श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 34

सूत्र - 19,20

Description

4 इन्द्रियों के विषयों का ज्ञान सभी को मतिज्ञान से ही होता है l स्वाद इन्द्रिय लेती है और जानकारी आत्मा को होती है l आत्मा का काम केवल जानना है l इन्द्रिय अचेतन नहीं है क्योंकि वह ज्ञान इन्द्रिय है l इन्द्रिय हमारे लिये कर्ता है या करण है? बहिरात्मा से अन्तरात्मा कैसे बने? ऐसी meditation की practice हमें औरों को भी कराना चाहिए l स्पर्श और स्पर्शन में अन्तर l इन्द्रियाँ क्रम-क्रम से हमको मिलती है l एक कर्ता, एक करण और एक कर्म का सिद्धान्त l

Sutra

स्पर्शनरसनघ्राणचक्षु:श्रोत्राणि।l19।l

स्पर्श-रस-गंध-वर्ण-शब्दास्तदर्था:।l२०ll

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WINNERS

Day 34

13th June, 2022

मंजु सुनील जैन

अम्बाला कैन्ट

WIINNER- 1

Jitendra Jain

Jagdalpur

WINNER-2

Arvind Doshi

Pune

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

यदि किसी जीव में घ्राण इन्द्रिय है, तो उसमें निम्न में से क्या होगी ही?

  1. मन की उपस्थिति

  2. कर्ण इन्द्रिय

  3. रसना इन्द्रिय *

  4. चक्षु इन्द्रिय

Abhyas (Practice Paper):

Summary

  1. हमने जाना कि पांच इन्द्रिय में से सिर्फ चक्षु-इन्द्रिय के विषय का ज्ञान, आत्मा को direct होता है

    • इसके अलावा आत्मा स्पर्श, रस, गंध या शब्द का direct ज्ञान नहीं करती

    • इनको मतिज्ञान के माध्यम से ही जाना जाता है

    • फिर चाहे वो अवधिज्ञानी, मन:पर्यय ज्ञानी या केवलज्ञानी हो

    • केवलज्ञानी के तो इन्द्रियाँ काम ही नहीं करती

  2. आत्मा का काम केवल जानना है

  3. इन्द्रिय ज्ञान लेकर आत्मा को जानकारी देती हैं

    • जैसे रसना इन्द्रिय पदार्थ के रस का ज्ञान लेकर आत्मा को जानकारी देती है

  4. सूँघने में नहीं आने पर या taste नहीं hone पर चिन्ता इन्द्रिय को नहीं होती बल्कि ‘आत्मा’ को होती है

    • कि कहीं यह कोरोना का लक्षण तो नहीं

  5. ज्ञान देना, ज्ञान लेना, ज्ञान का माध्यम बनाना, सब काम आत्मा का है

  6. हमने जाना कि इन्द्रिय अचेतन नहीं हैं क्योंकि वह ज्ञान-इन्द्रिय हैं

    • उसमें ज्ञान आत्मा ने दिया है

    • फिर इन्द्रिय ज्ञान से जानकारी करके आत्मा को forward करते हैं

  7. इस विवक्षा के अनुसार इन्द्रियाँ हमारे लिए करण हैं

  8. हमने समझा कि इन्द्रिय को कर्ता मानने से आत्मा और इन्द्रिय दोनों ही कर्ता हो जायेंगे

    • इन इन्द्रियों में कर्तृत्व बुद्धि रखने से

    • या अपनी आत्मा और अपनी इन्द्रियों को एक मानने से

    • हम मूढ़ बने रहोगे और मिथ्यादृष्टि या बहिरात्मा कहलायेंगे


  1. हमें बहिरात्मा से अन्तरात्मा या अन्तरप्पा बनने के लिए

    • अपनी आत्मा और इन्द्रियों के बीच में difference करना होगा

    • समझना होगा कि उपयोग-स्वभाव वाला आत्मा कर्ता या subject है और इन्द्रियाँ उसकी knowledge के लिए medium हैं

    • आत्मा, इन्द्रियाँ और उनके objects तीनों अलग अलग चीजें हैं

    • इसे हम कर्त्ता, करण और कर्म के सिद्धांत से भी समझ सकते हैं

      1. जिसमें आत्मा कर्त्ता, इन्दिर्याँ करण और objects कर्म होते हैं


  1. अन्तरप्पाओं को इसी तरह फर्क करने की practice करनी चाहिए और दूसरों को करानी भी चाहिए

    • इसमें कुछ नहीं करना! अपने 5 senses को medium बना करके, इनके साथ में जो direct contact है, बस उसको थोड़ा-सा अपने से अलग करना है

  2. सूत्र 20 से हमने जाना कि हर इन्द्रिय के अर्थ मतलब विषय, अलग-अलग object होते हैं

    • जैसे स्पर्शन का स्पर्श,

    • रसना का रस

    • घ्राण का गन्ध,

    • चक्षु का वर्ण और

    • श्रोतृ इन्द्रिय का शब्द

  3. स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन्द्रियाँ का क्रम है

    • जीवों को इन्द्रियाँ इसी क्रम से मिलती हैं

    • अगर आगे वाली इन्द्रिय है, तो पिछली वाली होगी ही

    • जैसे चक्षु है, तो स्पर्शन, रसना, घ्राण तीनों इन्द्रिय होंगी ही