श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 18

सूत्र - 7

Description

रंगों के माध्यम से लेश्या l पारिणामिक भाव आत्मा के अनादि स्वभाव हैं l जीवत्व पारिणामिक भाव और जीवत्व स्वभाव में अन्तर है l चैतन्य-रूप-पारिणामिक-भाव हमेशा रहेगा l भव्यत्व, अभव्यत्व पारिणामिक-भाव l भव्यत्व, अभव्यत्व पारिणामिक-भाव एक दूसरे के विरोधी हैं l सह-अनवस्था-विरोध के उदाहरण l भव्य, अभव्य की परिभाषा l

Sutra

जीव-भव्याभव्यत्वानि च ।l।l

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WINNERS

Day 18

9th May, 2022

Ranjan Jain

New Delhi

WIINNER- 1

Shail Jain

Noida

WINNER-2

Premlata

Noida

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

छह प्राण कौनसे जीव में होंगे?

  1. दो इन्द्रिय में *

  2. तीन इन्द्रिय में

  3. चार इंद्रिय में

  4. असंज्ञी पंचेन्द्रिय में

Abhyas (Practice Paper):

Summary



  1. आज हमने औदयिक-भावों के वर्णन में लेश्या को जाना

  2. जहाँ कषाय में सिर्फ कषाय का उदय होता है

    • लेश्या में कषाय से रंजित मन-वचन-काय योगों की प्रवृत्ति होती है


  1. इन्हें रंगों के माध्यम से समझते हैं

  2. तीन लेश्याएँ अशुभ और तीन शुभ होती हैं

  3. अत्यंत निकृष्ट परिणाम वाली काले रंग की कृष्ण लेश्या अशुभतम, नीले रंग की नील लेश्या अशुभतर और भूरे रंग की कापोत लेश्या अशुभ होती है

  4. इनमें अशुभता के परिणाम क्रमशः कम होते जाते हैं

  5. पीले रंग की तेजो लेश्या या पीत लेश्या शुभरूप, लाल कमल सामान लाल रंग की पद्म लेश्या शुभतर और अत्यन्त शुभ परिणाम वाली सफेद रंग की शुक्ल-लेश्या शुभतम होते है

  6. इनमें शुभता के परिणाम क्रमशः बढ़ते हैं

  1. सूत्र-7 में हमने जीव के पारणामिक भावों के बारे में जाना

  2. जीव या द्रव्य का जो परिणमन हमेशा बना रहता है, उस परिणमन को बताने वाले भाव को पारिणामिक भाव कहते है

  3. यह तीन प्रकार के होते हैं

    • जीवत्व,

    • भव्यत्व,

    • और अभव्यत्व


  1. जीवत्व भाव सभी जीवों में होता है

  2. इसमें कर्म की अपेक्षा नहीं होती और यह हमेशा-हमेशा एक जैसा रहता है

  3. जीव का गति में जाना, एक इन्द्रिय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय शरीर धारण करना या चार से दस प्राणों के साथ जीना;

    • ये सब परिवर्तनशील हैं

    • कर्मों के उदय पर निर्भर करते हैं

    • अतः जीवत्व, पारिणामिक भाव नहीं हैं


  1. द्रव्य संग्रह में अनुसार निश्चय-नय से जीव ka चेतना ही प्राण हैं बाकी के दस प्राण तो व्यवहार से हैं

  2. चैतन्य-प्राण ही जीवत्व भाव है क्योंकि यह चैतन्य भाव जीव में हमेशा बना रहता है

  3. यह उसका अनादिनिधन पारिणामिक भाव है

  4. सिद्धवस्था में जीव के मात्र चैतन्य-प्राण ही रहेगा

  1. भव्यत्व का अर्थ है भव्यपना;

    • जीव ke अंदर जो भव्यता का जो रस है उसे भव्यत्व पारिणामिक-भाव कहते हैं


  1. इसी तरह जीव ke अंदर जो अभव्यपने का जो रस है उसे अभव्यत्व पारिणामिक-भाव कहते हैं

  2. भव्यत्व, अभव्यत्व पारिणामिक-भाव एक दूसरे के विरोधी हैं क्योंकि यही ये एक ही जीव में एक साथ नहीं रह सकते

    • इसे सह-अनवस्था विरोध या सहानवस्था-विरोध कहते हैं

    • जैसे अग्नि में शीतलता और उष्णपने ek साथ नहीं रह सकते या

    • कालेपन के साथ में सफेदपना नहीं रह सकता है

    • कुत्ता और बिल्ली, चूहा और बिल्ली आदि पर्यायों में भी सह-अनवस्था-विरोध है