श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 20
सूत्र - 20
सूत्र - 20
श्री आदि देवियों के ब्रह्मचारिणी न होने के पीछे तर्क । चौदह महानदियों के नाम। कुलाचल पर्वतों से नदियों के निकलने की व्यवस्था। गंगा नदी का विस्तार क्षेत्र/ वर्णन। सिन्धु नदी का विस्तार क्षेत्र/ वर्णन।
गंगासिंधु-रोहिद्रोहितास्या-हरिद्धरिकान्ता-सीता-सीतोदा-नारी-नरकान्ता-सुवर्ण-रुप्यकूला-रक्ता-रक्तोदाः-सरितस्तन्मध्यगाः ॥20॥
Angoori Jain
Bhopal
WIINNER- 1
प्रवंजना जैन
अहमदाबाद
WINNER-2
Rashi Jain
Nainpur
WINNER-3
निम्न में से कौनसा एक महानदी का नाम नहीं है?
रोहितकान्ता*
हरित
सीता
सुवर्ण
1.हमने जम्बूद्वीप के सरोवरों के कमलों में निवास करने वाली व्यंतर देवियों के बारे में जाना
2.मुनि श्री ने समझाया कि
विद्वानों द्वारा इन देवियों को ब्रह्मचारिणी कहना आगम के परिप्रेक्ष्य में सही नहीं हैं
क्योंकि ये देवियाँ व्यन्तर देवों की इंद्राणी, वल्लभा होती हैं
ये विशेष ओहदा प्राप्त देवियाँ हैं जिनका व्यन्तर इन्द्रों पर पूरा अधिकार रहता है और इनके ऊपर भी उनका अधिकार रहता है
अतः केवल सामानिक आदि देवों के आवास अलग होने से इन्हें ब्रह्मचारिणी नहीं मान सकते
3.असंख्य देवियों में इन छप्पन प्रकार की देवियों को ही माता की सेवा के लिए नियुक्त किया जाता है इसलिए ये देवियाँ विशेष हैं
इन अकृत्रिम सरोवरों में जल निरन्तर लबालब भरा रहता है
और उसका प्रवाह भी चलता रहता है
क्योंकि पर्वतों के मुख्य, अकृत्रिम स्रोतों पर कभी भी जल के प्रभाव में कोई भी व्यवधान नहीं होता
सूत्र बीस - गङ्गासिंधु-रोहिद्रोहितास्या-हरिद्धरिकान्ता-सीता-सीतोदा-नारी-नरकान्ता-सुवर्ण-रुप्यकूला-रक्ता-रक्तोदाःसरितस्तन्मध्यगाः में हमने इन सरोवरों के मध्य से निकलने वाली चौदह नदियों के बारे में जाना
दो-दो के जोड़े से इनके नाम हैं
पहले गंगा, सिन्धु
दूसरा रोहित, रोहितास्या,
तीसरा हरित, हरिकान्ता
चौथा सीता, सीतोदा,
पाँचवाँ नारी, नरकान्ता,
छटवाँ सुवर्ण, रुप्यकूला
और सातवाँ रक्ता, रक्तोदा
इनका जल शुद्ध है अतः अभिषेक आदि मंगल कार्य प्रारम्भ करते हुए यह कल्पना करते हैं कि हम इन्हीं नदियों का जल भगवान के लिए लाये हैं
हमने जाना कि ऐसा नहीं है कि हर एक कुलाचल से दो-दो नदियाँ निकलती हैं
हमने जाना कि शास्त्रों में बताई गयी ये गंगा-सिन्धु नदियाँ, आजकल प्रचलित गंगा-सिंधु नदियों से अलग हैं
मुनिश्री ने हमें शास्त्रोक्त तरीके से गंगा-सिन्धु नदियों के बारे समझाया
भरत क्षेत्र के ऊपर हिमवान नाम के पर्वत के ऊपर छोटा सा पद्म सरोवर है
गंगा नदी सरोवर के मध्य से निकल कर पूर्व दिशा में पाँच सौ योजन पहले पर्वत पर दौड़ती है
फिर उसके बाद में यह नीचे गिरना शुरू करती है
वह गंगा कुण्ड में गिरती हैं
पर्वत से निकल कर, नदी जिस कुंड में गिरेगी उसका नाम भी नदी के नाम पर ही होगा
गंगा नदी के लिए गंगा कुण्ड
और सिन्धु नदी के लिए सिन्धु कुण्ड
आदि
उस गंगा कुण्ड के अन्दर एक गंगा कूट होता है
उसमें एक पर्वत बना हुआ है जिस पर एक जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा रहती है
यह जलधारा सीधी उस प्रतिमा के ऊपर गिरती है
और उसके बाद में यह जलधारा विजयार्ध पर्वत की गुफाओं को cross करती हुई दक्षिण भरत की ओर आती है
आर्यखण्ड के बाहर ही बाहर, आधी दूरी तक आने के बाद में, यह नदी अपनी direction पूर्व दिशा की ओर बदल देती है
और जाकर के लवण समुद्र में मिल जाती है
इसी प्रकार सिंधु नदी
पद्म सरोवर से निकल कर पश्चिम दिशा में 500 योजन चल कर
सिंधु कुंड में स्थित सिंधु कूट में विराजित जिन बिम्ब पर गिरती है
तत्पश्चात विजयार्ध पर्वत की गुफाओं से बाहर निकल करके
बाहर से ही आर्यखण्ड से आधी दूरी आने पर
अपनी दिशा पश्चिम करके
लवण समुद्र में मिल जाती है