श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 10

सूत्र - 4,5

Description

क्षायोपशमिक भावों की विवेचना l क्षायोपशमिक भाव क्या होता है? स्पर्धक क्या होता है और कैसे बनते है? स्पर्धकों के प्रकार l देशघाती स्पर्धक का अर्थ l

केवल ज्ञानावरणीय कर्म में सर्वघाती स्पर्धक है l क्षयोपशम ज्ञान में कुछ स्पर्धक देशघाती और कुछ सर्वघाती l क्षयोपशम- एक क्षय और एक उपशम l क्षयोपशम भाव क्या है? क्षय + उपशम = क्षयोपशम l उदयाभावी क्षय का मतलब क्या है? क्षयोपशम भाव कैसे बनेगा? कौन-कौन से क्षयोपशम भाव हैं? अवधि-ज्ञानावरणीय के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय से क्षयोपशम नहीं हो सकेगा l देशघाती स्पर्धकों के उदय से कुछ ज्ञान प्रकट हो रहा है l अवधिज्ञान के क्षयोपशम में अन्तर किससे आता है? सम्यग्ज्ञान का अर्थ l मिथ्यात्व के उदय के कारण विपरीत ज्ञान को ही अज्ञान की संज्ञा मिल जाती है l क्षयोपशम दर्शन के प्रकार l

Sutra

ज्ञान-दर्शन-दान-लाभ-भोगोपभोग-वीर्याणि च।।४।।

ज्ञानाज्ञान-दर्शन-लब्धयश्चतुस्त्रि-त्रि-पंचभेदा: सम्यक्त्व चारित्र-संयमासंयमाश्च।l५।l

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WINNERS

Day 10

25th Apr, 2022

कुसुम जैन

मंदसौर

WIINNER- 1

रत्नमाला टाकळकर

औरंगाबाद

WINNER-2

Nirmal jain

Pune

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

निम्न में से सबसे स्थूल क्या है?

  1. परमाणु

  2. स्पर्धक *

  3. वर्ग

  4. वर्गणा

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. औपशमिक और क्षायिक भावों के भेदों के बाद सूत्र पांच में हमने - 18 प्रकार के क्षायोपशमिक भाव का वर्णन सुना

  2. हमारी आत्मा में कर्म बन्ध ४ प्रकार से होता है

    • प्रकृति यानि किस तरह का कर्म

    • स्थिति यानि उदय आने से पहले कितने समय तक रहेगा

    • प्रदेश और

    • अनुभाग यानि उसकी फल देने की शक्ति या potency


  1. अनुभाग बन्ध में कम-ज्यादापन स्पर्धकों से होता है

  1. स्पर्धक को हम एक पपड़ी type की समझ सकते हैं जो आत्मा के ऊपर कर्मों के अनुभाग की पड़ गई है

  2. सैद्धांतिक रूप में देखें तो

    • परमाणु के प्रदेश के अन्दर अविभागीय प्रतिच्छेदों की शक्तियाँ होती हैं

    • vh अविभागीय प्रतिच्छेद शक्तियों के समूह से वर्ग बनता है

    • वर्गों के समूह से वर्गणा बनती है

    • और वर्गणाओं के समूह से स्पर्धक बनता है


  1. स्पर्धक के माध्यम से हम उस कर्म की शक्ति का अनुभव कर सकते हैं

  2. ये दो प्रकार के होते हैं

    • सर्वघाती स्पर्धक जो आत्मा के गुण का पूर्ण रूप से घात करते हैं और

    • देशघाती स्पर्धक जोमें आत्मा के गुण का थोड़ा घात करते हैं


  1. सर्वघाती स्पर्धकों के उदय में आत्मा का कोई भी गुण, शक्ति प्रकट नहीं होगी

  2. वहीं देशघाती स्पर्धक के उदय में आत्मा का कुछ गुण प्रकट होगा

  1. केवलज्ञानावरणीय कर्म की अनुभाग शक्ति सर्वघाती है

  2. इसलिए इसके उदय में केवलज्ञान का पूरा का पूरा घात होगा, अंश भी प्रकट नहीं होगा

  3. शेष चार ज्ञान क्षायोपशमिक हैं यानि इनमें कुछ स्पर्धक देशघाती होते हैं और कुछ सर्वघाती

  1. क्षयोपशम अर्थात क्षय और उपशम

  2. यहाँ क्षय का अर्थ सत्तानाश नहीं है

    • अपितु सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय है यानि उनके उदय का अभाव हो गया

    • उनका उदय में न आना ही क्षय है

    • यह आत्मा के विशुद्ध परिणामों की शक्ति से होता है

    • वह पर-प्रकृति में संक्रमित होकर के निकलेगा लेकिन वह स्व उदय में नहीं आएगा


  1. क्षयोपशम में उपशम का अर्थ है सद्वस्था रूप उपशम

    • यानि कर्म जिस अवस्था में है उसको दबाकर रखना, बनाए रखना, सत्ता में से उखड़ न जाए


  1. कर्म का जितने time तक उपशम है उतने time तक उसके उदय का अभाव रहेगा

  1. सर्वघाती कर्म के थोड़े time के इस gap में जब देशघाती कर्म का जब उदय होगा तो उसका फल हम महसूस कर पाएँगे

    • उसके कारण से आत्मा की कुछ शक्ति प्रकट हो जाएगी


  1. क्षयोपशम भाव के कारण चार ज्ञानों में जितना सर्वघाती कर्म का अभाव होगा उतनी तो शक्ति हमारे लिए प्रकट हो जायेगी और जितना देशघाती कर्म का उदय होगा उसके अनुसार हमें उस ज्ञान का फल मिलेगा

  1. क्षायोपशमिक ज्ञान जैसे अवधिज्ञान आदि में जबतक सर्वघाती स्पर्धकों का उदय चलेगा तब तक वह ज्ञान काम नहीं करेगा

  2. उसके अभाव में ज्ञान की शक्ति देशघाती कर्म के रस के अनुसार काम करेगी

    • जैसे जैसे देशघाती रस की शक्ति कम होगी, हमारे ज्ञान में वृद्धि होगी


  1. ज्ञान में सम्यग्दर्शन का सद्भाव होता है और अज्ञान में मिथ्यादर्शन का सद्भाव

  2. कुमति ज्ञान, कुश्रुतज्ञान,विभङ्ग ज्ञान या कुअवधि ज्ञान अज्ञान हैं

  3. चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन और अवधि दर्शन भी क्षायोपशमिक भाव हैं

  4. केवलदर्शन क्षायिक भाव है