श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 30

सूत्र - 35

Description

कालोदधि औऱ स्वयंभूरमण समुद्र के जीवों की अवगाहना समुद्रों में भोगभूमि और कर्मभूमि की व्यवस्था हैमानुषोत्तर पर्वत के नाम की सार्थकताढाई द्वीप के बराबर ही सिद्ध लोक होता हैढाई द्वीप और सिद्ध लोक का विस्तार

Sutra

प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः॥3.35॥

Watch Class 30

WINNERS

Day 30

11th November, 2022

WIINNER- 1

WINNER-2

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

सिद्धलोक किसके बराबर होता है?

जंबूद्वीप

धातकीखंड द्वीप

पुष्करवर द्वीप

ढाई द्वीप*

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/ibxSj4qBtwRbzYna8

Summary

1.हमने जाना कि समुद्रों के जलचर जीव भी बड़ी-बड़ी अवगाहना वाले होते हैं

    • लवण समुद्र के मुहाने पर यानि किनारे के स्थान पर नौ योजन

    • और बीचों-बीच में अठारह योजन अवगाहना वाले भी मत्स्य होते हैं

    • कालोदधि समुद्र में मुहाने पर अठारह योजन

    • और बीचों-बीच में छत्तीस योजन अवगाहना वाले मत्स्य होते हैं

    • अन्तिम स्वयंभूरमण समुद्र के किनारों पर पाँच सौ योजन

    • और मध्य भाग में एक हजार योजन की अवगाहना वाले मत्स्य होते हैं

  1. किनारों पर छोटी अवगाहना वाले जीव होते हैं और मध्य में बड़ी अवगाहना वाले भी होते हैं

  2. इन समुद्रों में जलचर जीव आदि सब कर्मभूमि के ही जीव कहलाते हैं

    • और ये तिर्यंच पाँचवें गुणस्थान तक प्राप्त कर सकते हैं


  1. हमने जाना कि ढाई द्वीप के बाहर द्वीप-समुद्रों में हमेशा जघन्य भोगभूमि यानि सुखमा-दुःखमा काल की व्यवस्था है

    • यह भोगभूमि अंतिम द्वीप स्वयंभूरमण के मध्य में स्थित स्वयंप्रभ पर्वत तक होती है

    • स्वयंभूरमण द्वीप के शेष आधे हिस्से में और स्वयंभूरमण समुद्र में कर्मभूमि होगी

    • इन भोगभूमियों में मनुष्य नहीं होते हैं

    • केवल तिर्यंच ही होते हैं


  1. सूत्र पैंतीस - प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः में हमने जाना कि मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले ही मनुष्य होते हैं

    • इसमें ढाई द्वीप यानि पूरा जम्बूद्वीप, धातकीखंड और आधा पुष्करद्वीप आता है

    • मानुषोत्तर पर्वत पुष्करद्वीप को आधा विभाजित करता है

    • मनुष्य इसके उत्तर मतलब आगे नहीं जा सकते

    • अतः मानुषोत्तर पर्वत इसकी संज्ञा सार्थक है

  2. पुष्करद्वीप का शेष आधा भाग भोगभूमि में आता है

  3. ऐसा ही विभाजन अंतिम स्वयंभूरमण द्वीप में स्वयंप्रभ पर्वत के कारण होता है


  1. हमने जाना कि चूँकि मनुष्य ढाई द्वीप के अन्दर ही आवागमन, रहना आदि करते हैं

    • अतः इन्हीं स्थानों से उन्हें केवलज्ञान और मोक्षादि की प्राप्ति होना संभव है

    • ढाई द्वीप के बाहर मोक्ष जाने की कोई व्यवस्था ही नहीं है

    • चूँकि जीव कर्म मुक्त होने पर ऊपर गमन करता है

    • इसलिए सिद्धलोक का विस्तार भी ढाई द्वीप के विस्तार जितना होता है

    • इसी में अनंतानंत सिद्ध समाते हैं


  1. ढाई द्वीप का विस्तार पैंतालीस लाख योजन है

    • जिसमें एक लाख योजन जम्बूद्वीप का विस्तार

    • लवणसमुद्र का चार लाख योजन (2-2 लाख योजन जम्बूद्वीप के दोनों तरफ )

    • धातकीखंड द्वीप का आठ लाख योजन

    • कालोदधि समुद्र का सोलह लाख योजन

    • और आधे पुष्करद्वीप का सोलह लाख योजन होता है

  2. इसी पैंतालीस लाख योजन के बराबर ऊपर सिद्ध लोक होता है

    • जहाँ पर सिद्ध भगवान होते हैं

    • इसके बाहर जो असंख्यात द्वीप-समुद्र का स्थान है वह ऊपर खाली रहता है

  3. हमने जाना कि समुद्रों से भी सिद्ध हो जाते हैं

    • क्योंकि बहुत से मुनिराज के ऊपर देवों द्वारा उपसर्ग होते हैं

    • वे उनको समुद्रों में डाल देते हैं

    • तो भी वह सिद्ध हो जाते हैं