श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 26
सूत्र - 20
सूत्र - 20
ठंड के दिनों में ठंडा भोजन वातकारी होता है। संसारी प्राणी निरंतर सुख प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है। संसारी जीव के दुःख में निमित्त सामग्रियाँ। संसारी जीव के सुख में निमित्त सामग्रियाँ। सुख-दुःख की उत्पत्ति बाहरी निमित्त के कारण होती हैं, अतः हमें इनमें समता रखना चाहिए। सुख-दुःख को 'पर' से उत्पन्न न जानना ही भेद विज्ञान है। जीवन और मरण भी पुद्गल का उपकार है। सभी माता-पिता अपने बच्चों के लिए ही अपना जीवन जी रहे है। चिंता मुक्त होने के लिए अपने लिए जीना सीखो। सुख और दुःख हमारे दृष्टिकोण(attitude) पर निर्भर करता है। स्वयं के लिए जीवन जीना ही सुखदायी है। मरण किस तरह उपकारी है? समाधिमरण के द्वारा जन्म-मरण के चक्कर से छूटा जा सकता है। जन्म-मरण पुद्गल की व्यवस्था है।
सुख-दुःख-जीवित-मरणोपग्रहाश्च॥5.20॥
Manorama Jain
Jaipur
WINNER-1
Manju Jain
Ambala Cantt
WINNER-2
Seema Jain
Muzaffarnagar
WINNER-3
ठंडा भोजन ठंड के दिनों में क्या पैदा करता है?
शीत
वात*
पित्त
कफ
हमने जाना कि बाहरी सामग्रियों की अनुकूलता से ही सुख मिलता है
भीतर सुख का परिणाम सातावेदनीय की उदीरणा से महसूस होता है
बाहरी सामग्रियों के मिलने पर joyfulness, happiness की feeling होती है
जैसे ठंड के समय में गर्म-गर्म भोजन से इन्द्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं
ठंड के दिनों में ठंडा भोजन वातकारी और शारीरिक दर्द का कारण होता है
इस सूत्र के सिद्धांत सभी संसारी प्राणियों पर बिल्कुल fit होते हैं
बाह्य पदार्थों के होने पर, अंतरंग में
सातावेदनीय के उदय-उदीरणा से उत्पन्न सुखजन्य परिणाम को सुख
और असाता की उदीरणा से उत्पन्न पीड़ा को दुःख मानता है
वह निरंतर सुख प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है
हमने जाना कि हम कितनी भी अनुकूलता बनाने की कोशिश करें, प्रतिकूलता सामने आ ही जाती हैं
और उस प्रतिकूलता में निमित्त चीजें हमारे लिये दुःख का कारण होती हैं
जैसे यदि हम सुख से बैठे हैं और कोई अचानक उधारी मांगने, परेशान करने या हमला करने आ जाये
तो उस व्यक्ति की उपस्तिथि भी हमारे लिए दुःख का निमित्त है
उसे देखते ही हम दुखी या क्रोधित हो जायेंगे
उसके आते ही असाता की उदीरणा शुरू हो जायेगी
इसलिये सुख पाने के लिए आदमी हमेशा अच्छे-अच्छे की कोशिश करता है
जैसे अच्छा परिवार
आज्ञाकारी, संस्कारी बच्चे
प्रतिकूलता रहित अच्छा घर
निरन्तर वृद्धि को प्राप्त व्यापार
हमने जाना कि सुख-दुःख को 'पर' से उत्पन्न जानना ही भेद विज्ञान है
इनकी उत्पत्ति बाहरी निमित्त जैसे शरीर, कोई व्यक्ति, अचेतन वास्तु आदि के कारण होती हैं
अतः हमें इनमें समता रखनी चाहिए
भेद विज्ञान से हम दुःख पहुंचाने वाली परिस्थति में विचलित नहीं होते
क्योंकि वो चीजें अपने से अलग हैं
जीवन और मरण भी पुद्गल का उपकार है
क्योंकि आयु कर्म के उदय तक ही जीवन है
और इसकी पूर्णता होने पर मरण हो जाता है
शरीर छूट जाता है
जब तक शरीर होता है
तभी तक हम हैं, परिवार और रिश्तेदार हैं
आज हम दूसरे के लिए जीने को अच्छी मानसिकता मानते हैं
जैसे माता-पिता अपने बच्चों के लिए जीते हैं
हमें जो करना था हमने कर लिया
अब वे बड़े हो जाएँ
settle हो जाएँ
ये पराश्रित सोच है
और चिंता का कारण है
रोगी महिला के उदाहरण से मुनि श्री ने समझाया कि
अच्छे ढंग से निश्चिंत जीने के लिए अपना attitude change करना होगा
बच्चों के लिये नहीं अपने लिए जीना होगा
बच्चों के लिये जीने से
उनकी चिंता पड़ेगी
दुःख बढेगा
और रोग बढेगा
Mentality बदलने से निश्चिंतता आयेगी
तो रोग ठीक होगा
रोग अपने ही भावों से cure होगा
अतः स्वयं के लिए जीवन जीना ही सुखदायी है
Cancer, Tumor, जलोदर आदि रोगों से पीड़ित लोगों के लिए मरण भी उपकार है
क्योंकि वो इन दुखों से छुडाएगा
और अगर समाधिमरण हो जाये तो
जन्म-मरण के चक्कर से भी छूटा जा सकता है
जन्म-मरण में हम एक पक्ष को तो देखते हैं, दूसरे पक्ष से घबराते हैं,
जन्म तो सब चाहते हैं
उसे जन्मदिन कहते हैं
पर मरण इतना बुरा लगता है कि उसे मरणदिन नहीं कटे कहते
पुण्यतिथि कहते हैं
इसमें पुण्य क्या है?
हमने जाना कि जन्म-मरण पुद्गल की व्यवस्था है
मरण हुये बिना जन्म नहीं होगा
जन्म और मरण के बिना संसार नहीं होगा
बिना संसार के मोक्ष क्या होगा?
इस तरह पूरी व्यवस्था ही बदल जायेगी
इसलिए मरण व्यवस्था को स्वीकार करो