है जब वस्तु जिस कार्य के रूप में परिणत होती हुई दिखाई देगी आप उस समय उसको वैसा कहेंगे तो हम स्वीकारेंगे

    • जैसे मंदिर के पुजारी को सिर्फ तभी पुजारी कहेंगे जब वह पूजा कर रहा होगा


  1. हमने जाना इन सात नयों के माध्यम से वस्तु के स्वरूप का ज्ञान किया जाता है

  2. नैगम, संग्रह, व्यवहार और ॠजू सूत्र अर्थ नय होते हैं

  3. वहीं शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत शब्द नय होते हैं

    • क्योंकि इनका ज्ञान शब्दों से सम्बन्धित है


  1. इसी तरह नैगम, संग्रह और व्यवहार द्रव्यार्थिक नय की श्रेणी में आते हैं क्योंकि ये द्रव्य को ग्रहण करते हैं

  2. ॠजु सूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत को पर्यायार्थिक नय क्योंकि ये पर्याय को अपना विषय बनाते हैं