श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 12
सूत्र - 09
सूत्र - 09
तीर्थ सिद्ध कौन है ? प्रत्युत्पन्न नय से रत्नत्रय ही तीर्थ है। चरित्र की अपेक्षा से सिद्ध। चारित्र में भूतपूर्वनय का आलम्बन। प्रत्येकबुद्ध और बोधितबुद्ध सिद्ध। ज्ञान की अपेक्षा से सिद्ध। अवगाहना से सिद्ध। सिद्धों की उत्कृष्ट और जघन्य अवगाहना। सिद्धों में अन्तराल। संख्या की अपेक्षा सिद्धों में अन्तर। क्षेत्र की अपेक्षा से अल्पबहुत्व घटित करना। काल की अपेक्षा से अल्पबहुत्व।
क्षेत्र-काल-गति-लिंङ्ग-तीर्थ-चारित्र-प्रत्येकबुद्ध-बोधित-ज्ञाना-वगाहनान्तर-संख्याल्प-बहुत्वत: साध्या:॥10.9॥
13, May 2025
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जिन सिद्धों को पर उपदेश के माध्यम से वैराग्य की प्राप्ति हुई हो वे क्या कहलाते हैं?
प्रत्येक बुद्ध
बोधित बुद्ध*
उपदेशित सिद्ध
उपदेश बुद्ध
सिद्धों के बारे में विशेष रूप से जानते हुए हमने जाना
हम उनमें तीर्थ से अन्तर डाल सकते हैं।
कौन किन तीर्थंकरों के तीर्थ में सिद्ध हुए?
जैसे राम भगवान मुनिसुव्रतनाथ भगवान के तीर्थ में सिद्ध हुए।
भरत, बाहुबली भगवान तो तृतीय काल में ही सिद्ध हो गए
ये अभी महावीर भगवान के समय के हैं।
इससे हमारे भावों में अन्तर पड़ सकता है।
यह सब तीर्थ व्यवहार के होते हैं
प्रत्युत्पन्न नय की अपेक्षा से तो सभी अपने रत्नत्रय तीर्थ में सिद्ध होते हैं।
रत्नत्रय तीर्थ होता है क्योंकि इसी से तिरते हैं।
चारित्र की अपेक्षा से
चारित्र चौदहवें गुणस्थान तक होता है।
सिद्ध होते समय चारित्र से रहित होते हैं
न चारित्र होता है, न अचारित्र।
लेकिन just उसी समय पर देखें तो
चौदहवें गुणस्थान में सबके अन्दर सम्पूर्ण यथाख्यात नाम का चारित्र होता है।
और पीछे देखें तो सामायिक, छेदोपस्थापना और सूक्ष्म-साम्पराय चारित्र तो सबके पास होता ही है।
विशेष में हम पूछ सकते हैं कि इन्हें परिहारविशुद्धि संयम हुआ या नहीं।
भूतप्रज्ञापन नय की दृष्टि से
बिना किसी के उपदेश के विरक्त हुए सिद्ध प्रत्येकबुद्ध होते हैं।
और जिन्हें पर के उपदेश से वैराग्य होता है वे बोधितबुद्ध होते हैं।
ज्ञान की अपेक्षा से
सिद्ध होते समय और होने से पहले भी केवलज्ञान होता है।
भूतप्रज्ञापन नय से अन्तर डालने में आता है
कि पहले उनके पास कितने ज्ञान थे
कोई सिर्फ मति-श्रुत ज्ञान से भी मोक्ष जा सकते हैं
या किसी को तीन या चार ज्ञान हो सकते हैं।
अवगाहना की अपेक्षा से भी उनमें अन्तर होता है
हमारा आत्मा और शरीर आकाश के जितने प्रदेश घेरता है, वह अवगाहना कहलाता है।
उत्कृष्ट 525 धनुष और जघन्य साढ़े तीन हाथ की अवगाहना से सिद्ध होते हैं।
आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त की आयु में केवलज्ञान और मोक्ष हो सकते हैं।
तब तक उनकी अवगाहना साढ़े तीन हाथ की अवश्य हो जाएगी।
इन दोनों के बीच में असंख्यात विकल्प बन जाते हैं।
बाहुबली भगवान 525 धनुष, आदिनाथ भगवान 500 धनुष और महावीर भगवान सात हाथ की अवगाहना से सिद्ध हुए।
सिद्ध होकर उनकी अवगाहना उससे कुछ कम होकर बनी रहती है।
सूत्र में अन्तर का अर्थ है
कि निरन्तर सिद्ध हो रहे हैं या बीच में अन्तर आ रहा है।
एक सिद्ध होने के बाद जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह महीने का अन्तर पड़ता है।
6 महीने के अन्तराल के बाद नियम से सिद्ध होते हैं।
भले ही भरत क्षेत्र में सिद्धि नहीं है
लेकिन विदेह क्षेत्र में इतने समय में सिद्धि होती ही रहती है।
अगर छह महीने के अन्तराल में नहीं हुई तो छह महीने के अन्त में आठ समयों में वह सारी सिद्धि हो जाएगी।
संख्या का मतलब है कहाँ पर ज्यादा और कहाँ पर कम सिद्ध होते हैं।
द्वीप समुद्रों में सबसे कम समुद्र से सिद्ध होते हैं।
ढाई द्वीप में सबसे कम लवण समुद्र से,
उससे संख्यात गुणे कालोदधि समुद्र से,
उससे संख्यात गुणे जम्बूद्वीप से,
उससे संख्यात गुणे धातकीखंड से
और उससे संख्यात गुणे पुष्करार्ध द्वीप से सिद्ध होते हैं।
अल्पबहुत्व मतलब किसमें कम, किसमें ज्यादा
जो किसी भी अपेक्षा से घटित किया जा सकता है।
जैसे क्षेत्र की अपेक्षा से भरत और ऐरावत से ज्यादा सिद्ध विदेह क्षेत्रों से होते हैं
क्योंकि वहाँ हमेशा सिद्ध बनते हैं जबकि यहाँ काल विशेष में ही होते हैं।
काल की अपेक्षा से चतुर्थ काल दुःखमा-सुखमा में सबसे ज्यादा सिद्ध होते हैं।
इन क्षेत्र, काल आदि बारह अपेक्षाओं से हमें सिद्ध भगवान को साध लेना चाहिए।
उनके बारे में विशेष ज्ञान ले लेना चाहिए।
यह मोक्ष तत्त्व ही तत्त्वार्थसूत्र में अन्तिम तत्त्व है।