श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 04
सूत्र - 02
Description
सभी अजीवकाय द्रव्य भी हैं। हम इन्हें अजीव अस्तिकाय भी कह सकते हैं क्योंकि 'द्रव्याणि' सूत्र इनके अस्तित्व को कहता है। Science में Quantum Field के माध्यम से इसे समझाया जाता है। परिवर्तन, द्रव्य का स्वभाव है। द्रव्य में परिवर्तन अंतरंग और बाह्य दो कारणों से होता है। द्रव्य में परिवर्तन दो रूपों में संभव है। धर्म, अधर्म और आकाश इन तीन अजीव अस्तिकायों में स्वभाव रूप परिवर्तन ही होता है। पुद्गल अजीव अस्तिकाय में स्वभाव से विभाव में परिवर्तन (परिणमन) होता है। द्रव्य में बाहरी निमित्त के बिना परिणमन संभव नहीं। परिवर्तन सापेक्षिक होता है। धर्म, अधर्म और आकाश तीनों हमेशा शुद्ध ही रहे हैं और रहेंगे। 'द्रव्याणि' इस छोटे से सूत्र का बहुत बड़ा प्रयोजन है। पदार्थ में परिणमन, उपादान और निमित्त के मिलने पर ही होता है। उपादान और निमित्त दोनों की योग्यता को न मानने पर हम एकांतवादी हो जाएँगे।
Sutra
द्रव्याणि।।2।।
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WINNERS
Day 04
23rd Mar, 2023
हेमलता जैन
सवाईमाधोपुर राज
WINNER-1
अनुज जैन
इंदौर
WINNER-2
Madhu jain
Chandigarh
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
निम्न में से किस अस्तिकाय का स्वभाव से विभाव में परिणमन होता है?
जीव का*
धर्म का
अधर्म का
आकाश का
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र दो - द्रव्याणि में हमने लोक में फैले हुए द्रव्यों की सत्ता स्वीकार की, अस्तित्व को माना
सभी द्रव्यों के अपने कुछ गुणधर्म होते हैं
द्रव्य को science की language में substance, या पदार्थ कहते हैं
धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल को हम अजीव अस्तिकाय कहते हैं
क्योंकि ये सभी अजीव हैं
अपने अस्तित्व को धारण करते हैं
और कायरूप यानि बहुप्रदेशी हैं
कहीं न कहीं विज्ञान भी इन्हें स्वीकारता है
और इनकी energy को महसूस करने की कोशिश करता है
इन्हीं अजीव अस्तिकाय के रूप में फैले हुए द्रव्यों को science - Quantum Field के रूप में कहता है
हमने जाना कि द्रव्य कभी भी कूटस्थ नहीं होता
हमेशा एक जैसा नित्य स्वभाव वाला नहीं होता
इसमें परिवर्तन होता है
इसी परिवर्तन के कारण से वह अपनी सत्ता को बनाये रखता है
सिद्धान्ततः द्रव्य में परिवर्तन दो कारणों से होते हैं
पहला अंतरंग कारण - यह द्रव्य की अपनी निजी शक्ति होती है
वह इस शक्ति को कभी भी छोड़ता नहीं है
इसे उपादान भी कहते हैं
और दूसरा बाह्य कारण - जिसे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के रूप में स्वीकारते हैं
विज्ञान के अनुसार भी every substance has change and change is inevitable
यानि वस्तु में परिवर्तन होते हैं
और परिवर्तन होना अपरिवर्तनीय है
यह परिवर्तन शाश्वत है
यह परिवर्तन द्रव्य में दो रूपों में संभव है
पहला स्वभाव का स्वभाव में परिवर्तन
यह धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य में होता है
ये हमेशा शुद्ध ही रहे हैं और रहेंगे
इसके बावजूद भी इनमें परिवर्तन होता है
और स्वभाव का विभाव में परिवर्तन
यह पुद्गल में होता है
पुद्गल का स्वभाव रूप परमाणु है यानि atom
यह उसका अपना शुद्ध भाव है, शुद्ध state है
विभाव में वह स्कंध के रूप में परिवर्तित हो जाता है
हमने जाना कि द्रव्य में परिणमन के लिए
निजी शक्ति
और बाहरी निमित्त
दोनों उपलब्ध होने चाहिए
दोनों चीजों से ही द्रव्य अपनी सत्ता को बनाए रखेगा और सत् कहलाएगा
इसे absolute truth कहते हैं
जो परिवर्तन के रूप में दिखता है वह relative truth होता है
वर्तमान में हम इसे theory of relativity के माध्यम से जानते हैं
तीर्थंकरों द्वारा बतायी इस theory को हजारों वर्षों बाद Einstein ने सापेक्षवाद का सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया
प्रत्येक पदार्थ में change सापेक्षिक होता है, निरपेक्ष नहीं
निरपेक्ष परिवर्तन किसी अन्य पदार्थ की अपेक्षा न रखता
द्रव्य अपने आप परिवर्तन करले, यह संभव नहीं है
प्रत्येक द्रव्य को अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए भी दूसरा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आवश्यक है
'द्रव्याणि' सिर्फ एक तीन अक्षर का छोटा सा सूत्र नहीं है
द्रव्य के अस्तित्व को स्वीकारना और उस पर जोर डालना इसका बहुत बड़ा प्रयोजन है
मुनि श्री ने समझाया कि यदि हम पदार्थ के परिणमन में आवश्यक
अंतरंग कारण अर्थात उपादान
या बाहरी निमित्त
में से किसी एक चीज की नियामकता पर जोर देते हैं
तो हम एकांतवादी हो जाते हैं
हम एकान्तवादी हो करके अनेकान्त की प्रस्तुति करने का भी साहस कर बैठते हैं
दूसरे द्रव्य की शक्ति भी उसके लिए सापेक्ष हो बाहरी निमित्त रूप में काम आती है
इस तरह सापेक्षिकता के सिद्धान्त का प्ररोपण करने से अनेकान्त धर्म समझ में आएगा
कोई भी द्रव्य एकान्त रूप से स्वतंत्र नहीं है