श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 26
सूत्र - 18,19
सूत्र - 18,19
तप विशेष से कर्म निर्जरा। बाह्य तप की व्याख्या। बाह्य तप के छह भेद तथा उनकी उपयोगिता। बाह्य तप- अभ्यन्तर तप का कारण। 1) अनशन तप। भोजन (आहार) के 4 भेद। अनशन तप के 2 भेद। शरीर प्रकृति अनुसार अनशन तप की योग्यता। अनशन पश्चात पारणा में रखे सावधानी। अनशन तप-इ्न्द्रिय तथा मन को नियंत्रित करने का साधन।
सामायिकच्छेदोप-स्थापना-परिहार-विशुद्धि-सूक्ष्मसाम्पराय-यथाख्यात-मिति चारित्रम्॥9.18॥
अनशनाव-मौदर्य-वृत्तिपरिसंख्यान-रस-परित्याग-विविक्त - शय्यासन-कायक्लेशा बाह्यं तपः॥9.19॥
14, nov 2024
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निम्न में से कौनसा आहार का एक भेद नहीं है?
खाद्य
स्वाद*
लेह्य
पेय
सूत्र उन्नीस
अनशनाव-मौदर्य-वृत्तिपरिसंख्यान-रस-परित्याग-विविक्त-शय्यासन-कायक्लेशा बाह्यं तपः॥9.19॥ में हमने बाह्य तपों के भेद जाने।
सूत्र तीन के अनुसार - तप विशेष निर्जरा का कारण होते हैं
ये बाह्य और अभ्यन्तर दो प्रकार के होते हैं
बाह्य-तप शरीर और इन्द्रिय आश्रित होते हैं।
इनमें शरीर के माध्यम से
आत्मा तक ताप पहुँचता है।
चूँकि ये सभी को देखने-जानने में आते हैं
इनसे ‘तपस्वी’ का title मिल जाता है
और धर्म प्रभावना होती है।
इन्हें यथाविधि जैन, जैनेतर सभी करते हैं।
जैसे अग्नि अशुद्धियाँ जलाकर
वस्तु को शुद्ध करती है
उसी तरह तप, आत्मा में उत्पन्न
कर्मों के उदय रूप
अशुद्धियों को जलाते हैं।
इससे शरीर और मन भी स्वस्थ होता है।
बाह्य-तप से शारीरिक व्याधियाँ नियन्त्रित होती हैं
और मानसिक संताप, शिथिलताएं भी दूर होती हैं।
इन दुष्कर बाह्य-तप की अग्नि भीतर पहुँचकर
अभ्यन्तर तप की शक्ति को बढ़ाती है।
बाह्य-तप के छह भेदों में पहला अनशन तप होता है
अनशन से शरीर को
अपने से भिन्न महसूस करने की,
इन्हें थोड़ा कष्ट देने की,
शुरुआत की जाती है।
इसमें अशन यानि चार प्रकार के भोजन का त्याग होता है।
अशन स्वयं भी एक भोजन का नाम होता है
इसके चार विभाजन होते हैं
अशन, खाद्य, स्वाद्य और पेय।
क्षुधा शान्ति के लिए रोटी आदि मुख्य भोजन अशन कहलाता है।
खाद्य में भोजन की items आती हैं,
जिन्हें खाकर अच्छा खाने का भाव आता है।
भोजन के उपरांत
देर तक मुँह में रखने वाली
मुख्यतया पाचन सहयोगी स्वादिष्ट चीज़ें
स्वाद्य कहलाती हैं।
और liquid पदार्थ पेय कहलाते हैं।
अशन का अन्य विभाजन
खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय रूप में भी होता है।
खाद्य में भोजन,
स्वाद्य में स्वादिष्ट वस्तुयें,
लेह्य में चबाने में कम मेहनत लगने वाली,
चाटने वाली सामग्रियाँ आती हैं।
अनशन दो प्रकार से होता है
साकांक्ष या अवधृत काल,
और निराकांक्ष या निरवधृत काल।
साकांक्ष में समय की मर्यादा होती है
आकांक्षा सीमित समय के लिए रोकते हैं
जैसे एक या दो-तीन दिन भोजन नहीं करेंगे।
अवधृत काल यानि काल का अवधारण, सीमा करना।
निराकांक्ष अनशन में
चार में से किसी एक, दो या सभी प्रकार के भोजन का
आजीवन त्याग होता है।
यह मुख्य रूप से समाधिमरण के समय किया जाता है।
अनशन से शक्ति का परीक्षण होता है
और सतत् अभ्यास से शक्ति बढती है।
शरीर में तीन प्रकृतियाँ होती हैं
वात, पित्त और कफ।
पित्त में अनशन करना मुश्किल होता है
क्योंकि इससे पित्त बढ़कर विकृत हो सकता है।
उससे जी मचलता है,
चक्कर आते हैं,
कमज़ोरी होती है,
अप्रमत्तता नहीं रहती।
अनशन स्वस्थ व्यक्ति ही कर पाते हैं,
क्योंकि इसके बाद कभी पित्त, वात या कफ की विकृति हो सकती है
बाकी लोग अन्य पाँच तप कर सकते हैं।
यूँ तो अनशन से रोगों का शमन होता है
पर कई बार पारणा का ज्ञान नहीं होने के कारण
आसक्ती के कारण
भोजन की गलतियाँ हो जाती हैं
जिससे शरीर में व्याधियाँ बढ़ जाती हैं
स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
हमें अपनी शरीर की प्रकृति के अनुसार
पारणा का ज्ञान होना चाहिए जैसे-
हमें कौन सी चीजें लेनी चाहिए?
अनशन का जीवन में बहुत महत्व होता है
इसमें इन्द्रियाँ शिथिल होने से
उनके विषयों में आसक्ति कम होने से,
इन्द्रियों का मद,
उनका दर्प कम होता है।
दर्प मतलब जैसे तेजी में सर्प का फुँफकारना।
अनशन से यह नियन्त्रित होता है
और स्वाध्याय, ध्यान आदि में मन लगने से
आत्मा की तरफ प्रवृत्ति सहज हो जाती है।
उपवास में हम अपने निकट वास करने लगते हैं।
जो अनशन करने में असमर्थ होते हैं
उनके लिए अवमौदर्य नाम का दूसरा तप होता है