श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 01
सूत्र - 01
सूत्र - 01
केवलज्ञानी के ज्ञान के अनुसार अजीव द्रव्यों का वर्णन। केवलज्ञान सब द्रव्यों की सूक्ष्मता को देखता है। सत् और असत् के स्वरूप का वर्णन। absolute truth ही सत् है।Einstein ने universal observer को स्वीकारा है। असत् की पहचान। कोई भी व्यक्ति जो सत् और असत् दोनों को स्वीकारता है वही परम वैज्ञानिक है। जैन science को पढ़कर आसानी से scientist बना जा सकता है। धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल की काया हैं।
अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः।।१।।
Sunita Doshi.
Shreepur(Maharashtra)
WINNER-1
Suvarna shrawak
Puna
WINNER-2
Minal shah
Dewas
WINNER-3
ऐसे कितने द्रव्य हैं जो अजीव रूप हैं और जिनकी काया भी हैं?
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हमने प्रथम अध्याय में सम्यग्दर्शन-ज्ञान के बारे में सुना
और द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ अध्याय में जीव तत्त्व के बारे में जाना
पंचम अध्याय में हम विश्व में जीव तत्त्व के अलावा, अन्य न दिखाई देने वाली चीजों के बारे में जानेंगे
आज वैज्ञानिक खोजना चाहते हैं कि ब्रह्माण्ड के अन्दर कौन-कौन से पदार्थ हैं?
वे सिर्फ उसे स्वीकारते हैं जो prove हो जाता है
लेकिन यहाँ वह बताया जा रहा है जो परम वैज्ञानिक तीर्थंकर महावीर ने अपने केवलज्ञान में देखा
पहले सूत्र अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः में हमने अजीव और काया वाले द्रव्यों को जाना
द्रव्य संग्रह आदि ग्रंथों में छह द्रव्यों का वर्णन आता है
अजीव में जीवत्व का अभाव होता है
इनमें consciousness, ज्ञान, सुख आदि कुछ नहीं होता
जीव में बीच में हम उनकी इन्द्रियों, उनके ज्ञान आदि से अन्तर कर सकते हैं
लेकिन अजीव पदार्थों में केवल प्रत्यक्षदर्शी आत्माएँ ही differentiate कर सकती हैं
क्योंकि केवलज्ञान में ही इन सब द्रव्यों की सूक्ष्मता को देखते हैं
वैज्ञानिकों के experiment और उनके result भी बहुत कुछ जैन शास्त्रों की theory पर based होते हैं
जैसे physics की नवीनतम quantum theory भी पंचास्तिकाय और छह द्रव्यों के स्वरूप को समझ कर जानी जा सकती है
quanta का मतलब परमाणु ही होता है
इसकी ऊर्जा को science energy मानती है
और energy की waves और परमाणु दोनों अलग-अलग हैं
विज्ञान जिसे space field कहता है, उसी को यहाँ पर धर्म, अधर्म और आकाश के नाम से कहा जाता है
संसार के सब पदार्थ अपने-अपने अस्तित्व को धारण किये हुए हैं
और उसके साथ ही चलते हैं
हमने अस्तित्व के दो रूपों को जाना
सत् मतलब पदार्थ की सत्ता
जिसका existence हो
जो अपने आप में absolute हो
इसे निरपेक्ष सत्य कहते हैं
इसका स्वरूप हमेशा एक जैसा ही रहता है
असत् मतलब जिसमें change होता हो
और उस change को भी हम समझ पाएँ
जैसे पदार्थ की कोई पर्याय असत् मतलब नष्ट हो गई और कोई असत् पर्याय उत्पन्न हो गई
प्रत्येक पदार्थ अपनी सत्ता के साथ-साथ असत् धर्म के साथ ही चलता है
इसी को science एक relative theory के रूप में कहता है
Einstein की theory भी इसी physics के ऊपर depend है
उसके अनुसार दो तरह के truth होते हैं- absolute truth और relative truth
Absolute truth को यहाँ सत्
और relative truth को असत् कहते है
क्योंकि वह किसी न किसी के relative होता है
यानी कोई चीज नष्ट हो रही है, बन रही है तब वह हमें दिख रही है
इस ब्रह्मांड के अन्दर दो ही प्रकार के द्रव्य हैं- जीव और अजीव
जीव की तरह अजीव भी अपनी सत्ता - सत् और असत् रूप में रखते हैं
Einstein ने कहा कि absolute truth is known only by universal observer.
पर इस universal observer के विषय में science मौन है
इस वाक्य से समझ आता है कि science भी कहीं न कहीं सर्वज्ञ को स्वीकार करने की स्थिति में है
हमें जो भी दिख रहा है असत् है
वह क्षणभर में बिल्कुल नष्ट हुआ दिखाई देता है
science भी इन्हीं सारी चीजों को observe करती है
इन्हीं पर experiment करती हैं, prove करती है
और theory निकालती है
हमने जाना कि जैन दर्शन के अनेकान्तवाद में
पदार्थों का परिणमन यानि असत्
और पदार्थों का अस्तित्व यानि सत्
दोनों को साथ लेकर चलते हैं
इसके जानकर परम वैज्ञानिक कहलाते हैं