श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 05
सूत्र - 3
सूत्र - 3
गोटेगाँव चातुर्मास में पंच लब्धि की गोष्ठी l एक काल-लब्धि अलग से कहाँ से आ गई? सम्यग्दृष्टि का संसार में अनन्त से घटकर अर्ध-पुद्गल-परावर्तन प्रमाण रह जाएगा l अर्ध-पुद्गल-परावर्तन काल भी बहुत-बड़ा संसार है l हमें प्रमादी नहीं होना चाहिए l पण्डित लोग मान लेते हैं कि उनको तो सम्यग्दर्शन निश्चित होगा l जो सम्यग्चारित्र की आराधना करता है वह सब की आराधना कर लेता है। सम्यग्चारित्र पर केन्द्रित होने से सम्यग्दर्शन तो स्वतः हो जायेगा। सिर्फ सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान की आराधना करने से सम्यग्चारित्र की भी आराधना हो यह आशय नहीं । पण्डित लोग सही मार्ग से वंचित करते हैं । सम्यग्चारित्र के साथ निश्चित रूप सम्यग्दर्शन से आएगा । आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने पंच-लब्धियों को train के उदहारण से समझाया । विशुद्धि लब्धि- पटरी की बाधाएँ दूर करना ।देशना लब्धि- गाड़ी चलने वाली है।प्रायोग्य-लब्धि - भाप बनने का नाम है। करण-लब्धि- गाड़ी चलना शुरू होना।
सम्यक्त्व-चारित्रे।l3।l
Anita Jain
Bina
WIINNER- 1
कुसुम जैन
Kolkata
WINNER-2
Ankita Jain
Haryana
WINNER-3
सम्यग्दर्शन होने पर सम्यग्दृष्टि जीव के कितना काल शेष रह जाता है?
66 सागर
33 सागर
अर्ध पुद्गल परावर्तन काल *
एक कोड़ा कोड़ी सागर
हमने समझा कि काल-लब्धि का मतलब सिर्फ एक योग्यता बताना है। ऐसा नहीं है कि ऐसा होने पर नियम से सम्यग्दर्शन हो ही जाएगा।
संज्ञी-पंचेन्द्रिय होना, पर्याप्तक होना, विशुद्ध होना, जागृत होना आदि सामान्य योग्यताएँ हैं। इन योग्यताओं से सम्यग्दर्शन नहीं होता लेकिन यह होगा तो इन योग्यताओं के होने पर ही होगा।
काल-लब्धि भी एक सामान्य लब्धि ही है
तीनों प्रकार की काल लब्धि पंच-लब्धियों में गर्भित हैं
सम्यग्दृष्टि का संसार अनन्त से घटकर अर्ध-पुद्गल-परावर्तन प्रमाण रह जाता है
यह संसार परिभ्रमण की अपेक्षा बहुत बड़ा काल, अनन्त जैसा जी काल है
लेकिन केवली सर्वज्ञ भगवान के ज्ञान की अपेक्षा से यह सीमित है
भगवान आदिनाथ के समय से लेकर मरीचि का जीव पूरे चौथे काल में भटकता रहा; तब उसकी लब्धि फिर आई
इससे हमें सोचना चाहिए कि हम प्रमादी न बनें और न ये सोचें कि सम्यग्दर्शन होने पर ही सब कुछ हो जाएगा
अन्तरंग में चारित्र, व्रत, संयमादि के प्रति प्रमाद भटकाता है
हमें विचार करना चाहिए कि जब सम्यग्दर्शन के बाद भी जब इतना संसार है तो जिनको सम्यग्दर्शन की कोई guarantee नहीं है उनका कितना संसार है
हमने जाना कि एकान्त धारणा कि पहले सम्यग्दर्शन कर लो फिर सम्यग्चारित्र तो आ ही जाएगा भी मिथ्या धारणा है
अगर आप बड़ी चीज पर focus करोगे तो उससे पहले मिलने वाली चीज तो आपके अन्दर आ ही जाएगी
भगवती आराधना आदि ग्रन्थों के अनुसार सम्यग्चारित्र की आराधना करने से सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान की आराधना हो जाती है
अगर सम्यग्चारित्र पर केन्द्रित होंगे तो से सम्यग्दर्शन स्वतः हो जायेगा
अगर आपने आप्त और गुरुओं की बात पर श्रद्धान करके, सम्यग्चारित्र धारण कर लिया तो यह श्रद्धान ही आपके लिए सम्यग्दर्शन का कारण है
हमने जाना प्रथमोपशम सम्यक्त्व हमेशा पंच-लब्धि के माध्यम से प्रारम्भ होता है
आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने सम्यक्त्व-सार-शतक ग्रन्थ में पंच-लब्धियों को train के उदाहरण से समझाया।
train के डिब्बे या पूरी train तो हो गई मोक्ष का मार्ग, अब वह आपको मोक्ष में ले जाएगी
जो पटरियाँ बिछी हुई हैं वह काल-लब्धि है
train में engine है, उसमें जो उसके पहिये हैं, वह हो गई उसकी क्षयोपशम-लब्धि
पटरी पर व्यवधान हटाने वाला यन्त्र हो गया विशुद्धि लब्धि
गाड़ी सीटी बजाकर चलने वाली है, यह है देशना लब्धि
engine के अन्दर boiler में भाप बनना, उसमें jerk लगता यह हैं प्रायोग्य-लब्धि
गाड़ी चलना शुरू होना है करण-लब्धि
उसके station हो गए- अधः प्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण, अनिर्वृत्तिकरण
यह train ऐसी fast express है कि ये तीन स्टेशनों को पार करने के बाद ही शान्त होगी, रुकेगी