श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 33
सूत्र - 36
सूत्र - 36
अन्तरद्वीपज म्लेच्छों के ऐसे ही ४८ स्थान कालोदधि समुद्र में भी होते हैं। अन्तरद्वीपज म्लेच्छों की आकृति भी अजीब होती है। पूर्व दिशा वाले म्लेच्छ मनुष्यों का एक ही पैर होता है और दक्षिण वालों के सींग। पश्चिम दिशा वाले म्लेच्छ मनुष्यों की पूँछ होती है और उत्तर वाले गूंगे। विदिशाओं में विचित्र-विचित्र मुँख वाले मनुष्य होते हैं। अन्तरद्वीपज म्लेच्छों का रहन-सहन व आयु। अन्तरद्वीपज म्लेच्छों में उत्पति के कारण। धर्म को फल की इच्छा से करने वाले भी अंतरद्वीपज म्लेच्छ बनते हैं। सूतक-पातक में सत्पात्र दिया गया दान भी म्लेच्छ बनने का कारण है। दुर्भावनाओं से सहित होकर दिया गया दान भी म्लेच्छ बनता है। अशुचिता अशुद्धि वाले लोगों के साथ छूकर दिया गया दान भी। इसलिए दान में शुद्धि का महत्त्व है। हमारी मानसिकता हमें दान देकर भी अंतरद्वीपज म्लेच्छ बना सकती है।
आर्या म्लेच्छाश्च ॥3.36॥
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दक्षिण दिशा वाले अन्तरद्वीपज मलेच्छ कैसे होते हैं?
गूंगे
1 पैर वाले
सींग वाले*
पूँछ वाले
हमने जाना कि द्वीप के अन्दर जन्म लेने वाले अंतरद्वीपज म्लेच्छ कहलाते हैं
इनके छियानवे स्थान होते हैं
अड़तालीस लवण समुद्र में
और अड़तालीस कालोदधि समुद्र में
लवण समुद्र में
सोलह दिशा संबंधी स्थान होते हैं
चार दिशाओं में, चार विदिशाओं में और आठ उनके अन्तरालों में
आठ पर्वत सम्बन्धी स्थान होते हैं
चार भरत क्षेत्र के समीप
दो हिमवान पर्वत के पार्श्व भागों में
दो विजयार्ध पर्वत के पार्श्व भागों में
चार ऐरावत क्षेत्र के समीप
दो शिखरी पर्वत के पार्श्व भागों में
दो विजयार्ध पर्वत के पार्श्व भागों में
इस तरह ये चौबीस अंतरद्वीपज म्लेच्छों के स्थान लवण समुद्र के बाहरी भाग में हैं
और चौबीस स्थान लवण समुद्र के अन्दर हैं
इसी तरह कालोदधि समुद्र में भी अड़तालीस स्थान होते हैं
अन्तरद्वीपज म्लेच्छों की आकृति सामान्य मनुष्यों से अजीब और बड़ी बेढंगी होती हैं
आचार्यों ने दिशाओं और विदिशाओं के अनुसार शास्त्रों में इनका विभाजन किया है
पूर्व दिशा में रहने वाले म्लेच्छों के नियम से एक ही जाँघ, एक ही पैर होता है
दक्षिण दिशा वालों के सींग होते हैं
पश्चिम दिशा वालों के पूँछ होती है
और उत्तर दिशा वाले गूंगे होते हैं
विदिशाओं में, उनके अंतरालों में, बहुत विचित्र-विचित्र मुख वाले मनुष्य होते हैं
जैसे- ऊँट की आकृति, गधे की आकृति, हाथी की आकृति, शीशा के समान मुख आदि
शास्त्रानुसार पूर्व दिशा में रहने वाले अंतद्वीपज मनुष्य गुफाओं में रहते हैं
शेष सभी बाहर खुले में ही रहते हैं
ये फल-फूल, कंदमूल, पत्ते, मिट्टी इत्यादि खाकर अपना जीवन जीते हैं
इनकी आयु एक पल्य होती है
इन्हें हम दुःखी मनुष्य ही समझें
अन्तरद्वीपज म्लेच्छों में उत्पत्ति के कारण हैं
मिथ्यात्व
सम्यक्त्व को प्राप्त करके उसे नष्ट करना
कुपात्रों का दान देना
धर्म को फल की इच्छा से करना
सूतक-पातक में सत्पात्र को दान देना
रजस्वला स्त्रियों के स्पर्श के साथ दान देना
दुर्भावनाओं से सहित होकर दान देना
तिलोयपण्णत्ति और त्रिलोकसार ग्रंथ में आचार्यों ने बताया है कि दान देने में शुद्धता, पवित्र भावनाएँ, द्रव्य, क्षेत्र शुद्धि, जाति आदि का ध्यान नहीं रखना अंतरद्वीपज म्लेच्छों में उत्पत्ति का कारण बन जाता है
जहाँ दान के फल से भोग भूमियाँ और स्वर्ग मिलते हैं
वहीं विकृत मानसिकता, अन्दर दुर्भावना, अशुद्धि आदि रहते हुए दान देने से अंतरद्वीपज म्लेच्छों में जन्म हो सकता है
इसलिए दान में शुद्धि और भावादि को संभालने का विशेष महत्त्व है