श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 18
सूत्र - 05
सूत्र - 05
संवेदन मोह के कारण से। अंतराय कर्म से आत्मा के ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों में कोई बाधा नहीं आती। मोहनीय का प्रभाव आत्मा और शरीर दोनों ओर।
पञ्च-नव-द्वयष्टा-विंशति-चतुर्द्वि-चत्वारिंशद्-द्वि-पञ्च-भेदा यथाक्रमम्॥8.5॥
26th, April 2024
Archana Jain
Bundi Rajasthan
WINNER-1
Santosh Jain
Preet Vihar
WINNER-2
Amol Desai
Kolhapur
WINNER-3
निम्न में से किस कर्म के कारण आत्मा के ज्ञान दर्शन रूप का कोई घात नहीं होता?
ज्ञानावरण कर्म
दर्शनावरण कर्म
मोहनीय कर्म
अंतराय कर्म*
हमने वेदनीय और मोहनीय कर्म के बारे में विशेष रूप से जाना
वेदनीय अघातिया होकर भी, मोहनीय के साथ, घातिया की तरह कार्य करता है
और अन्तराय घातिया होकर भी, अघातिया की तरह कार्य करता है
इसलिए यहाँ संसारी जीवों के लिए कर्मों का स्वरुप बताने के लिए
आचार्यों ने सिद्धान्त से ज्यादा व्यावहारिकता को सामने रखते हुए
वेदनीय कर्म को मोहनीय के पास
और अन्तराय कर्म को सबसे अन्त में रखा है
मोहनीय के साथ मिलकर वेदनीय कर्म में आत्मा के अनुजीवी गुणों का घात करने का बल आ जाता है
और यह हमें सुखी-दुःखी बनाता है
मोहनीय के अभाव में यह जली हुए रस्सी के समान होता है
और हमें सुख-दुःख नहीं दे पाता
जीव शरीर में मोह होने के कारण उसमें किसी कष्ट के होने पर दुःख का अनुभव करता है
और मोह निकलने के बाद उसे दुःख-सुख कुछ भी नहीं लगता
इसलिए मोहनीय के अभाव में
अरिहन्त भगवान में वेदनीय कर्म का उदय होने पर भी
उन्हें कोई दुःख-सुख नहीं होता
हमने जाना कि मोहनीय का काम लगाव करना है और वेदनीय का काम सुख-दुःख का वेदन कराना है
यहाँ वेदना का मतलब पीड़ा नहीं अपितु अनुभव, सम्वेदन होता है
सुख-दुःख का अनुभव मोह के कारण होता है
जितना मोह उतना ही intense अनुभव
जो जीव मोह की कमी के साथ रहते हैं
उनमें बाहरी या अन्तरंग कारण से सुख-दुःख की सम्वेदनाएँ भी कम होती हैं
अतः मोह कम करने का कोई उपाय करें
जिससे अपने अन्दर सुख-दुःख के लगाव को कम सकें
सुख में भी, अगर हमारा मोह उस सुख से टूट जाये
तो सुख की अनुभूति नहीं होती
जैसे अगर बहुत अच्छे मिष्ठान को हमने मुँह में रख लिया
और किसी ने बताया इसमें ज़हर है
तो अब उसमें सुख नहीं होगा
या जैसे property हाथ से निकलने पर
उससे लगाव कम हो जाता है
और वहीं रहते हुए भी वो महल सुख नहीं देते
इसलिए हमें सीखना चाहिए कि
चीज सामने होते हुए भी उससे अपना लगाव हटा लें
कुछ साहसी लोगों को तो
बड़े-बड़े फोड़ों के operation के समय भी
anesthesia के injection की ज़रुरत नहीं पड़ी
वे उस समय अपना दिमाग दूसरी जगह पर लगा देते हैं
इसमें अपना उपयोग न लगाकर वे उस दुःख से मोहित नहीं होते
हमने जाना कि अन्तराय कर्म में
दान, लाभ, भोग, उपभोग और उत्साह का घात करने की शक्ति होती है
लेकिन इसके कारण आत्मा के ज्ञान-दर्शन-सुख रूपी अनुजीवी गुणों का घात नहीं होता
इसलिए जीव के लिए बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
इन चीजों के अलाभ, भोग-उपभोग के बिना भी
वह अपने ज्ञान स्वभाव की ओर परिणति ले जाकर
अपना जीवन निकाल सकता है
इसलिए अन्तराय कर्म घाति हो करके भी अघाति की तरह होता है
मुनि श्री ने अपने चिन्तन से समझाया कि
मोहनीय कर्म के कम या ज्यादा होने से
ज्ञानावरण, दर्शनावरण और सुख पर भी अन्तर पड़ता है
और आयु, नाम, गोत्र भी निकृष्टता या उत्कृष्टता की ओर जाते हैं
जैसे- ज्यादा मोही मूर्च्छा और आरम्भ-परिग्रह सहित जीव को नरक आयु मिलेगी
उससे कम को तिर्यंच आयु
और बिल्कुल नगण्य मोह वालों को तैंतीस सागर की उत्कृष्ट देव आयु मिलेगी
ज्ञान और दर्शन पर तो मोहनीय का प्रभाव पड़ता ही है
क्योंकि इसके प्रभाव में जीव खुद स्व का निश्चय, तत्त्व का श्रद्धान नहीं कर पाता
और वह पर-वस्तु से मिलने वाले सुख-दुःख में ही मोहित रहता है
मोहनीय के प्रभाव से ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय आत्मा के गुणों का घात करते ही हैं
आयु, नाम, गोत्र, अन्तराय भी आत्मा से भिन्न शरीर आदि की उपलब्धियों का घात करते हैं