श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 38
सूत्र - 25
सूत्र - 25
स्वाध्याय के पाँच भेद। स्वाध्याय का प्रयोग स्व की जानकारी व स्व की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है। स्वाध्याय अन्तरंग तप है। वाचना का मतलब...कहना, कथन करना। एक एक सूत्र में जो अर्थ छिपा होता है, उस अर्थ को जाने। वाचना के लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए। पृच्छना मतलब पूछना- question and answer। संशय का निवारण करने के लिए पृच्छना की जाती है। पृच्छना को स्वाध्याय के रूप में ले। प्रश्न भी अपने आप में बड़ी सम्पत्ति है। अनुप्रेक्षा का मतलब बार बार चिन्तन करना। बार बार चिन्तन करने से स्मृति बढ़ती है।
वाचना-पृच्छनानुप्रेक्षाम्नाय धर्मोपदेशाः॥9.25॥
19, dec 2024
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किसी भी तत्त्व का या अवधारित किए हुए किसी भी अर्थ का बार-बार चिंतन करना कौनसा स्वाध्याय है?
वाचना
पृच्छना
अनुप्रेक्षा*
आम्नाय
सूत्र पच्चीस वाचना-पृच्छनानुप्रेक्षाम्नाय धर्मोपदेशाः में हमने स्वाध्याय तप के पाँच भेद जाने
वाचना,
पृच्छना,
अनुप्रेक्षा,
आम्नाय और
धर्मोपदेश।
स्वाध्याय अर्थात स्व+आध्याय,
इसमें
‘स्व’ का,
‘आ’ यानि अच्छे ढंग से, ध्यान लगाकर
चिन्तन-मनन किया जाता है।
पर का चिन्तन भी अन्ततः स्व के लिए ही होता है।
केन्द्र- अपनी आत्मा का ज्ञान करना,
स्व का निश्चय करना ही होता है,
चाहे वह हम direct करें
या indirectly- अन्य पदार्थों को समझते हुए।
न्याय ग्रन्थों में ज्ञान को प्रमाण कहते हैं-
जिससे हमारा हित होता है
और अहित का नाश।
जिससे स्व का निश्चय नहीं हो
बस बाहरी प्रयोग रहे,
वह ज्ञान प्रमाण नहीं होता,
और स्वाध्याय की कोटि में नहीं आता।
स्वाध्याय से तभी कर्म निर्जरा होती है जब वह
स्व की जानकारी,
स्व की प्राप्ति के लिए किया जाए,
लौकिक ख्याति, पूजा, प्रतिष्ठा, मान पाने के लिए नहीं।
स्वाध्याय का, ज्ञान के प्रेषण का- उद्देश्य होना चाहिए कि
स्व और पर दोनों के ज्ञान की वृद्धि हो,
लोग ज्ञान का उपयोग करके स्वहित में लगें।
ऐसा स्वाध्याय ही अन्तरंग तप कहलाता है।
स्वाध्याय -
आलस्य का त्याग करके,
जागृत होने पर होता है।
आलस्य का त्याग भी स्वाध्याय कहलाता है।
अगर हम भीतर से जागृत, प्रमाद-रहित होंगे
तो हम स्वाध्याय ही कर रहे होंगे।
पहले स्वाध्याय, वाचना का मतलब होता है- कहना, कथन करना।
इसमें ग्रन्थों की व्याख्या करते हैं
शब्द, अर्थ और भाव का स्पष्टीकरण करते हैं।
यह दूसरों के लिए ही की जाती है।
सूत्र के शब्दों में छिपे अर्थों को,
च आदि शब्दों की विशेषताओं को बताते हुए
भाव बताने रूप
हम यह तत्त्वार्थ सूत्र का-
वाचना रूप स्वाध्याय ही कर रहे हैं।
वाचना-स्वाध्याय का अपना एक क्रम होता है
इसमें ज्यादा व्यक्तियों की अपेक्षा नहीं होती।
यह योग्य व्यक्तियों को दी जाती है,
जो ग्रन्थ का हृदय समझते हों।
इसके अनेक प्रकार होते हैं।
इसके लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव शुद्ध होने चाहिये।
भावशुद्धि यानि-
ख्याति, पूजा, लाभ, राग और द्वेष रुपी उद्देश्य नहीं होने चाहिए।
ऐसी वाचना आत्म-हितकर होती है।
सिद्धान्त ग्रन्थों का पठन-पाठन
वाचना रूप में ही किया जाता है।
जो संघ में भी
और बाहर के लोगों के साथ भी किया जाता है।
अपना doubt clear करने और,
knowledge बढ़ाने के लिए
जो जानकार हो, उससे प्रश्न पूछना
पृच्छना स्वाध्याय में आता है।
परीक्षा करने के लिए,
या, किसी अन्य का उत्तर पसंद नहीं आया तो
इनसे पूछ कर देखते हैं,
या, बस प्रश्न करने की आदत है
तो कुछ भी प्रश्न कर देना
चाहे subject से related हो या नहीं
यह सब पृच्छना स्वाध्याय में नहीं आते।
आजकल पृच्छना का चलन बहुत बढ़ गया है
इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
जो हम सीख रहे हैं,
उससे related जिज्ञासा का समाधान पाने के लिए पृच्छना होती है।
पूछने वाले श्रावकों को अच्छे प्रश्न पूछने चाहिये।
प्रश्न हमारी सम्पत्ति होती है।
इसे अपने अन्दर रखना धैर्य की बात होती है।
हम उसे समय पर पूछें और उसके समाधान को ग्रहण करें।
प्रश्न वही कर सकता है-
जिसे खुद ज्ञान हो,
जो आगे-पीछे की चीज़ों को connect करना जानता हो।
प्रश्न करना अच्छी बात होती है।
इससे औरों का भी भला होता है।
जो अपनी शंका खुद नहीं पूछ पाते
उनका भी समाधान हो जाता है।
किसी भी सीखे हुए,
अवधारित किए हुए अर्थ का,
बार-बार चिन्तन करना
तीसरा अनुप्रेक्षा स्वाध्याय होता है।
हम दिनभर स्वाध्याय में जो सुनें
उसे शाम को स्मृति में लाना चाहिए।
बार-बार repetition से, revise होता है
और अर्थ हमारे अन्दर बैठ जाता है।
इससे हमारी memory power बढ़ती है।