श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 55

सूत्र -49,50,51,52

Description

सूत्रों की रचना बहुत सोच समझ कर की जाती है l औदारिक और वैक्रियिक शरीर संक्लेश से भी उत्पन्न होते हैं l आहारक शरीर ढाई द्वीप(मनुष्य लोक) के अन्दर ही गमनागमन कर सकता है l वेदों का वर्णन l नारकी और सम्मूर्छन जीव नपुंसक वेद वाले होते हैं l भाव वेद और द्रव्य वेद में अन्तर l मनुष्यों में वेद विषमता कैसे होती है? कुछ जीवों में द्रव्य से कोई वेद और भाव से कोई और हो सकता है l जैन शास्त्रों में समलैंगिकता का भी वर्णन मिलता है l नारकी द्रव्य और भाव दोनों से नपुंसक वेद वाले होते हैं l देव नपुंसक नहीं होते हैं lआर्यखण्ड और म्लेच्छ खण्ड में वेदों की व्यवस्था l

Sutra

शुभं विशुद्ध-मव्याघाति चाहारकं प्रमत्त-संयतस्यैव।l४९।l

नारक समूर्च्छिनो नपुंसकानि।l५०।l

न देवाः।l 51।l

शेषास्त्रिवेदाः।l५२।l

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WINNERS

Day 55

15th July, 2022

Shilpa Shah

Gulbarga

WIINNER- 1

Mukesh

Faridabad

WINNER-2

Alpana Jain

Bhilwara

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

निम्न में से कौनसे जीव के या तो पुरुष वेद होगा या स्त्री वेद होगा?

  1. सम्मूर्च्छन जन्म वाला जीव

  2. आर्य खंड का तिर्यंच

  3. नारकी

  4. देव *

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. आचार्य सूत्रों की रचना बहुत ही व्यवस्थित करते हैं

    • और किसी भी बात को दोबारा नहीं कहते

    • अगर पहले कही बात से related, कोई दूसरी बात होगी तो वह 'च' से भी काम चला लेंगे

    • जैसे कार्मण तैजस शरीर के बारे में अनादि संबंधे च या अप्रतीघाते


  1. हमने जाना कि आहारक शरीर एकांत से शुभ और विशुद्ध होता है, अन्य शरीर नहीं

    • तैजस शरीर शुभ और अशुभ दोनों रूप में होता है

    • औदारिक और वैक्रियिक शरीर संक्लेश से भी उत्पन्न होते हैं


  1. आहारक शरीर अव्याघात अर्थात बाधा से रहित होता है

    • जहाँ तैजस और कार्मण शरीर तीन लोक में कहीं भी जा सकते हैं

    • आहारक शरीर सिर्फ ढाई द्वीप यानि मनुष्य लोक में ही गमनागमन कर सकता है

    • ढाई द्वीप के बाहर ऋद्धि धारी मनुष्यों का भी प्रवेश निषेध है


  1. सूत्र पचास सूत्र नारक समूर्च्छिनो नपुंसकानि में हमने तीन वेद - पुरुष वेद, स्त्री वेद और नपुंसक वेद के बारे में जाना

    • ये नोकषाय के भेद होते हैं

    • नोकषाय के उदय से यह आत्मा में उत्पन्न होने वाले भाव होते हैं

    • इन्हें हम सरल भाषा में gender कह सकते हैं


  1. हमने भाव वेद और द्रव्य वेद के अन्तर को भी समझा

    • भाव वेद यानि नोकषाय के उदय से उत्पन्न आत्मा में भाव

    • द्रव्य वेद यानि शरीर नामकर्म, अंगोपांग नामकर्म के उदय से शरीर की रचना

    • जैसे द्रव्य वेद के कारण के स्त्रियों के शरीर की रचना स्त्रियों जैसी और पुरुषों की पुरुषों जैसी होती है


  1. द्रव्य से पुरूष यानि जिसके शरीर की रचना पुरुष की हो, वह जीव भी भावों में पुरुष, स्त्री या नपुंसक वेद का हो सकता है

    • भावों में पुरुष वेद से उसे स्त्री की अभिलाषा

    • स्त्री वेद से पुरुष की अभिलाषा

    • और नपुंसक वेद से दोनों की अभिलाषा अर्थात desire होगा


  1. कुछ जीवों में द्रव्य वेद और भाव वेद में अंतर हो सकता है

    • इसी वेद वैषम्य कहते हैं

    • यह मनुष्य और तिर्यंचों में होता है

    • इसे सरल भाषा में हम समलैंगिकता कहते हैं

    • जैसे शरीर से स्त्री है मगर भाव से पुरुष या नपुंसक है तो उसे स्त्री की अभिलाषा होगी


  1. नपुंसक वेद अशुभ और अप्रशस्त होता है क्योंकि इसके उदय में जीव दुःखी होता है और उसकी तृष्णा पूरी नहीं होती

  2. हमने जाना कि नारकी और सम्मूर्च्छन जन्म वाले जीव द्रव्य और भाव से नपुंसक वेद वाले ही होंगे

  3. सूत्र इक्यावन न देवाः और बावन्न शेषास्त्रिवेदाः में हमने जाना कि

    • देव नपुंसक नहीं होते, न द्रव्य से और न भाव से

    • और शेष सभी जीव तीनों वेद वाले होते हैं


  1. आगे हम क्षेत्र से वेदों की व्यवस्था को जानेंगे