श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 22
सूत्र - 24,25,26,27
Description
भरत क्षेत्र का विस्तार। द्वितीयादिक क्षेत्रों का विस्तार। भरत क्षेत्र का विस्तार 526 6/19 है। कमल आदि की संख्या तो उतनी ही है लेकिन विस्तार दूना दूना होता है। विदेह क्षेत्र से आगे के पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार। क्रम के अनुसार जितना विस्तार भरत क्षेत्र का होगा उतना ही विस्तार ऐरावत क्षेत्र का आ जाएगा। छह पर्वतों और सात क्षेत्रों को अच्छे ढंग से जाना। भरत और ऐरावत क्षेत्र में कालचक्र का परिवर्तन। वृद्धि और ह्रास किसका होता है? कालचक्र के परिवर्तन से क्षेत्र मेँ भी वृद्धि-ह्रास होता है। भू भाग भी चतुर्थ काल की अपेक्षा से कम हुआ है। आज अपने लिए सब चीजें प्रतीकात्मक ही रह गई हैं। काल परिवर्तन के साथ मनुष्यों के लिए भी यह घटोत्तरी और बढ़ोत्तरी होती रहेगी। बारह योजन में फैला चक्रवर्ती का कटक होता है।
Sutra
भरत: षड्विंशति-पंच-योजन-शत विस्तार:षट्चैकोनविंशतिभागा योजनस्य॥3.24॥
‘तद्द्विगुण-द्विगुण-विस्तारा वर्षधर-वर्षा विदेहान्ता:॥3.25॥
उत्तरा दक्षिण तुल्या:॥3.26॥
भरतैरावतयो-र्वृद्धिह्रासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्प्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्॥3.27॥
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WINNERS
Day 22
31nd October, 2022
वंदना जैन जमदाडे
इचलकरंजी
WIINNER- 1
रेनू जैन
टोक
WINNER-2
Reena Jain
Panagar
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
हरि क्षेत्र के कमलों की संख्या से विदेह क्षेत्र के कमलों की संख्या कितनी होगी?
आधी
बराबर*
दो गुनी
चार गुनी
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र चौबीस और पच्चीस में हमने जम्बूद्वीप के क्षेत्रों के विस्तार यानि चौड़ाई के बारे में जाना
भरत क्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस सही छह बटा उन्नीस योजन है
3. भरत क्षेत्र से लेकर इन पर्वतों का और क्षेत्रों का विस्तार विदेह क्षेत्र तक दूना दूना हो जाता है
भरत क्षेत्र से दूना- हिमवन पर्वत
हिमवन पर्वत से दूना- हैमवत क्षेत्र
हैमवत क्षेत्र से दूना- महाहिमवन पर्वत
महाहिमवन पर्वत से दूना- हरि क्षेत्र
हरी क्षेत्र से दूना- निषध पर्वत
निषध पर्वत से दूना - विदेह क्षेत्र
इस तरह से क्षेत्र की अपेक्षा से अगले क्षेत्र का विस्तार चार गुना हो जाएगा
भरत का चार गुना हैमवत
उसका चार गुना हरि
उसका चार गुना विदेह क्षेत्र
इसी तरह से पर्वत से अगले पर्वत का विस्तार चार गुना होगा
हिमवन से चार गुना महाहिमवन
महाहिमवन से चार गुना निषध
वहाँ रहने वाले कमल आदि की संख्या तो समान ही है लेकिन विस्तार दूना दूना होता है
सूत्र छब्बीस उत्तरा दक्षिण तुल्या: के अनुसार विदेह क्षेत्र के नीचे दक्षिण और ऊपर उत्तर की व्यवस्था एक जैसी है
भरत से विदेह तक जैसा बढ़ता हुआ हुए है वैसा ही विदेह से ऐरावत तक घटता हुए क्रम होता है
भरत और ऐरावत
हैमवत और हैरण्यवत
हरि और रम्यक क्षेत्र का विस्तार समान है
इसी तरह पर्वतों में
हिमवन और शिखरी पर्वत
महाहिमवन और रुक्मि पर्वत
निषध और नील पर्वत का विस्तार समान है
सूत्र सत्ताईस में हमने भरत और ऐरावत क्षेत्र में कालचक्र का परिवर्तन को जाना
यहाँ उत्सर्पिणी और अपसर्पिणी में छह कालों के माध्यम से वृद्धि और ह्रास होता है
उत्सर्पिणी काल में वृद्धि और अवसर्पिणी काल में ह्रास होता है
यहाँ वृद्धि और ह्रास से भरत और ऐरावत क्षेत्र का वृद्धि-ह्रास भी समझ सकते हैं
और वहाँ रहने वाले मनुष्य आदि का भी
परन्तु आचार्यों ने मुख्य रूप से क्षेत्र का वृद्धि-ह्रास न लेकर मनुष्य, तिर्यंच आदि का ही वृद्धि-ह्रास लिया है
क्योंकि क्षेत्र का विस्तार तो उतना ही रहेगा
मुनिश्री ने समझाया कि पृथ्वी पर दो तरह के भाग होते हैं
भू-भाग मतलब भूखण्ड जहाँ हम रहते हैं
और जलीय भाग जहाँ पर समुद्र, नदियाँ इत्यादि होते हैं
तो हम मान सकते हैं कि कालचक्र के परिवर्तन से क्षेत्र में वृद्धि-ह्रास का अर्थ भू-भाग का वृद्धि-ह्रास होता है
यानी भू-भाग बढना, जलीय क्षेत्र घटना
या भू-भाग घटना, जलीय क्षेत्र बढ़ना
चौथे काल में बड़े-बड़े मनुष्य होते थे और उनकी संख्या भी बहुत होती थी
जैसे चक्रवर्ती आदि की ऊँचाई पाँच सौ धनुष होती थी
और उनके साठ हजार पुत्र, छियानवे हजार रानियाँ और अपार सेना होती थी
वे सभी इसी क्षेत्र में रहते थे तो हमें मानना पड़ेगा कि क्षेत्र की भी हानि हुई है
मुनि श्री के चिंतन के अनुसार
भू-भाग आज समुद्रों से बाधित हुआ है
प्रशान्त महासागर, अटलांटिक महासागर आदि सब बाद में बने हैं
चीन, अमेरिका या रूस जैसे विदेशों की side के जलीय तत्व से भी बहुत-सा भूखण्ड अवरुद्ध हुआ है
सम्मेदशिखर, अयोध्या आदि तो आज हमें सिर्फ प्रतीकात्मक रूप में मिले हुए हैं