श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 23
सूत्र - 19
Description
शब्द को परम ब्रह्म कहा गया। श्रुतज्ञान को उपचार से ब्रह्म ज्ञान कहा जा सकता है। अपने बोलने की शक्ति पर विचार करें। शब्दों के बनने के समय को आप गिन नहीं सकते। मन भी पुद्गल का बड़ा उपकार है। मनोवर्गणाओं के माध्यम से मन बनता है। मन अनिन्द्रिय है क्योंकि इसका एक स्थान नहीं। मन का भी अभिघात होता है इसलिए ये पौद्गलिक है।
Sutra
शरीरवाङ्मन: प्राणापाना: पुद्गलानाम्॥5.19॥
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WINNERS
Day 23
03st May, 2023
Mrs Aruna Arun Jain
( Mumbai)
WINNER-1
Kshama Jain
Navi Mumbai
WINNER-2
Krishna Jain
Piplkhut
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
शरीर निम्न में से कौनसे प्रकार की वर्गणाओं से बनता है?
मनोवर्गणा
तेज वर्गणा
शब्द वर्गणा
आहार वर्गणा*
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र उन्नीस शरीरवाङ्मन: प्राणापाना: पुद्गलानाम् में हमने जाना कि
शरीर, वचन, मन और प्राणापान, ये पुद्गलों के जीव पर उपकार हैं
जीव पुद्गल के सहारे के बिना
कुछ सुन या बोल नहीं सकता
और न तत्त्व ज्ञान कर सकता
यहाँ तक तीर्थंकरों के तीर्थ की प्रभावना भी वचन से ही होती है
वचन शक्ति इतनी बड़ी चीज है कि
कई दार्शनिकों ने तो शब्द को ब्रह्म माना है
शब्द अद्वैतवाद दर्शन में शब्द ही सब कुछ होता है
शब्द के अलावा कुछ नहीं होता
जीव अजीव कुछ नहीं होता
शब्द से चीजों की पहचान होती है
बिना शब्द के हमारा नाम और अस्तित्व भी नहीं होगा
हमारे आचार्यों ने भी सम्यग्ज्ञान को प्राप्त कराने वाले शब्द को उपचार से ब्रह्म कहा है
क्योंकि ये शब्द स्वयं शुद्ध, ब्रह्म स्वरूप तीर्थंकरों के मुख से निकले हैं
इन्हीं से हमारे अंदर ब्रह्म का ज्ञान भी पैदा होता है
ये हमारे लिए परम उपकारी हैं
हमने समझा कि निरन्तर flow में भाव शब्द और उससे द्रव्य शब्द निकलने की process सूक्ष्म है
इसमें लगने वाला time पकड़ में नहीं आता
शब्द की उत्पत्ति में, मुँह से शब्द निकलने में, आपके पास पहुँचने में
सब में अन्तर्मुहूर्त time लगता है
लेकिन वह पकड़ में नहीं आता
यह हमारे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान की स्थूलता है
काल की smallest unit - समय को हम imagine ही नहीं कर सकते
समय का विभाजन - समय, आंवली और उसके बाद अन्तर्मुहूर्त की यात्रा
ये सूक्ष्म ज्ञान में ग्रहण होते हैं
बोलने का महत्व जीव के साथ उसके भाव और ज्ञान जुड़ने से है
हमने जाना कि शरीर, वचन आदि पुद्गल हैं
पर जीव की चेतना के बिना ये कुछ भी नहीं कर सकते
इसलिए ऐसे जीव तो होंगे जिनके पास बोलने की, सुनने की शक्ति न हो
लेकिन ऐसा कोई जीव नहीं होगा जिसके पास शरीर न हो
पुद्गलों का तीसरा बड़ा उपकार है मन, मन के माध्यम से ही
जीव में सोच-विचार की,
अपना हित-अहित समझने की,
चिन्तन की शक्ति आती है
जिससे वह अपने और औरों के जीवन चलाने की शक्ति अपने ज्ञान में ला सकता है
मन दो प्रकार का होता है - द्रव्य मन और भाव मन
भाव मन - भाव वचन जैसा होता है
इसकी उत्पत्ति ज्ञानावरण कर्म और नौ इन्द्रिय आवरण कर्म के क्षयोपशम से होती है
जहाँ मन ने उपयोग लगाया, मनोवर्गणाओं के माध्यम द्रव्य मन की रचना होकर
बहुत समय तक मन का काम चलता रहता है
हमने जाना कि आहार वर्गणा से शरीर
तेजो वर्गणा से तैजस शरीर
भाषा-वर्गणा से वचन
मनोवर्गणा से मन
और कार्मण वर्गणा से कार्मण शरीर बनता है
इन्हीं पाँच वर्गणाओं से संसार चलता है
द्रव्य और भाव मन दोनों पौद्गलिक हैं
कथन्चित मन ज्ञानात्मक भी है
क्योंकि यह आत्मा के अपने कर्मों के क्षयोपशम से तैयार एक function है
जो आत्मा से जुड़ा है
और आत्मा से इसकी अभिन्नता है
मन को अनिन्द्रिय भी कहते है
क्योंकि इन्द्रियों की तरह इसकी निश्चित व्यवस्था नहीं होती
कि यहीं से देखोगे या जानोगे
वचन और मन की पुद्गलता की सिद्धि आचार्यों ने उनके पुद्गल से बाधित होने से की है
सिद्धांत से मूर्तिक ही मूर्तिक को पकड़ सकता है,
बाधित कर सकता है
वचन मूर्तिक है क्योंकि ये दीवार आदि से बाधित होते हैं
sound system इनको पकड़ कर दूर-दूर पहुँचाता है
मन पौद्गलिक है
क्योंकि इसका भी अभिघात या घात होता है
जैसे बेहोशी का injection लगाने पर यह पता नहीं होता कि मैं कहाँ हूँ?
यह मन का घात है
जो पुद्गल injection लगाने से हुआ है