श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 40

सूत्र -25,26

Description

जन्म लेने के स्थान पर जीव पुद्गल वर्गणा ग्रहण करता है l विग्रहगति में भी जीव अपने पुण्य-पाप लेकर चलता है l जीव जब से गर्भ में आया तब से ज्योतिष को देखना चाहिये l गर्भ की कुण्डली बनाना चाहिए l आज कल के डॉक्टर जन्म के समय के साथ खिलवाड़ करते हैं l मुनिश्री का चिन्तन - गर्भ और जन्म के विषय में l गति कर्म के अनुसार ही होती है l योग का अर्थ l संसारी आत्मा हमेशा योग में रहता है l अनुश्रेणी का अर्थ किस प्रकार है? विग्रहगति में जीव कैसे चलेगा?

Sutra

विग्रहगतौ कर्मयोग:।l२५।l

अनुश्रेणी गतिः।l२६।l

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WINNERS

Day 40

22st June, 2022

Shallu jain

Hisar

WIINNER- 1

तृप्ता

शामली

WINNER-2

Vaishali

Aurangabad Maharashtra

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

  1. अनुश्रेणी का क्या अर्थ है?

  2. श्रेणी के अनुसार *

  3. श्रेणी के विपरीत

  4. ऊपर की श्रेणी

  5. नीचे की श्रेणी

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. वर्तमान प्रकरण में हम जीव के मरण और जन्म के बीच की अवस्था - विग्रहगति को सिद्धांततः समझ रहे हैं

  2. विग्रहगति में जीव अपने पुण्य-पाप लेकर चलता है

    • जिससे उसका direction कि उसे किस गति आदि में जाना है पहले से ही fix हो जाता है

    • और इसमें किसी भगवान आदि का कोई interference नहीं होता है


  1. जीव अपने ही कर्म से खुद गंतव्य तक पहुँच जाता है

  2. हमने मुनि श्री के चिंतन को समझा कि जन्मपत्री तो जन्म के समय से बनती है

    • मगर जीवन तो गर्भ से ही शुरू हो जाता है

    • अतः ज्योतिष को जीव के गर्भ में आने के समय को देखना चाहिये

    • उसकी गर्भ-पत्रिका बनानी चाहिए

    • क्योंकि वह क्षण महत्वपूर्ण है


  1. तीर्थंकरों के गर्भ का अनुमान, रानी के स्वप्न से पता चल जाता है

    • कि आज रात्रि में उनके गर्भ में वह जीव आ गया

    • जब गर्भ कल्याणक हुआ है तो गर्भ की तिथि से ही सब कुछ अनुमान लगाना चाहिए


  1. हमने देखा कि आजकल डॉक्टर अच्छा मुहूर्त देखकर delivery कर देते हैं

    • विचारणीय है कि जन्म के तरीके से इस तरह खिलवाड़ करके जन्मपत्री उस व्यक्ति के भविष्य का निर्धारण कैसे कर पायेगी?


  1. हमने जाना कि कर्मों के क्षयोपशम, उदय आदि के कारण जीव आगे जाकर जिस स्थान पर जन्म लेगा, वहाँ के योग्य पुद्गल वर्गणाओं को वह अपने आप ग्रहण करने लगेगा

    • जैसे एक pilot को plane की दिशा का पता होता है उसी प्रकार कर्मों के कारण जीव कौन-सी गति में, जाति में जायेगा; कितनी इन्द्रियों के साथ, पर्याप्तियों के साथ होगा; कौन-सा शरीर मिलेगा आदि सभी fix होते हैं

    • शरीर की पूर्णता या अपूर्णता, विकलांग होना या नहीं होना आदि सब चीजें धीरे-धीरे अन्य कर्मों के फल से ऊपर जुड़ते चले जाते हैं और उस शरीर का निर्माण होता चला जाता है


  1. हमने जाना कि विग्रहगति में भी कर्म योग होता है क्योंकि वहाँ केवल कर्म वर्गणाएँ ही आती हैं

  2. योग का मतलब है मन, वचन, काय या कर्म के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों में परिस्पन्दन, हलन-चलन होना

    • अक्सर लोग सिर्फ शरीर के हलन-चलन का नाम योग समझते हैं


  1. हमने जाना कि संसारी आत्मा हमेशा योग में रहता है

  2. सिद्ध भगवान मन-वचन-काय और कर्म रहित हैं

    • वहाँ योग का मतलब भीतरी अन्तरंग अध्यात्म योग है


  1. सूत्र 26 में हमने जाना कि विग्रहगति में जीव श्रेणी के अनुसार गति करेगा

    • श्रेणी का मतलब नसैनी - एक सीढ़ी जैसी

    • जैसे सीक की चटाई में vertical, horizontal दो तरह की line होती हैं

    • वे श्रेणियाँ हैं

    • और जीव इन्हीं line पर ही चलेगा