श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 32
सूत्र - 22,23
सूत्र - 22,23
time is always present। Collection of time क्या है। काल का माप। सूरज का घूमना भी काल द्रव्य के कारण होता है। हमारा संसार और पुद्गल चार चीजों से मिलकर बना है।
वर्तना-परिणाम-क्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य ॥5.22॥
स्पर्श-रस-गंध-वर्णवन्त:पुद्गला:॥5.23॥
Nikita Sandeep Pahade
Germany
WINNER-1
Anjana Jain
Jaipur
WINNER-2
Balasaheb Pallakhe
Sangli Maharashtra
WINNER-3
एक स्वस्थ मनुष्य के अन्दर एक मुहूर्त में कितनी श्वासोच्छवास हो जाती हैं?
सात सौ पंद्रह(715)
दो हज़ार पांच सौ चौबीस(2524)
तीन हजार सात सौ तिहत्तर(3773)*
चार हज़ार एक सौ इक्कीस(4121)
हमने जाना कि व्यवहार काल में ही past, present, future का dividation होता है
ये सापेक्षिक होता है
जहाँ से हम देखें वह वर्तमान
उसके पीछे भूतकाल
और आगे भविष्य काल होता है
मुनि श्री ने समझाया कि हमारे चलने के कारण
काल पर भी चलने का आरोप लगता है
समय हमेशा वर्तमान ही रहता है
हम उसके अनुसार भूत और भविष्य कहते हैं
हम द्रव्य में परिणमन के कारण काल को past कहते हैं
परमार्थ या निश्चय काल में कोई dividation नहीं होता
इसकी दृष्टि से काल में बस वर्तना होती है
collection नहीं होते
व्यवहार काल से collection शुरू होता है
time की सबसे छोटी indivisible unit समय है
असंख्यात समय की एक आवली
और संख्यात आवली की एक नाड़ी होती है
ये हमारी pulse और उच्छवास है
सात उच्छवासों का एक स्तोक
सात स्तोकों की एक लव
और साढ़े अड़तीस लव की एक नाली या घड़ी होती है
दो घडी या अड़तालीस मिनट का एक मुहूर्त होता है
5. अन्तर्मुहूर्त या भिन्न मुहूर्त एक मुहूर्त से कम होता है
6. एक स्वस्थ मनुष्य एक मुहूर्त में तीन हजार सात सौ तिहत्तर pulse या श्वासोच्छवास करता है
7. मुहूर्तों से दिन
दिनों से पक्ष
पक्ष से महीने बनते हैं
8. महीने से ऋतु, ऋतु से अयन, अयन से वर्ष बनते हैं
9. और करोड़ों वर्षों से हम पूर्व की गणना करते हैं
10. ये सभी व्यवहार काल हैं
जो हमारे काम आते हैं
निश्चय काल तो सिर्फ शास्त्रों से समझ आता है
चौथे अध्याय के सूत्र तेरह और चौदह में हमने पढ़ा था कि
सूर्य और चन्द्रमा के मेरु की प्रदिक्षणा करने से काल का विभाग होता है
मुनि श्री ने व्यवहार और निश्चय काल से इसके combination को सरलता से समझाया
जो दिखता है वह स्थूल है
और जो नहीं दिखता वह सूक्ष्म
सभी कार्य काल द्रव्य के माध्यम से चलते हैं
यहाँ तक सूरज का घूमना भी
सूरज में हो रही, गली में घूमने वाली स्थानांतरण आदि क्रियाओं में भी काल द्रव्य निमित्त है
क्योंकि उसका परिणाम और उसके पीछे हो रही वर्तना भी काल द्रव्य के कारण है
जैसे किसी भी कार्य के होने में कई निमित्त होते हैं
वैसे ही दिन-रात का विभाजन होने में
सूरज का घूमना भी कारण है
काल द्रव्य भी
और हमारा सोना-उठना भी
हर द्रव्य इन सब परिवर्तन में निमित्त है
हमने जाना कि विज्ञान केवल व्यवहार काल जानता है
इसमें time की अलग से definition ही नहीं है
इसे space-time theory में space के साथ ही define किया है
जिसमें time, space से relate ही चलता है
जैसे कितने time में, कहाँ तक गति हुई?
विज्ञान की theory of relativity को यहाँ परत्व अपरत्व बताया है
विज्ञान की गति, क्रिया-परिणाम और परत्व-अपरत्व से ही हो जायेगी
वर्तना तक नहीं जा सकती
प्रति समय जो हो रहा है वह विज्ञान में नहीं आयेगा
अनुमान में आयेगा
आगमानुसार अनुमान ज्ञान के माध्यम से कार्य के पीछे के कारण को जाना जाता है
जब कार्य करने वाला द्रव्य नहीं होगा तो कार्य भी नहीं होगा
वर्तमान में काल द्रव्य की सिद्धि अनुमान या आगम ज्ञान से होती है
इसकी सिद्धि प्रत्यक्ष नहीं हो सकती
सूत्र तेईस स्पर्श-रस-गंध-वर्णवन्त:पुद्गला: में हमने जाना कि
स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पुद्गल के लक्षण हैं
अन्य द्रव्यों के नहीं
इसी से हम इनके रंग-रूप पहचानते हैं
हमने जाना कि जो भी matter form के साथ है वो सब पुद्गल हैं
consciousness रहित हैं
जड़ हैं
मूर्तिक हैं
इन लक्षणों के बिना द्रव्य अमूर्तिक होते हैं
इन्हीं चार चीजों से मिलकर सारा संसार बना हुआ है