श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 06
सूत्र - 03, 04, 05
सूत्र - 03, 04, 05
निःसर्ग- वह स्वभाव जो हमें देखने में आता है? जीव के ऊपर अजीव का उपकार? आस्रव कैसे? जिस समय पर आस्रव, उसी समय पर बन्ध होता? संवर पूर्वक निर्जरा ही काम की, अन्य नहीं? जब जीव और अजीव दो ही तत्त्व हैं तो और पाँच जोड़ने की क्या जरूरत? आस्रव और बन्ध कथंचित हेय भी और कथंचित आदेय भी? किसी भी वस्तु को चार प्रकार के निक्षेप द्वारा जान सकते! नाम निक्षेप में गुणों की अपेक्षा नहीं? पूज्यता केवल तद्भाव स्थापना में ही?
तन्निसर्गादधिगमाद्वा।l1.3ll
जीवाजीवास्रव बन्धसंवरनिर्ज्जरा मोक्षास्तत्त्वम्।l1.4ll
नामस्थापना द्रव्य भावतस्तन्न्यासः।l1.5ll
सौ सारिका विकास जैन
भुसावल
WINNER-1
शशि जैन
दिल्ली
WINNER-2
श्रीमती मंजू जैन
दिल्ली
WINNER-3
प्रतिमा के लिए चुने गए पत्थर को भी पहले से ही प्रतिमा कहा जाना कौनसा निक्षेप है?
1. नाम निक्षेप
2. स्थापना निक्षेप
3. द्रव्य निक्षेप *
4. भाव निक्षेप
आज हमने जाना कि जीव जिस पर्याय में जन्म लेता है वैसा ही स्वभाव ग्रहण करता है
उसी तरह स्वभाव से जब अन्तरंग में दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षय या क्षयोपशम और बाहरी योग्यता से तत्त्व श्रद्धा की परिणति आती है तो बाहर से केवल जिनबिम्ब दर्शन या आचार्यों के सानिध्य से भी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो जाती है
हमने आज पुनः Class 4 में पढ़े सूत्र 4 का अध्ययन किया जिसमें सात तत्त्वों का वर्णन है
हमने आज इन तत्त्वों के क्रम के महत्त्व को समझा
चूँकि सब कुछ जीव के अंदर घटित होगा अतः जीव सबसे पहले आता है
अजीव का अनादि से इस जीव के साथ सम्बन्ध है और संसार दशा में अजीव का जीव पर उपकार है अतः जीव के बाद अजीव आता है
कार्मण शरीर, तेजस शरीर आदि अजीव हैं
जीव और अजीव के संयोग से आस्रव होता है
जीव के जिस भाव से कर्म आते हैं वे भाव आस्रव हैं
और जो कर्म आते हैं वे द्रव्य आस्रव हैं
आस्रव के होने से बंध होता है
ये दोनों आत्मा में एक ही समय पर घटित होता है
आस्रव मिथ्या, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग के कारण से होता है
बंध प्रकृति, प्रदेश, अनुभाग और स्थिति प्रकार का होता है
संवर का अर्थ है बंध का रुक जाना
यह बंध विरोधी है
संवर पूर्वक निर्जरा ही उपयोगी होती है
निर्जरा से ही मोक्ष होगा
हमने जाना कि जीव अजीव दो ही तत्त्व सामान्य हैं
मगर संसार और मोक्ष का ज्ञान सभी सात तत्वों से होता है
जैसे मोक्ष का कारण संवर और निर्जरा हैं
वहीं संसार का कारण आस्रव और बंध हैं
मोक्ष, जीव, संवर और निर्जरा हमारे लिए उपादेय हैं
वहीं आस्रव और बंध कथंचित हेय हैं
वस्तु को समझने के उपायों में सबसे पहले निक्षेप आता है
न्यास यानि निक्षेप चार प्रकार का होता है नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव
नाम निक्षेप में लोक व्यवहार में गुणों की अपेक्षा के बिना किसी वस्तु या व्यक्ति का नामकरण करते हैं
स्थापना निक्षेप में किसी और चीज में उसकी स्थापना करते हैं
यह अतद्भाव और तद्भाव हो सकती है यानि किसी भी रंग रूप में या उसी रंग रूप में
तद्भाव स्थापना ही पूज्य होती है
द्रव्य निक्षेप में आगामी काल की अपेक्षा होती है कैसे शुक्ल ध्यानी मुनि को अरिहंत कहना
जिस समय पर जो चीज उसी रूप में बन गई वह भाव निक्षेप है