श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 09
सूत्र - 11
सूत्र - 11
महिलाओं को अशुद्धि के दिनों में घर से बाहर नहीं जाना चाहिए। भूत जाति के देवों के भेद। पिशाच जाति के देवों का स्वरूप। पिशाच जाति के इन्द्रों के नाम। व्यन्तर जाति के देव वैमानिक देवों की अपेक्षा छोटे होते हैं। व्यन्तर जाति के देवों की आयु का वर्णन। व्यन्तर जाति के देवों के आहार का वर्णन। व्यन्तर जाति के देवों के श्वासोच्छवास का वर्णन। व्यन्तर जाति के देवों के श्वासोच्छवास का वर्णन। व्यन्तर जाति के देवों की सामर्थ्य। व्यन्तर देवों के शरीर का वर्ण। सभी देवों का सामान्य स्वरूप। व्यन्तर देवों से डरने की जरूरत नहीं।
व्यन्तराः किन्नर-किंपुरुष-महोरग-गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाचाः॥11॥
उषा भोपावत
भीण्डर
WINNER-1
वनिता धिरावत घाटोल
जिला बांसवाड़ा
WINNER-2
Samyak Jain
Binauli
WINNER-3
वैसा ही रूप बनाने में कौनसी जाति के देव कुशल होते हैं?
राक्षस
भूत*
यक्ष
पिशाच
हमने जाना कि सातवीं प्रकार के व्यंतर देव भूत जाति के होते हैं
और इनके इंद्र प्रतिरूप और अप्रतिरूप होते हैं
प्रतिरूप भूत जाति के देव प्रतिरूप यानि वैसा ही रूप बनाने में कुशल होते हैं
आठवें प्रकार के व्यंतर देव पिशाच जाति के होते हैं
अक्सर पिशाचों को श्मशान घाट पर नाचने वाला
dead body का उपयोग करने वाला
माँस इत्यादि खाने वाला माना जाता है
लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता है
इन्हें सिर्फ डराने में मजा आता है
मनुष्यों को भगाना, इनके कौतुक हैं
पिशाच जाति के इन्द्र हैं - काल और महाकाल
अब हम जानते हैं कि पिशाच, भूत सब होते हैं
लेकिन ये बिना वजह किसी के लिए कुछ बाधा नहीं करते हैं
ये नहर, गुफा, किनारे, पर्वत, एकान्त स्थान, शून्य स्थान, पेड़ के नीचे आदि स्थानों पर क्रीडा करते हैं
हमें उन स्थानों पर जाने से पहले कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए
नहीं तो ये हमें परेशान करते हैं या पीछे पड जाते हैं
ऐसे किसी स्थान पर घुसने, खेलने-कूदने से पहले
हमें निःसहि निःसहि निःसहि बोलना चाहिए
और लौट कर जाने पर अस्सहि अस्सहि अस्सहि कहना चाहिए
ये सम्मान सूचक शब्द हैं और ये उन्हें सतर्क करते हैं
महिलायें अशुद्धि के दिनों में ऐसे स्थानों पर न जाएँ
वट, पीपल के वृक्ष के नीचे गन्दगी न करें
सावधानी न रखने से इस तरीके की बाधाएँ होना स्वाभाविक है
व्यन्तर देव वैमानिक देवों की अपेक्षा छोटे होते हैं
यानि इनमें विक्रिया करने की शक्ति, सामर्थ्य कम होती है
उत्कृष्ट विक्रिया में भी ये एक साथ सौ रूप ही बना सकते हैं
दस हजार वर्ष आयु वाला व्यन्तर देव सौ मनुष्यों को पछाड़ सकता है
और एक पल्य आयु वाला देव भी, छह खण्ड में भी उथल-पुथल मचा सकता है
वैमानिक देवों की सामर्थ्य बहुत बड़ी होती है
सौ आदमी से ज्यादा बल तो नारायण, चक्रवर्ती आदि महापुरुषों में भी होता है
और ये व्यन्तर उन महापुरुषों के दास होते हैं
जहाँ वैमानिक देवों की आयु सागरों में, पल्योपम होती है
व्यंतर देवों की minimum आयु दस हजार वर्ष
और अधिकतम आयु एक पल्य होती है
दस हजार वर्ष आयु वाले भवनवासी और व्यन्तर दो दिन के अन्तराल में मानसिक आहार करते हैं
और सात श्वासोच्छवास के बाद एक श्वास लेते हैं
पल्यप्रमाण आयु वाले देव पाँच दिन बाद आहार करते हैं
और पाँच मुहूर्त के बाद श्वास लेते हैं
व्यन्तरों का मूल शरीर काले रंग ही होते है
सिर्फ किम्पुरुषों का स्वर्ण
और किन्नरों का प्रियंगु फल यानि जामुन जैसा नीले रंग का होता है
श्यामल होते हुए भी इनका शरीर आभावान होता है
ये विक्रिया द्वारा उत्तर शरीर से तरह-तरह के भेष बनाकर डराते हैं
हमने सभी देवों के सामान्य स्वरूप को भी जाना
इनके समचतुरस्र-संस्थान होता है
इनका हुलिया या आकृति बुरी नहीं होती
और न दाँत और जुल्फें बाहर निकलते
ये मूल में अच्छे, सुन्दर और आकर्षक होते हैं
और अपनी क्रीड़ाओं में मस्त रहते हैं
हमें व्यन्तर देवों के अन्दर की शक्ति को जानकर
इनसे डरना नहीं चाहिए