श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 27
सूत्र - 30,31
Description
‘क्षेत्रवृद्धि’ दोष पूर्ण है। स्मृति का अंतर्धान।
Sutra
ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि ॥7.30॥
आनयन प्रेष्यप्रयोग-शब्दरूपानुपात पुद्गलक्षेपाः ॥7.31॥
Watch Class 27
WINNERS Day 27
18th, Jan 2024
Tripti Jain
Agra
WINNER-1
Uday Jain
Jalgaon
WINNER-2
डॉ मगन जैन
आष्टा , मध्य प्रदेश
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
अपने कार्य के लिए मर्यादा के बाहर किसी को भेज कर काम करा लेना कौनसा दोष है?
आनयन
प्रेष्य प्रयोग*
रूपानुपात
पुद्गल क्षेप
Abhyas (Practice Paper):
Summary
दिग्व्रत के चौथे दोष क्षेत्रवृद्धि में हम सीधे ऊर्ध्व, अधो, तिर्यग् दिशा में सीमा का उल्लंघन तो नहीं करते
मगर लोभ के कारण एक दिशा में plus और दूसरी में minus कर लेते हैं
जैसे अगर पूर्व और पश्चिम दोनों दिशा में 500 किलोमीटर की मर्यादा है
तो काम पड़ने पर उसे 550 किलोमीटर पूर्व और 450 किलोमीटर पश्चिम कर लेते हैं
इसलिए यह तिर्यग् गतिक्रम से भिन्न है
पाँचवें स्मृत्यन्तराधानानि दोष में स्मृति का अंतर्धान हो जाता है
यानि स्मृति ही चली जाती है कि व्रत लेते समय क्या limit बनाई थी
चूँकि दिग्व्रत को रोजाना याद करने की ज़रुरत नहीं पड़ती है
कि कितने किलोमीटर जाना है
तो कुछ समय में इसे हम भूल जाते है
इसलिए गुणव्रती को अपनी diary maintain करनी चाहिए
जिसमें वह उनके व्रतों की list रखे
जैसे अपने व्यापार का लेखा-जोखा रखता है
वर्धमान स्त्रोत आदि चौंसठ, अड़तालीस अधिक संख्या के व्रतों को भी हमें डायरी में maintain करना चाहिए
इससे व्रतों की स्मृति भी रहेगी और उनका बहुमान भी दिखेगा
नहीं तो lockdown, घर के कामों में, hospital के चक्कर आदि में उलझ कर
हम सब भूल जाते हैं
सूत्र इक्कतीस आनयन प्रेष्यप्रयोग-शब्दरूपानुपात पुद्गलक्षेपाः में हमने देशव्रत के पाँच दोष जाने
देशव्रत में हम दिग्व्रत की मर्यादा के अंदर ही
गमनागमन की छोटी मर्यादा
कुछ समय के लिए बनाते हैं
चूँकि मर्यादा से बाहर स्थूल और सूक्ष्म पापों का त्याग हो जाता है
इसलिए रत्नकरण्डक श्रावकाचार में इन्हें महाव्रत के रूप में गिना है
इसका पहला दोष है आनयन
अर्थात बुलाना
काम पड़ने पर हम मर्यादा के बाहर नहीं जा सकते
तो बाहर से किसी को बुलाना
कोरोना ने सबको लम्बे समय तक
घर के अन्दर रहने का अभ्यास तो करा दिया है
यह आगे व्रत के अभ्यास में काम आएगा
देशव्रत अलग-अलग तरह के होते हैं
अगर किसी का एक दिन घर के अंदर रहने का नियम है
और सामने ठेले वाले से उसे कोई जरूरत की चीज लेनी है
तो नियमानुसार वह उससे सामान नहीं ले सकता
मगर वह उसे बुलाकर घर में सामान रखवा ले
तो यह आनयन हो गया
दूसरे दोष प्रेष्य प्रयोग अर्थात दूत का प्रयोग
यानि जो दूसरे जाने योग्य हैं
जैसे घर का नौकर आदि
उन्हें मर्यादा के बाहर भेजकर अपना काम करालें
तीसरे दोष शब्द अनुपात में
हम मर्यादा के बाहर विचरण करते लोगों को
indirectly किसी तरह के शब्द करके जैसे खकारना, ताली बजाना, mobile की ringtone बजाना आदि से
इशारा करते हैं ताकि वह हमारे पास आ जाये
और हम से बात कर ले
चौथे रूपानुपात दोष में शब्द का नहीं, रूप का अनुपात करते हैं
balcony आदि में इस तरह घुमते हैं कि वो हमें देख ले
और पास आ जाए
पाँचवें दोष पुद्गलक्षेपाः में हम कंकड़, कागज का लड्डू, तीर आदि बनाकर इस तरह फेंकते हैं
कि उसे पता पड़ जाए
और फिर हम उससे अपना काम बना पायें
आचार्य कहते हैं कि ये तरीके तब दोष में आते हैं
जब हमने मर्यादा बना रखी है
पर हम काम के लिए उसे तोड़ना नहीं चाहते
जैसे अगर हमने मौन रखा है
और हम काम लिख कर या हूँ हूँ करके बताना
ये भी सूक्ष्मता से मौन में दोष हो जाएगा
निर्दोष मौन में हम कोई इशारा भी नहीं करते
मौन में एहसास ही नहीं होना चाहिए कि यह व्यक्ति यहाँ है या नहीं है
हमें मन से मौन होना चाहिए
वचन बोलने का भाव ही नहीं होना चाहिए
वचन से मौन तो सामान्य है
मन से मौन निर्दोषता के साथ है