श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 12
सूत्र - 16, 17, 18, 19
सूत्र - 16, 17, 18, 19
बहु मतिज्ञान का क्षयोपशम! एकविध में और बहुविध में क्या अन्तर? संक्लेश से ज्ञान कम होता? बहु, बहुविध, क्षिप्र ये ज्ञान विशुद्धि से होते हैं? अनुक्त अच्छा है, उक्त अच्छा नहीं? 'ध्रुव' और 'अध्रुव' में अन्तर! 'व्यंजन' का 'अवग्रह ज्ञान' ही होता? 'व्यंजन अवग्रह' चक्षु और मन के द्वारा नहीं होता?
बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तध्रुवाणां सेतराणां ।।1.16।।
अर्थस्य ।।1.17।।
व्यञ्जनस्यावग्रहः ।।1.18।।
न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् ।।1.19।।
प्रीति जैन
शामली
WINNER-1
Nirmala Baxi
Pune
WINNER-2
Kanhaiyalal Netavat
Udaipur
WINNER-3
बिना कुछ शब्द सुने हुए भी अभिप्राय जानकर के ज्ञान हो जाने को क्या कहते हैं?
क्षिप्र
अनिःसृत
अनुक्त *
ध्रुव
हमने जाना कि सामान्य से मतिज्ञान के 24 भेद होते हैं
क्योंकि मन और पाँच इन्द्रिय प्रत्येक, अवग्रहादि चार प्रकार से पदार्थ को जानते हैं
सूत्र 16 में हमने जाना कि विशेष से; हर तरह का मतिज्ञान बारह तरह के पदार्थों को जान सकता है
बहु यानि बहुत सा और इसका उल्टा एक
बहुविध यानि बहुत प्रकार का और इसका उल्टा एक प्रकार का
क्षिप्र यानि बहुत जल्दी होने वाला और उसका उल्टा धीमे-धीमे होने वाला
अनिःसृत यानि ऐसे पदार्थ को जानना जो आधा दिख रहा हो और आधा नहीं दिख रहा हो
और इसका उल्टा, सब कुछ प्रकट है उसको जानने वाला
अनुक्त यानि बिना कुछ शब्द सुने हुए भी अभिप्राय जानने वाला और इसका उल्टा उक्त यानि जो कहने से हमें ज्ञान होगा
ध्रुव यानि बहुत समय तक ज्ञान वैसे का वैसा ही बना रहे और इसका उल्टा अध्रुव यानि ज्ञान बहुत जल्दी इधर उधर हो जाये
इस प्रकार अर्थ यानि पदार्थ को जानने के लिए मतिज्ञान के 6 X 4 X 12 = 288 भेद हो जाते हैं
हमने देखा कि आत्मा में विशुद्धी अधिक होगी तो ज्ञान भी अधिक होगा
और संक्लेश यानि कलेश के परिणाम होने से ज्ञान कम होगा
जहाँ पहले के 6 ज्ञान बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिःसृत, अनुक्त और ध्रुव अच्छी विशुद्धि वाले होते हैं
वहीं एक, एकविध, अक्षिप्र, निःसृत, उक्त और अध्रुव इन सभी ज्ञानों में संक्लेश के कारण से कमी आ जाती है
सूत्र 18, 19 में हमें जाना कि व्यंजन यानि अप्रकट, अस्पष्ट पदार्थों का अवग्रह ज्ञान ही होता है
ईहा आदि नहीं होते
व्यंजन अवग्रह मन और चक्षु के द्वारा भी नहीं होता है
सिर्फ स्पर्शन, रसना, घ्राण, श्रोतृ इन 4 इन्द्रिय से ही इनका अवग्रह ज्ञान होता है
अतः अवग्रह; व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह के भेद से दो प्रकार का हो गया
अर्थावग्रह के तो 288 भेद बन गए
व्यंजनावग्रह के 48 भेद होते हैं
4 इन्द्रियों से 12 प्रकार के पदार्थों का व्यंजनावग्रह होगा
इस तरह मतिज्ञान के कुल भेद 288 + 40 = 336 भेद होते हैं