श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 27
सूत्र - 19
सूत्र - 19
अवमौदर्य तप की विशेषता। शरीर विज्ञान की दृष्टी से अनशन तथा अवमौदर्य तप की उपयोगिता। उदराग्नि के प्रज्वलन में सहायक अवमौदर्य तथा अनशन तप। अवमौदर्य तप के 3 भेद- जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। अनशन तथा अवमौदर्य तप का तुलनात्मक विवेचन। तप की परिभाषा के परिपेक्ष में अनशन तथा अवमौदर्य तप की समानता। 3) वृत्तिपरिसंख्यान तप। परिसंख्यान, साधक का अधिकार। वृत्ति परिसंख्यान तप, समता भाव तथा पुण्य का पैमाना नापने का उपाय। वृत्तिपरिसंख्यान तप इच्छा निरोध में बेहतर तप।
अनशनाव-मौदर्य-वृत्तिपरिसंख्यान-रस-परित्याग-विविक्त - शय्यासन-कायक्लेशा बाह्यं तपः॥9.19॥
15, nov 2024
WINNER-1
WINNER-2
WINNER-3
आहार के लिए विधि लेना कौनसे तप के अंतर्गत आता है?
अनशन तप
अवमौदर्य तप
वृत्ति परिसंख्यान तप*
विविक्त शय्यासन
तप के प्रकरण में हमने जाना
अनशन तप से
शरीर में वे enzymes बनते हैं
जो medicine या injection से नहीं बन सकते।
वे आँतों को साफ़ करते हैं,
शारीरिक रोग दूर करते हैं,
और Cancer तक को नियंत्रित करते हैं।
अनशन, समाधि के समय भी हितकारी होता है।
जो अनशन नहीं कर पाते,
जिनकी अनशन से वात-पित्त-कफ़ प्रकृतियाँ कुपित होती हैं,
प्रमाद और निद्रा आती है,
वे दूसरा अवमौदर्य तप कर सकते हैं।
अवम् यानि न्यून
और औदर्य यानि उदर का भाव।
उदर में कुछ पहुँचने से आने वाले भाव को
थोड़ा कम रखना
यानी उदर पूरा नहीं भरना,
अवमौदर्य या उनोदर कहलाता है।
भूख से कम खाने से
वात-पित्त-कफ,
निद्रा,
और कृमि आदि रोग नियंत्रित होते हैं,
और पाचन अच्छा रहता है।
इससे आलस्य जीता जाता है।
उदर पूरा भरने से
उदर में अग्नि दब जाती है
और वह शुद्धि का,
पाचन का काम नहीं कर पाती।
इससे अग्नि-मांद्य बीमारी हो सकती है-
जिसमें अग्नि मंद होने से भूख नहींं लगती,
और वह पचता नहीं है।
अवमौदर्य से अग्नि थोड़ी सुलगती रहती है
और उस दिन के भोजन को पचाने के साथ
अगले दिन भी बनी रहती है।
उनोदर अपनी इच्छा, शरीर की स्थिति, और शक्ति के अनुसार होता है
आचार्यों ने पुरूष का पूर्ण भोजन बत्तीस,
और स्त्री का अट्ठाईस ग्रासों में कहा है।
हज़ार चावल का एक ग्रास होता है।
बत्तीस में एक ग्रास कम करना जघन्य
और इकत्तीस ग्रास कम कर, केवल एक ग्रास लेना उत्कृष्ट उनोदर होता है।
इसके बीच में मध्यम उनोदर होता है।
अपनी शक्ति का परीक्षण,
और उसकी वृद्धि करने के लिए,
शारीरिक व्याधियाँ
और मानसिक कमजोरियाँ दूर करने के लिए
तप किए जाते हैं।
कोई भी तप छोटा नहीं होता-
कुछ लोग अनशन तो कर पाते हैं,
पर अवमौदर्य नहीं।
अनशन में भोजन सामने नहीं आने से
निश्चिंतता आ जाती है।
पर भूख भी हो
और सामने भोजन भी,
ऐसे में इच्छा को रोककर
कम खाना बड़ी चीज होती है।
तप से इच्छा रोकने का भाव बढ़ता है।
अनशन में इच्छा पहले से,
और अवमौदर्य में भोजन सामने होने पर रोकी जाती है।
इसमें मन को दबाने की अनुभूति होनी चाहिए,
फिर ज्ञान-ध्यान में लगकर
उसकी स्मृति नहीं लाने से
वही तप ‘इच्छा निरोध: तप:’ बन जाता है।
तप करना art होती है
भोजन कैसे छोडें?
उस दिन क्या करें?
पारणा कैसे करें?
इस ज्ञान के साथ तप करने से लाभ मिलता है।
तीसरे तप ‘वृत्तिपरिसंख्यान’ में
वृत्ति अर्थात् तरह-तरह के संकल्पों से
चीजों का परिसंख्यान करते हैं।
यह दाता, गाँव, गृह, भोजन, भाजन किसी का भी हो सकता है।
जैसे
इतने दाता या,
उस गली में मिला,
यह भोजन मिला या
इस पात्र में मिला तो ही करेंगे
अन्यथा नहीं करेंगे।
यानि यह सिर्फ पड़गाहन के समय का नहीं होता,
चौके के अन्दर भी होता है।
चीज़ सामने दिखते हुए भी
निश्चित विधि से नहीं मिलने से वह नहीं लेते।
और विधि न मिलने के कारण
बाद में किसी पर चिल्लाते नहीं,
क्लेश नहीं करते।
बल्कि समता भाव से आनन्द लेते हैं।
इससे साधक अपना पुण्य आजमाते हैं-
“हमारे भाग्य में होगा तो विधि मिल जाएगी।”
मन नियंत्रित करने के लिए
यह अनशन और अवमौदर्य से भी उत्कृष्ट तप होता है।
इससे जिनका शरीर प्रभावित न हो,
दुःख न हो,
आवश्यकों में कमी नहीं आए,
वे अपनी सामर्थ्य के अनुसार
कितने भी दिन के लिए वृत्तिपरिसंख्यान कर सकते हैं।
जैसे जब तक विधि नहीं मिले
तब तक आहार नहीं करेंगे,
या जब तक वस्तु, विधि विशेष से नहीं मिलेगी
तब तक उसका त्याग रहेगा।