श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 31
सूत्र - 36
Description
मानुषोत्तर पर्वत से मनुष्यों की सीमा निर्धारित की गई है। पहला अपवाद उपपाद दशा में मनुष्य नामकर्म के साथ। सिद्धान्त की दृष्टि से जीव उपपाद दशा में मनुष्य है। दूसरा अपवाद समुद्घात है। केवल आत्मा के प्रदेश ही तीन स्थितियों में ढाई द्वीप के बाहर जाते हैं। ढाई द्वीप के बाहर किसी भी स्थिति में मनुष्य का शरीर नहीं जा सकता। आत्मा के प्रदेशों के साथ तेसज और कार्मण शरीर भी जुड़ा रहता है। औदारिक शरीर और आहारक शरीर ढाई द्वीप को नहीं लाँघ सकते। आचार्य महाराज का चिंतन। आर्य मनुष्यों की विशेषता। म्लेच्छ मनुष्य, आर्य से विपरीत होते हैं। मनुष्यों के और भी तरह के विभाजन है। आर्य और म्लेच्छ मनुष्यों के भेद-उपभेद। अच्छे क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी अच्छे आचरण करते हैं। कर्म-आर्य का अर्थ कर्म से आर्य होना होता है।
Sutra
आर्या म्लेच्छाश्च ॥3.36॥
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WINNERS
Day 31
14th November, 2022
WIINNER- 1
WINNER-2
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
निम्न में से कौनसा मनुष्यों का विभाजन नहीं है?
कर्मभूमिज मनुष्य
योगभूमिज मनुष्य*
आर्य मनुष्य
म्लेच्छ मनुष्य
Abhyas (Practice Paper):
Summary
1.हमने जाना मानुषोत्तर पर्वत से आगे मनुष्य नहीं जाते
यहाँ तक ऋद्धिधारी मुनीश्वर
या किसी देव के सहयोग से भी कोई इसके पार नहीं जा सकता
स्वयं तीर्थंकर भी इसके बाहर नहीं जा सकते क्योंकि उनका शरीर मनुष्य का होता है
परन्तु सिद्धांत की दृष्टि से इसमें दो अपवाद हैं
उपपाद
और समुद्घात
उपपाद का अर्थ है जीव के जन्म होने का समय, उसका प्रथम समय
ढाई द्वीप से बाहर किसी जीव को मनुष्य जन्म लेना है
तो उसके मनुष्य आयु और मनुष्य गति नामकर्म का उदय होगा
विग्रहगति में यह उपपाद दशा है
वह अभी मनुष्य नहीं है, मनुष्य बनने वाला है
किन्तु सिद्धान्त की दृष्टि से वह मनुष्य ही है
उसका जन्म योनि स्थान पर पहुँचने के बाद होगा
समुद्घात में भी
मारणांतिक समुद्घात
और केवली समुद्घात
दोनों में यह अपवाद होता है
मारणांतिक समुद्घात में जीव की आत्मा के प्रदेश उसके मरण से अंतर्मुहूर्त पहले
उस के आगामी जन्मस्थान को छूकर वापस आते हैं
जो ढाई द्वीप के बाहर हो सकता है
ऐसे ही केवली समुद्घात में केवली भगवान की आत्मा के प्रदेश ढाई द्वीप के बाहर भी फैलते हैं
हमने समझा कि दोनों ही स्थिति में मनुष्य का शरीर ढाई द्वीप के बाहर नहीं जाता
समुद्घात में केवल आत्मा के प्रदेश ही जाते हैं
उपपाद में आत्मा ही इधर जन्म लेने आती है, शरीर नहीं
आत्मा के साथ उसका तेजस, कार्मण शरीर जुड़ा होता है
औदारिक और आहारक शरीर ढाई द्वीप को नहीं लाँघ सकते
इस तरह हमने देखा कि केवल उपपाद और दो समुद्घात की दशाओं में ही मनुष्य गति वाला जीव ढाई द्वीप के बाहर अवस्थान करता है
सूत्र छत्तीस आर्या म्लेच्छाश्च में हमने जाना कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं - आर्य और मलेच्छ
आर्य गुणों से या गुणवान पुरुषों के द्वारा पूजे जाते हैं
जहाँ पर गुणों की आराधना, प्रशंसा की जाती है
और लोग धर्म आचरण से सहित होते हैं
उन स्थानों को आर्य स्थान कहते हैं
और वहाँ के मनुष्यों को आर्य
म्लेच्छ आर्य के विपरीत होते हैं
वे पापाचरण - हिंसा, चोरियाँ, बलात्कार, झूठ, माँस-मदिरा आदि खाने-पीने में ही खुश होते हैं
वे धर्म-कर्म से रहित होते हैं
हमने सूत्र में च के माध्यम से भी मनुष्यों का विभाजन समझा
सिद्धान्त की दृष्टि से तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं
पर्याप्तक
निर्वृत्यपर्याप्तक
और लब्धि अपर्याप्तक
मनुष्यों के चार विभाजन करें तो आचार्य कहते हैं
कर्मभूमिज,
भोगभूमिज
आर्य और
म्लेच्छ
आज हमने आर्य मनुष्यों के भेद भी जाने
क्षेत्र आर्य- अच्छे-अच्छे क्षेत्रों के मनुष्यों को क्षेत्र आर्य कहते हैं जैसे कौशल देश, महाकौशल देश, अवध प्रांत, अयोध्या आदि
जात्य आर्य - श्रेष्ठ, उच्च जाति में उत्त्पन्न मनुष्य जाति से आर्य होते हैं
जैसे इक्ष्वाकुवंश, रघुवंश, कुरुवंश आदि में उत्पन्न हुए मनुष्य
ये अपना धर्म आचरण अच्छा ही रखते हैं
कर्म आर्य- कर्म से आर्य होते हैं
इनके विषय में हम अगली कक्षा में जानेंगे