श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 09

सूत्र - 10, 11

Description

Valid Knowledge क्या है? अन्य दर्शन में किन्हें प्रमाण माना गया हैं? इन्द्रिय-ज्ञान प्रामाणिक? केवलज्ञान ही प्रमाणिक है? मतिज्ञान और श्रुतज्ञान की प्रामाणिकता कैसे? केवलज्ञान सबसे बड़ा प्रमाण! केवलज्ञान ही प्रमाण है? पाँचों ज्ञानों का समूह प्रमाणिक! केवलज्ञान का उपकार! पशु-पक्षी के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान प्रमाणिक? कर्ता रहित आगम प्रमाण? विज्ञान में प्रामाणिकता होती? सूत्र में भरे गहरे अर्थ! सूत्रों के माध्यम से सब दर्शनों का खण्डन कैसे? अपने ज्ञान को प्रामाणिक बना सकते! हमारा ज्ञान परोक्ष ज्ञान? सत्य अवधारणा से चलता जैन दर्शन!

Sutra

तत्प्रमाणे ।।1.10।।

आद्ये परोक्षं ।।1.11।।

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WINNERS

Day 09

05th March, 2022

Alisha Jain

Hanumangarh

WINNER-1

Nayan Gandhi

Baramati

WINNER-2

Deeksha Jain

Bhopal

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

निम्न में से क्या प्रमाण होता है?

1.सन्निकर्ष

2. केवल ज्ञान *

3. विज्ञान

4. कर्ता रहित आगम

Abhyas (Practice Paper) : https://forms.gle/QqS3aWRpw7uvU5iW8

Summary


  1. कल की कक्षा में हमने मति श्रुतादि पाँच तरह के ज्ञानों के बारे में जाना

  2. आज हमने जाना कि valid knowledge यानि प्रमाण क्या हैं?

  3. सूत्र 10 “तत्प्रमाणे” के अनुसार - ज्ञान ही प्रमाण है

  4. तत् अर्थात् ‘वह ज्ञान’ यानी मति , श्रुत, अवधि , मनः पर्यय, केवलज्ञान पाँचों ही ज्ञान प्रमाण हैं

  5. प्रामाणिक चीज क्या है? knowledge ही प्रमाण है। मतलब ज्ञान ही हमारे लिए प्रमाण का काम करता है।

  6. अन्य दर्शन जैसे वैशेषिक, मीमांसक आदि अलग-अलग चीजों को प्रमाण मानते हैं – जैसे इन्द्रियाँ, योगी प्रत्यक्ष आदि

  7. चूँकि इन्द्रिय-ज्ञान की अपनी सीमा होती है और जो वस्तुयें इन्द्रिय गम्य नहीं हैं जैसे परमाणु वे भी exist करती हैं इसलिए जैन दर्शन में इन्द्रिय ज्ञान को प्रामाणिक नहीं माना है

  8. जैनों ने आत्मा को सर्वज्ञ माना है और आत्मा में सर्वज्ञ की सिद्धि की है।

  9. प्रत्यक्ष ज्ञान केवलज्ञान ही प्रामाणिकता की कोटि में आता है, यही सबसे बड़ा प्रमाण है

  10. केवलज्ञान से ही हमारे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान में प्रामाणिकता आती है

    1. क्योंकि जो सर्वज्ञ ने केवलज्ञान में जैसा जाना और कहा हमने वैसा अपने ज्ञान में मान लिया

  11. केवलज्ञान को प्रमाण मानने से इन्द्रिय ज्ञान और मन भी प्रामाणिक ज्ञान में आ जाते हैं

  12. यदि हम केवलज्ञान में जो बताया है उसके विरुद्ध मानेंगे तो हमारा ज्ञान प्रमाण नहीं होगा

  13. इसके लिए हमने न्याय का एक सूत्र पढ़ा - सम्यग्ज्ञानम् प्रमाणम् अर्थात जो ज्ञान सम्यक् है वही प्रमाण है

  14. इसलिए मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान को आशय यहाँ सम्यक् मतिज्ञान और सम्यक् श्रुतज्ञान समझना चाहिए

  15. एकेन्द्रिय, दो-तीन-चार इन्द्रिय, असंज्ञी पशु-पक्षियों का मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान मिथ्या ज्ञान की श्रेणी में आता है ।

  16. षटखण्डागम सूत्रों में मतिज्ञान को अभिनिबोधिक ज्ञान की संज्ञा दी है।

  17. आगम प्रमाण मानाने वाले मीमांसक केवल वेदों को प्रमाण मानते हैं क्योंकि वेद सनातन हैं

  18. लेकिन जैनाचार्य कहते हैं कर्ता रहित आगम प्रमाण नहीं होता।

  19. हमने जाना हमारे आगम के कर्ता (अर्थकर्ता) सर्वज्ञ अरिहन्त भगवान हैं

  20. अरिहंत हमें पदार्थों का ज्ञान कराने वाले मूलभूत हैं अतः उनकी सर्वज्ञता से कहा हुआ ही प्रामाणिक है

  21. श्री तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ, जिसका हम स्वाध्याय कर रहे हैं, के सूत्र भी प्रमाणिक हैं

  22. क्योंकि गणधर आचार्यो की परम्परा में गृद्ध पिच्छ आचार्य अंतिम आचार्य माने जाते हैं

  23. इन छोटे-छोटे सूत्र में बहुत गहरे अर्थ भरे हुए हैं

  24. आचार्य पूज्यपाद, आचार्य अकलंक, आचार्य विद्यानन्दी महाराज आदि तार्किक आचार्यों ने इन सूत्रों की टीका के माध्यम से अन्य मत-मतान्तरों का खंडन करते हुए इनकी प्रमाणिकता सिद्ध की है

  25. हमने जाना कि जिनके अन्दर सम्यग्दर्शन है, मिथ्यात्व का अभाव है और सम्यग्ज्ञान की जिनके अन्दर धारणा है, उन्हीं का ज्ञान प्रामाणिक माना जाता है

  26. कक्षा के अंत में हमने सूत्र 11 - “आद्ये परोक्षम्” में परोक्ष ज्ञान के बारे में जाना

    1. आदि के दो ज्ञान यानि मति और श्रुत परोक्ष ज्ञान हैं