श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 27
सूत्र - 20,21
सूत्र - 20,21
पुद्गल, जीव और पुद्गल दोनों पर उपकार करता है। सूत्रों में 'च' का प्रयोग और सूत्रकार आचार्य महाराज की प्रज्ञा। पुद्गल का पुद्गल पर उपकार के दैनिक जीवनचर्या के उदाहरण। पुद्गल का जीव पर उपकार। इन सूत्रों को समझने से भेद-विज्ञान की पुष्टता। जीव का जीव पर उपकार। सुख-दुःख, जन्म-मरण भी जीव का जीव पर उपकार है। जीव का जीव पर परस्पर(mutual) उपकार होता है। नौकर भी मालिक पर उपकार करता है। बच्चों का माता-पिता पर उपकार। यह सूत्र जैन धर्म के प्रतीक चिह्न पर अंकित किया गया है। वर्तमान science भी जीवों के परस्पर उपकार करने के सिद्धांत को स्वीकार करता है। Science पढ़ने वाले बच्चों को जैन धर्म के इन सिद्धान्तों पर research करना चाहिए, PhD करना चाहिए।
सुख-दुःख-जीवित-मरणोपग्रहाश्च॥5.20॥
परस्परोपग्रहोजीवानाम् ॥5.21॥
Rajkumari Jain
Gandhidham
WINNER-1
Kavita Pidiyar
Indore
WINNER-2
Shridevi vardhaman
Goa
WINNER-3
'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' यह तत्त्वार्थ-सूत्र के पाँचवें अध्याय का कौनसे number का सूत्र है?
पन्द्रहवाँ
बीसवाँ
इक्कीसवाँ*
चौबीसव
सूत्र बीस सुख-दुःख-जीवित-मरणोपग्रहाश्च में 'च' शब्द का प्रयोग आचार्यों की प्रज्ञा को बताता है
आचार्य अकलंक देव के अनुसार
जहाँ धर्म, अधर्म आदि द्रव्य केवल दूसरे द्रव्यों पर उपकार करते हैं
स्वयं पर नहीं
वे अपनी गति या स्थिति में सहायक नहीं होते
पुद्गल द्रव्य, पुद्गल पर भी उपकार करता है और जीव पर भी
पौद्गलिक औषधि का पुद्गल शरीर से रोग निष्कासित करना पुद्गल पर उपकार है
और उससे उत्पन्न नीरोगता की प्रसन्नता जीवात्मा पर उपकार है
दैनिक जीवन में इसे कई उदाहरणों से समझ सकते हैं
जैसे अच्छे भोजन के बाद मिली तृप्ति
अच्छी नींद न होने पर सिर दर्द
यदि हम अपने भोजन, सोना, व्यापार आदि दैनिक कार्यों में चिंतन करें
कि कौन सा पुद्गल पुद्गल पर उपकार कर रहा है
और कौन सा जीव पर
तो हमें भेद विज्ञान हो जाएगा
तत्व ज्ञान बढ़ेगा
और जीव और अजीव का भेद ज्ञान होगा
सूत्र इक्कीस परस्परोपग्रहोजीवानाम् में आचार्य कहते हैं
परस्पर में एक दूसरे का उपग्रह करना ही जीवों का काम है
अतः ऐसा नहीं हो सकता कि जीव दूसरे पर उपग्रह करता चला जाये;
पर उसके ऊपर उसका उपग्रह न हो
संसारी अवस्था में जीव परस्पर में ही उपग्रह करेगा
पिछले सूत्र की अनुवृत्ति से सुख, दुःख, जीवन और मरण भी जीव का उपग्रह हैं
अर्थात जीव एक जीव को सुख-दुःख भी देगा
और एक दूसरे के जीवन मरण का भी कारण बन जायेगा
मुनिश्री ने जीव के जीव पर उपकार को उदाहरण से समझाया
जैसे गुरु का उपदेश सुनकर ज्ञान अर्जन करना गुरु का हम पर उपकार है
और curiosity से नीरस विषय के भी प्रवचन सुनना परस्पर का उपकार है
गुरु उपदेश से सीखे भेद-विज्ञान के कारण अपने दुःखों से प्रभावित नहीं होना गुरु पर उपकार है
इसी प्रकार नौकर का भी मालिक पर उपकार है
यह सोचना कि मालिक नौकरों की आजीविका देता है
one sided सोच है,
और दुःख देने वाली है
यह ज्ञान नहीं अज्ञान है
नौकर भी समय पर मालिक के अनुसार काम करता है
यह उसका उपकार है
माता-पिता का बच्चों के ऊपर उपकार है
कि उन्हें पढ़ाया, बड़ा किया आदि
लेकिन बच्चों ने भी उनके ऊपर उपकार किये
जैसे माता-पिता बचपन में घण्टों उन्हें खिला कर खुश होते थे
अपना मन बहलाते थे
और उनके बड़े होने पर उनके collage, job आदि से अपनी prestige बढ़ाते थे
इस प्रकार संसार की दशायें इन्हीं सूत्रों में समाहित होती हैं
यह सूत्र 21 तीन लोक के नक्शे के साथ जैन धर्म के प्रतीक चिह्न पर भी अंकित होता है
वर्तमान science भी जीवों के परस्पर उपकार करने के सिद्धांत को मानता है
zoology-botany के अनुसार सभी जीव स्वजीवी होते हुए भी परजीवी होते हैं
मुनिश्री ने आह्वानन किया कि
physics, chemistry, cosmology, space science आदि में पढ़े लिखे बच्चे
इन सिद्धान्तों पर research करें
PhD करें
यह उनका जैन धर्म और मुनिश्री पर उपकार होगा
और मुनिश्री उन्हें guidance भी देंगे
इसी प्रकार research के माध्यम से दुनिया में जैन विज्ञान का नाम आगे बढ़ेगा