श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 24
सूत्र -21
Description
सम्यग्दृष्टि जीव कभी भी भवनत्रिक में जन्म नहीं लेते। संयम के माध्यम से वैमानिक देवों में विशेषता। कषाय सम्यग्दर्शन को छुड़ा भी देती हैं। सम्यक दर्शन से आयु बंध का उदाहण।
Sutra
‘सम्यक्त्वं च’।।6.21।।
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WINNERS Day 24
12th Sept, 2023
Madhu Jain
Chandigarh
WINNER-1
Rajeev Mani Jain
Morena
WINNER-2
Veena Jain
Jaipur
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
राजा श्रेणिक के सम्यग्दर्शन का परिणाम प्राप्त करने पर उसके द्वारा पूर्व में बाँधी गयी नरक आयु घट कर कितनी रह गई?
22 सागर
7 सागर
84000 वर्ष*
1,000 वर्ष
Abhyas (Practice Paper)
Summary
सूत्र इक्कीस सम्यक्त्वं च में हमने जाना कि
पिछले सूत्र में बताये गए संयम आदि
के साथ सम्यग्दर्शन भी देव आयु का कारण है
संयम या संयमासंयम भी सम्यग्दर्शन के साथ होते हैं
तिर्यंच भी संयमासंयम का पालन करके सोलहवें स्वर्ग तक जाते हैं
हमने समझा कि संयम देव आयु के लिए ग्रहण नहीं किया जाता है
इससे देव आयु मिलती है
बिना संयम के अविरत सम्यग्दृष्टि भी देव आयु का बंध करता है
चूँकि संयमी और संयमासंयम पिछले सूत्र में राग के साथ लिखे थे
और यहाँ सम्यग्दर्शन अलग से लिखा है
इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अविशिष्ट हैं
और यह विशिष्ट है
अपितु इसका अर्थ है कि सभी सम्यग्दृष्टि जीव विशिष्ट हैं
वे भवनत्रिक देव नहीं बनते
नियम से वैमानिक देव ही बनते हैं
मगर सभी वैमानिक देव सम्यग्दृष्टि हों ऐसा ज़रूरी नहीं
हमने जाना कि इस भव का संयम, आगे देवों में भी विशिष्टता लाता है
सौधर्म इंद्र, एक भवावतारी दक्षिणेद्र, लोकांतिक देव, सामानिक आदि
सभी विशिष्ट देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं
वर्तमान में सम्यग्दर्शन भी मोक्ष का नहीं
सिर्फ देव आयु का ही कारण है
कई लोगों को ये सूत्र गले नहीं उतरता
क्योंकि वे सम्यग्दर्शन को वीतरागी और मुक्ति का कारण मानते हैं
बंध का नहीं
वे मानते हैं
राग बंध का कारण है
क्योंकि ऊपर संयम, संयमासंयम के साथ सराग जुड़ा था
इसलिए सिर्फ राग बंध का कारण है
मगर यहाँ तो सराग सम्यक्त्व नहीं लिखा
सम्यग्दर्शन चाहे राग के साथ हो या बिना, देव आयु के बंध का कारण है
अगर सम्यग्दर्शन इसका मुख्य कारण नहीं होता
तो राग तो हमेशा हर दशा में रहता है
सम्यग्दर्शन के कारण से उसमें विशेषता आ जाती है
इसलिए एकांत से इसे बंध का कारण नहीं मानना; सिद्धांत विरुद्ध है
उदाहरण के लिए मुनि श्री ने समझाया कि श्रेणिक ने
मिथ्यात्व के साथ सप्तम नरक की आयु का बंध किया था
लेकिन सम्यग्दर्शन होने पर आयु घट कर चौरासी हज़ार वर्ष रह गई
ऐसा राग की कमी के कारण नहीं
सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के कारण हुआ
क्योंकि उसने राग कम करने के घर-त्याग, वैराग्य धारण करने जैसा कुछ नहीं किया
हमें स्वीकारना चाहिए कि सम्यग्दर्शन का हस्तक्षेप आयु बंध में भी रहता है
हमें देखना चाहिए कि कौन सी व्याप्ति दोनों तरफ से घटित होती हैं
जैसे सराग सम्यग्दृष्टि नियम से देव होगा
लेकिन जो-जो देव है वह सब व्रत, संयम धारण करते हैं
ऐसा नहीं है
सम्यग्दर्शन नियम से विशेष आयु बंध का कारण है
और विशेष रूप से देव आयु का बंध सम्यग्दर्शन के कारण होता है
मुनि श्री ने समझाया कि सम्यग्दर्शन बंध भी कराता है
और मुक्ति भी
एक ही कारण से दो विपरीत काम होने में कोई बाधा नहीं है
कुछ लोग ऐसे सिद्धांत नहीं मानते
जैसे छाता आपको बरसात से भी बचाने का कारण है
और धूप से भी
धूप और बरसात दोनों विपरीत चीजें हैं
इसी प्रकार एक ही सम्यग्दर्शन बंध भी कारण बनता है
और जब चीजें जुड़तीं हैं तो मुक्ति का भी कारण बन जाता है
सम्यग्दर्शन के साथ व्रत लेना, संयम बढ़ना, शुक्ल ध्यान और मोक्ष की ओर ले जाएगा
सम्यग्दर्शन से शुक्ल ध्यान होगा तो मोक्ष
धर्म-ध्यान होगा तो स्वर्ग मिलेगा
वहीं सम्यग्दर्शन के साथ में आर्त ध्यान करने से संक्लेश परिणाम होंगे
जो निचली आयु का कारण बन सकता है
कषायों के कारण से सम्यग्दर्शन छूट भी सकता है
इसलिए हमें अनेकांत दर्शन के अनुसार कथंचित् के साथ सब स्वीकार करना चाहिए
कथंचित् सम्यग्दर्शन भी बंध का कारण है