श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 15
सूत्र - 14,15
सूत्र - 14,15
स्थिर और अस्थिर, तारे दो प्रकार के होते हैं। ध्रुव तारे का हमेशा एक निश्चित स्थान पर होना, पृथ्वी की स्थिरता को दर्शाता है।ऋतुओं का विभाजन, महीनों का विभाजन आदि सूर्य-चन्द्रमा आदि के गमन के माध्यम से किया जाता है। जम्बूद्वीप के काल विभाजन के अनुसार ही तीनों लोकों में काल विभाजन एवं काल गणना की जाती है। ऊर्ध्व लोक में काल विभाजन की गणना। अधोलोक में काल विभाजन की गणना। मनुष्यलोक के बाहर के ज्योतिष देवों विमान चलायमान नहीं हैं, अवस्थित हैं। ज्योतिर्लोक, कुछ स्थिर भी हैं और कुछ अस्थिर भी है। मनुष्य लोक के बाहर के सभी असंख्यात द्वीप-समुद्रों के ज्योतिष विमान अवस्थित हैं। चन्द्रमा और सूर्य हमें घूमते हुए प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर भी पृथ्वी की स्थिरता सिद्ध होती है। इन्द्रिय प्रत्यक्ष भी अपने आप में प्रमाण है।
तत्कृत: कालविभाग:।।१४ ।।
बहिरवस्थिता:।।१५।।
Urmila Jain Patni
Delhi
WINNER-1
राकेश कुमार जैन
अलवर
WINNER-2
Kamini Jain
Delhi
WINNER-3
चौबीस(24) पक्षों से निम्न में से क्या बनेगा?
एक दिन
एक मास
एक अयन
एक वर्ष*
हमने जाना कि तारे दो प्रकार के होते हैं - स्थिर और अस्थिर
स्थिर तारे को ध्रुव तारा कहते हैं
जम्बूद्वीप में ध्रुव तारों की संख्या छत्तीस हैं
ध्रुव तारे पृथ्वी के किसी भी स्थान से हमेशा एक ही निश्चित स्थान पर दिखते हैं
इससे पृथ्वी की स्थिरता सिद्ध होती है
अगर पृथ्वी घूमती तो ध्रुव तारे की position भी बदलनी चाहिए थी
आचार्यों ने सूर्य, चन्द्रमा, तारे आदि के विमानों की नित्य गति में बताया कि कुछ गतिमान हैं और कुछ स्थिर भी हैं
सूत्र चौदह - तत्कृत: कालविभाग: के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा की गति से काल का विभाजन होता है
यानि ऋतुओं का,
महीनों का,
समय का,
दक्षिणायन-उत्तरायण का विभाजन
काल विभाजन के अनुसार एक दिन-रात में सूर्य अपनी पूरी परिधि का चक्कर लगा लेता है
तीस मुहूर्त का एक दिन
पन्द्रह दिन का एक पक्ष
दो पक्ष का एक माह
बारह महीनों का एक वर्ष हो और
छह महीनों का एक अयन होता है
हमने जाना कि जम्बूद्वीप के काल विभाजन के अनुसार ही तीनों लोकों में काल विभाजन एवं काल गणना की जाती है
देवों के यहाँ दिन-रात व्यवस्था नहीं होती
वे ज्योतिष देवों से बहुत ऊपर रहते हैं
और वहाँ हमेशा जगमगाता वातावरण रहता है
इसलिए देवों को उम्र का ज्ञान भी मध्यलोक से होता है
नन्दीश्वर पर्व के लिए आषाढ़, फाल्गुन और कार्तिक के महीने भी यहीं के मान्य होते हैं
इसी प्रकार नरकों में भी काल से कोई लेना-देना नहीं होता
क्योंकि असंख्यात वर्षों की आयु पूरी होने पर उनका जन्म स्वतः ही दूसरी जगह हो जाएगा
लेकिन वहाँ भी तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध वाले जीव के लिए आयु के छह महीने शेष रहने पर वज्र कपाट का वातावरण तैयार किया जाता है
जिसकी गणना भी मध्यलोक के हिसाब से होती है
सूत्र पंद्रह - बहिरवस्थिता: में बताया गया कि मनुष्यलोक के बाहर के ज्योतिष देवों के विमान अवस्थित हैं अर्थात भ्रमण नहीं करते
ढाई द्वीप में कुछ विमान स्थिर हैं और कुछ अस्थिर
हमने जाना कि न्याय में प्रत्यक्ष को भी बहुत बड़ा प्रमाण माना जाता है
जो प्रत्यक्ष दिखता है, वह सर्वथा असत्य नहीं होता
जो दिख नहीं रहा उसको मानना
और जो दिख रहा है उसको गलत मानना
बहुत बड़ा मिथ्याज्ञान है
चन्द्रमा और सूर्य हमें घूमते हुए प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं
यह कोई भ्रम नहीं है
क्योंकि यह किसी भ्रान्त व्यक्ति को घूमते हुए दिखाई नहीं दे रहे
यहाँ तक scientists को भी ये प्रत्यक्ष में घूमते हुए ही दिखाई देते हैं
प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर भी पृथ्वी की स्थिरता सिद्ध होती है
यह प्रत्यक्ष प्रमाण भ्रान्त तब होता है
जब कोई विक्षिप्त मानसिकता वाला कुछ और देख रहा हो
जैसे किसी की आँखें खराब हों तो उसे एक से अधिक चन्द्रमा दिखेंगे
इन्द्रिय प्रत्यक्ष को प्रमाण माने बिना
हम किसी भी प्रमाण की सिद्धि नहीं कर सकेंगे
दिन को दिन नहीं मानेंगे, रात को रात नहीं मानेंगे
तो सब चीजें भ्रान्त हो जाएगी