श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 29
सूत्र - 13
Description
साधारण, प्रत्येक वनस्पति की पहचान l गन्ने, नारियल आदि की पहचान l जीव विज्ञान का सही ज्ञान वनस्पति के माध्यम से होता है l साधारण वनस्पति के उदाहरण l हरी के त्याग का क्या मतलब है l सूखा अनाज भी वनस्पति है l हम जो भी भोजन में लेते हैं सब वनस्पति है l फल, अन्न, तिलहन आदि सब वनस्पति के भेद हैं l पाँचों स्थावर जीवों की रक्षा करनी है, दुरुपयोग नहीं करना है l
Sutra
पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय: स्थावरा:।l१३।l
Watch Class 29
WINNERS
Day 29
6th June, 2022
हंस कुमार जैन
ग्रेटर नोएडा वेस्ट
WIINNER- 1
Meena Jain
Gwalior
WINNER-2
Sanju Jain
Delhi
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
निम्न में से अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कौनसी है?
पालक
मेथी
सेव *
घास
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने जाना कि सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति अनंत साधारण निगोद जीवों से प्रतिष्ठित होती है
इसलिए हमारे खाने योग्य नहीं होती है
यही जब अप्रतिष्ठित अवस्था में आ जाए तो खाने योग्य होती है
सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति पहचानने के लिए हम इनकी शिरायें, फाँकेंं देख सकते हैं
अगर शिराएँ या फांकें अदृश्य हैं, अलग-अलग नहीं दिख रही हैं
तो ये सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति है
जैसे गन्ना, खरबूजा आदि जिसमें पोरें या फांके नहीं दिख रही हैं
ऐसे ही वो वनस्पतियाँ जिन्हें तोड़े तो सम भंग हो जाए, बिल्कुल बीच में से टूट जाए तो वे सप्रतिष्ठित हैं
या जिसमें कोई रेशा भी न लगा दिखाई दे और उस वनस्पति को छिन्न करके, छेदकर, तोड़कर अगर उगायें और वो उग जाए; तो वह सप्रतिष्ठित है
इससे विपरीत अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति साधारण जीवों से रहित होती हैं
यह पक गयी होती हैं
और साधारण जीवों से रहित होती हैं
जैसे पकने के पश्चात गन्ना, नारियल, खरबूजा
ये खाने योग्य मानी जाती हैं
जिस वनस्पति का फल पृथ्वी से ऊपर उठकर आकाश में होता है वह जीव से रहित और उतना ही ज्यादा फायदेमन्द होता है
और जितना जमीन के पास, अन्दर होता है वह उतना ही ज्यादा जीवों से सहित होता है
घास, काई और पालक, मैथी, बथुआ जैसी पत्ते वाली वनस्पतियाँ में पकाव नहीं होता इसलिए अनन्त जीव कहलाती हैं
नारियल, आम, सेब, लौकी ये सब अच्छे से पककर अप्रतिष्ठित बन जाती हैं
हमने जाना कि हरी के त्याग को लोग अक्सर वनस्पति का त्याग समझ लेते हैं
मगर सिद्धान्त से इसमें सिर्फ सब्जी, फल आदि का त्याग ही आता है
वनस्पति का त्याग कहना गलत है
क्योंकि वनस्पति तो व्यापक है
दाल, गेहूँ, चावल, मसाले, तिलहन, सरसों का तेल आदि सभी वनस्पति ही हैं
हमारा जीवन इन्हीं पाँच प्रकार के स्थावर जीवों के द्वारा चलता है
अतः हमें इनका सेवन भी करना है और रक्षा भी
जितना कम से कम हो सके उतना उपयोग करने से ही हमारे लिए धर्म होगा
और जो अनुपयोगी है, उसको हम बिना वजह नष्ट न करे
जैसे- बेवजह जमीन खोदना, पानी बहाना, अग्नि को जलाए रखना, पँखे-कूलर चलाना
ये न सिर्फ दुरुपयोग है अपितु अधर्म भी है और पाप बन्ध का कारण भी
जो लोग जीवों की रक्षा करने में तत्पर होते हैं, वही पर्यावरण की रक्षा करने वाले कहलाते हैं
इसलिए व्रती जीव का पर्यावरण रक्षा में योगदान किसी भी गृहस्थ से अधिक होता है