श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 34
सूत्र - 37
Description
भरत, ऐरावत विदेह को छोड़कर शेष भोगभूमि है। कर्मभूमि में ही जीव हर तरह के कर्म करता है। कर्मभूमि में किये गए कर्म ही तीन लोक में फल देते हैं। पंचम काल में मध्यम स्थिति की कर्मभूमि है। जीव कर्म भूमि में कर्म करने के लिए ही जन्मा है। तीनों लोक की संरचना जानने का सारांश। ढाई द्वीप में भरत, ऐरावत क्षेत्रों की संख्या। ढाई द्वीप में क्षेत्रों की कुल संख्या। विदेह क्षेत्र संबंधी देवकुरु और उत्तरकुरू। ४५ क्षेत्रों में भोगभूमि और कर्मभूमि की गणना। ढाई द्वीप की तीस भोगभूमियों के नाम। जैन गणित में ४५ के अंक का महत्त्व जैन गणित। श्री धवला टीका से असंख्यात और अनंत को समझने का तरीका।
Sutra
भरतैरावत विदेहा: कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरूभ्यः ॥3.37॥
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WINNERS
Day 34
21st November, 2022
WIINNER- 1
WINNER-2
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
ढाई द्वीप में कर्मभूमियों की कुल संख्या कितनी है?
15*
30
35
45
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र सैंतीस भरतैरावत विदेहा: कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरूभ्यः में हमने जाना कि भरत, ऐरावत और विदेह क्षेत्र में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर; कर्मभूमियाँ होती हैं
जीव कर्मभूमि में ही अच्छे या बुरे कर्म अर्जित करता है और
वही कर्म तीन लोक में फल देने वाले होते हैं
जीव उत्कृष्ट अच्छे कर्म करके सर्वार्थसिद्धि आदि में जन्म लेता है
और बुरे या निकृष्ट कर्म करके सप्तम नरक आदि में जन्म लेता है
भोगभूमियों में कोई कर्म नहीं होता
वहाँ तो केवल कर्मफल का भोग होता है
वर्तमान में पंचम काल में मध्यम स्थिति की कर्मभूमि है
यहाँ पर इतने उत्कृष्ट कर्म नहीं किए जा सकते कि हम सर्वार्थसिद्धि आदि में पहुँच जाएँ
या केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष आदि प्राप्त कर सकें
और ना ही इतने निकृष्ट पाप कर सकते कि सप्तम नरक में पहुँच जाएँ
ऐसा चतुर्थ काल की कर्मभूमि में होता था
आने वाली छठवें काल की कर्मभूमि इससे भी दुर्गति वाली होगी
जीव कर्मभूमि में कर्म करने के लिए ही जन्मा है
और कर्मफल पर विश्वास करके हमें अपने कर्मों की दिशाएँ बदल लेनी चाहिए
बुरे कर्म करने को रोकने की कोशिश ही हमारा पुरुषार्थ है
और यही पुरुषार्थ इस कर्मभूमि का एक वरदान है
हमने समझा कि ढाई द्वीप में कुल पैंतीस क्षेत्र होते हैं
सात जम्बूद्वीप में
चौदह-चौदह धातकीखंड द्वीप और पुष्करार्ध द्वीप में
ढाई द्वीप में विदेह क्षेत्र संबंधी दस, देवकुरु और उत्तरकुरू होते हैं
इस तरह ढाई द्वीप में कुल भोगभूमियाँ और कर्मभूमियाँ पैंतालीस होती हैं
इनमें पंद्रह कर्मभूमियाँ हैं - पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच विदेह
शेष बची हुई तीस भोगभूमियाँ हैं
जम्बूद्वीप में हैमवत, हैरण्यवत, रम्यक और हरि क्षेत्रों की चार और देवकुरू, उत्तरकुरू मिलाकर कुल छह भोगभूमियाँ हैं
इस तरह ढाई द्वीप में पाँच गुना यानि तीस भोगभूमियाँ हैं
हमने देखा कि जैन गणित में पैंतालीस एक महत्त्वपूर्ण अंक है
पैंतालीस लाख योजन का ढाई द्वीप है
इतनी ही बड़ी सिद्धशिला है
और पैंतालीस ही भूमियाँ हैं
हमने जाना चतुर्थ काल में कर्मभूमि का काल बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ा-कोड़ी सागर था
जो असंख्यातों वर्षों का काल होता है
श्री धवला टीका ग्रंथ में आचार्य वीरसेन महाराज ने समझाया कि
असंख्यात या innumerable संख्या एक-एक कम करते-करते समाप्त हो जायेगी
मगर अनन्त संख्या कभी समाप्त नहीं होगी
असंख्यात संख्या को अवधिज्ञानी आदि प्रत्यक्ष जानते हैं