श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 17
सूत्र -13
सूत्र -13
श्रुत का अवर्णवाद।भगवान को अपनी वाणी को लिखने की आवश्यकता नहीं थी।श्रुत ज्ञान को गलत और शास्त्रों के गलत ज्ञान को सही मानना गलत है।श्रुत का अवर्णवाद घर घर में दिखाई देता है।मोहनीय कर्म के उदय के कारण ही मिथ्यात्व होता है।किसी भी बात को उल्टा सीधा करके बोलना knowledge नहीं है।संघ मतलब रत्नत्रय धारी मुनि।
केवलि-श्रुत-संघ-धर्म-देवा-वर्णवादो दर्शनमोहस्य।।1.13।।
28th Aug, 2023
Sunita Jain
Bhopal
WINNER-1
Preeti Jain
Mira Road Thane
WINNER-2
Mangal Badjatya
Aurangabad
WINNER-3
किस कर्म के उदय के कारण मिथ्यात्व होता है?
वेदनीय
मोहनीय *
नाम
अंतराय
हमने जाना कि बिना श्रुत की abcd जाने, लोग मूर्खतापूर्ण प्रश्न खड़े करते हैं
भीतर से कलुषित परिणामों के कारण वे अपने आपको बड़ा literate समझ कर, केवल प्रश्न फेंककर चल देते हैं
उत्तर में भी उनकी रुचि नहीं होती
इसलिए प्रश्नकर्ता जब समझने की कोशिश करे या उसमें ज्ञान हो
तभी प्रश्न का उत्तर देना चाहिए
बच्चे सवाल पूछते हैं कि आप शास्त्रों को तीर्थंकरों की वाणी कैसे सिद्ध कर सकते हो?
तीर्थंकरों ने कौन-सा शास्त्र लिखा है?
हमने जाना कि लिखना एक पराधीन काम है
जिसके लिए साधन की आवश्यकता होती है
भगवान तो लखते हैं अर्थात् जानते-देखते हैं
और कहते हैं
लिखते नहीं हैं
लिखना तो बहुत बाद का काम है
लिखकर उन्हें न प्रमाणिकता सिद्ध करने की जरूरत है और न प्रस्तुति करने की न ही प्रशंसा की
श्रुत अर्थात् सुनना
श्रुतज्ञान भगवान की वाणी को सुन-सुन करके आता है
भगवान के कहने के हजारों वर्ष पश्चात,
जब याददाश्त कम होने लगी तब लिखना शुरू हुआ
भगवान का कहा हुआ हेतु, तर्क आदि से बाधित नहीं होता
इसे न्याय के parameters से गलत सिद्ध नहीं कर सकते
यही इसकी प्रमाणिकता है
और इसे न मानना, अवर्णवाद
मुनि श्री ने समझाया कि आज श्रुत-अवर्णवाद घर-घर में दिखाई देता है
कोई भी ज्ञान सीधा तीर्थंकरों से नहीं आया
शास्त्रों में वर्णित व्रत, तप-त्याग, सम्यग्दर्शन आदि सब गलत हैं
शास्त्रों की बात मानकर किसी का कल्याण नहीं होता
लोग अहंकारी हो जाते हैं
स्वर्ग-नरक, मोक्ष आदि सब मनगढ़ंत बातें हैं
ये कहीं और नहीं, यहीं हैं
बस आदमी-आदमी के काम में आए और सुख-दुःख में एक समान भाव रहे
आदि आदि
दर्शन मोहनीय कर्म के उदय के कारण
हमारे बच्चे ऐसी मिथ्यात्व की भाषा बोल रहे हैं
कुतर्क कर रहे हैं
एक valid scripture
जिसके बारे में उन्हें कुछ पता ही नहीं
उसको invalid prove कर रहे हैं
मुनि श्री ने समझाया कि सही ज्ञान न होने के कारण
अवर्णवादी को कोई डर नहीं होता
और वह कुछ भी गलत सिद्ध कर सकता है
जैसे वीतराग भगवान पर श्रद्धा, सम्यग्दर्शन कट्टरवादी बना देता है
शास्त्र हमेशा लड़ाई झगड़ा करना सिखाते हैं
वह सम्यग्दर्शन का मतलब समझे बिना बस बकवास करना शुरू कर देता है
बच्चे भी teacher, professor आदि का मजाक बनाते हैं
comment पास करते हैं
ये बहुत आसान होता है
पर इससे वे उनसे ज्यादा knowledge वाले नहीं हो जाते
ऐसे पढ़े-लिखे बच्चे केवली भगवान के बारे में, श्रुत के बारे में कुछ भी कह सकते हैं
क्योंकि उनके अन्दर right knowledge नहीं है
मिथ्यात्व के निरंतर उदय और आस्रव के कारण
वे मिथ्या ही बोलते हैं
और मिथ्या ही विचारते हैं
मुनि श्री कहते हैं जब अपने ही पाले-पोसे बच्चे धर्म का अवर्णवाद करने को तैयार हैं
इसलिए धर्म बचाओ आंदोलन हमें अपने घर से शुरू कर देना चाहिए
तीसरा अवर्णवाद संघ का अवर्णवाद है
संघ अर्थात जो रत्नत्रय युक्त हैं
रत्नत्रय से युक्त एक मुनि महाराज भी संघ कहलाते हैं
क्योंकि उनके पास सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र गुण हैं
यही संघ है - रत्नत्रयोपेतः संघ
संघ में ऋषि, मुनि, यति, अनगार ये 4 चीजें ली जाती हैं
ऋषि के ऋद्धियाँ होती हैं
मुनि के पास प्रत्यक्ष ज्ञान होता है - अवधिज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान या केवलज्ञान
यति हमेशा यत्नाचार के साथ प्रवृत्ति करते हैं
मूल गुणों और उत्तर गुणों का निर्दोष पालन करते हैं
अनगार विषय कषायों को जीत करके अगार से रहित होते हैं, साधु होते हैं