श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 11
सूत्र -10
Description
मात्सर्य भाव। अंतराय कर्म। आसादना भाव। उपघात भाव।
Sutra
तत्प्रदोष-निह्नव-मात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञान-दर्शना-वरणयो:।।6.10।।
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WINNERS Day 11
14th Aug, 2023
Swati Sahuji
Aurangabad
WINNER-1
Sunita Neminath
Belagavi
WINNER-2
Sarala,Mudholkar
Nashik
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
ईर्ष्या के भाव से किसी को ज्ञान न देना कौनसा भाव कहलाता है?
प्रदोष भाव
निह्नव भाव
मात्सर्य भाव*
आसादना भाव
Abhyas (Practice Paper)
Summary
हमने देखा कि आज बड़े लोग बच्चों को आलू प्याज के दोष नहीं बताते
ताकि बच्चों के बहाने वे इन्हें खाते रहें
इस तरह ज्ञान छिपाना भी निह्नव में आता है
तीसरा भाव मात्सर्य अर्थात ईर्ष्या या जलन का भाव है
इसमें हम दूसरे को ज्ञान इसलिए नहीं देते कि
अगर उसे भी ज्ञान मिल गया तो
वह भी हमारी तरह नाम और प्रशंसा पा जाएगा
फिर सब उसी को पूछेंगे
हमें कौन पूछेगा?
हम चाहते हैं कि
हमारा ज्ञान दूसरे के पास न पहुँचे
हमारे जैसे साधनों से वह भी ज्ञानार्जन न करले
मात्सर्य भाव लौकिक क्षेत्र में पढने वाले बच्चों, बडों सब में भी अपने-अपने तरीके से चलता है
आज बड़े-बड़े वकील जज अपनी knowledge के अहं में जीते हैं
कि उन्हें कोई solution पता है
बिना अच्छा पैसा वसूले
वे सहजता से उसे किसी को नहीं बताते
अगर बता दिया तो उनके सारे client उसके पास चले जाएँगे
यह भाव doctor, teacher, lawyer, student आदि सभी में अपने-अपने क्षेत्र के लोगों से होता है
इससे ज्ञानावरण कर्म का बंध होता है
और भीतर jealousy बढ़ती है
जहाँ प्रदोष में भाव चुपचाप भीतर चला
निह्नव में थोड़ा सा बता दिया
मात्सर्य में जानते हुए भी उसको नहीं बताया
इससे आगे बढ़कर जब कषाय की तीव्रता बढी तो
यह अंतराय के रुप में बदल गया
अंतराय मतलब ज्ञानार्जन और उसके साधनों में विघ्न डालना
दूसरे के बच्चों की जानकारी लेकर
कौन सी किताब पढ़ता है?
tution आदि लेता है?
उनमें अंतराय डालने की कोशिश करना जैसे
पुस्तकें आदि अलग कर देना
पढने के समय पर खेलने के लिए बुलाना आदि
हमने जाना कि ‘जैसा करोगे वैसा पाओगे’
हमारा आज किया गया अंतराय
कल हमारे ज्ञानार्जन में विघ्न के रूप में आता है
इन्हीं कर्मों के फल से बच्चों का मानसिक विकास नहीं हो पाता
ऐसे प्रसंग समझकर हमें अपने मन के भावों पर अंकुश लगाना चाहिए
ज्ञान के अंतराय से ज्ञानावरण कर्म
और दर्शन के अंतराय से दर्शनावरण कर्म का विशेष रूप से आस्रव होता है
आजकल तो पढ़े-लिखे लोग बहुत ज्यादा अंतराय करते हैं
एक दूसरे को धर्म कार्य से रोकते हैं
अधर्म से नहीं
जैसे घर में संस्कारित बहू को धर्म में रुचि लेने से रोका जाता है
बच्चों को मुनि महाराज के दर्शन और स्वाध्याय करने से रोका जाता है
अनपढ़ तो सिर्फ पहले किये गए कर्म को भोगता है
लेकिन ज्ञान दिशा में बहुत ज्यादा कर्म बंध होता है
चूंकि यह पढ़ी-लिखी, बड़ी-बड़ी degree holders की पीढ़ी अंहकारी हो रही है
इसलिए नई पीढ़ी धर्म के प्रति संस्कारित नहीं है
ये कषाय के कारण न खुद कर रहे हैं
और न दूसरों को करने दे रहे हैं
इन्हें डर लगता है कि बच्चा कहीं धार्मिक, सम्यग्ज्ञानी न हो जाए
इसलिए अपने बच्चों को सही मार्ग पर जाने से रोकते हैं
उन्हें धार्मिक किताब नहीं पढ़ने देते, प्रवचन नहीं सुनने देते
हमें सोचना चाहिए कि उसके पुण्य से उसे धर्म क्षेत्र काल की अनुकूलता मिल रही है
तो क्यों उसके ज्ञान दर्शन को रोकें?
अंतराय से आगे बढ़कर आसादना का भाव होता है
अपनी कषाय के कारण
सामने वाला के हितकारी, सम्यग्ज्ञान को
कोई अन्य उसके प्रभाव में न आ जाये इसलिए
हम वचनों से, काय से उसकी आसादना मतलब विराधना करते हैं
कहते हैं कि ये कुछ नहीं जानता? आदि
उसे देखकर मुंह बनाते हैं
जैसे वो कुछ नहीं है
इससे ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्म का बंध होता है
अंतिम उपघात भाव में हम दूसरे के ज्ञान को घात करने का ही भाव बना लेते हैं